Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ • श्री जैन व्रत विधि. |ৱৰয় সব विधि. १.१६॥ अथ लग्न वेलाएः इच्चेइयं सम्मत्तमूलपंचाणुव्वइयं सत्तसिखावइयं दुवालसविहसावगधम्म उवसंपज्झित्ताणं विहरामि ॥ पा गाथा नवकार गणवापूर्वक त्रण वार उच्चरावी. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं द्वादशवयं आरोवेह, गुरु कहे आरोवेमि, शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ संदिसह किं भणामि ? गुरु कहे-वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छं, खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! द्वादशवयं आरोवियं इच्छामो अणुसढ़ि. गुरु कहे आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभयणं सम्मं धारिजाहि गुरुगुणेहिं बुड्डिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहे-इच्छं. खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि ? गुरु कहे-पवेह. इच्छं कही खमा० दइ नवकारपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा देवी. (या प्रसंगे गुरुए तथा सकळ संघे वासक्षेप व्रत लेनारना मस्तक उपर नांखवो.) खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहुणं पवेइयं सांदेसह काउस्सग करेमि ? गुरु कहे-करेह. इच्छं कही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! द्वादशवयं स्थिरिकरणार्थ काउत्सरगं करेमि अन्नस्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्त कहेवो. पछी गुरु पच्चरकाण करावी देशना भापे. इति द्वादशव्रत विधि . १-बार व्रतमाथी थोडा व्रतो ग्रहण करवाना होय तो वेटल्लाज व्रतोना नाम बोलवा. ॥१६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96