Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras
View full book text
________________
米米米米諾恭法杀杀杀%季諾不容%术%
श्री शासनदेवता आराधनार्थ करोमि काउस्सग्गं मन्नत्थकही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी सातमी स्तुति कहेवी.
उपसर्गवलयविलयननिरता, जिनशासनावनैकरताः।
द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥ ७॥ समस्त वैयावच्चगराणं सम्मदिहिसमाहिगराणं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्य कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी आठमी स्तुति कहेवी.
सोऽत्र ये गुरुगुणौघनिधेसु वैयावृत्यादिकृत्यकरणकनिबद्धकक्षाः ।
ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ ___ पछी एक नवकार कही बेसीने नमुत्थुणं, जावंति चेइमाई, जावंत केवि साहू, नमोऽई कही पंचपरमेष्ठीस्तव कहे.
पंचपरमेष्ठीस्तव. ओमिति नमो भगवओ, अरिहन्तसिद्धाऽऽरियउवझायवरसव्वसाहुमुणिसंघधम्मतित्थपवsal यणस्स ॥ १ ॥ सप्पणय नमो तह भगवई सुयदेवयाइ सुहयाए, सिवसंति देवयाणं सिवपवयण

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96