Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ श्री जैन व्रत विधि. ॥ ३३ ॥ *******KKKKK सेल सिहरे दिरका नाणं नीसिहिया जस्स तं धम्मचक्कवहिं अरिनेमिं नम॑सामि ॥ ४ ॥ चारि अट्ठ तस दोय वंदिया जिणवरा चउव्वीसं परमड निट्टिट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ५ ॥ वैयावञ्चगरामं संतिगराणं सम्मदिट्टिसमाहिगराणं करोमि काउस्सगं ॥ वचनाना दिवसे स्त्रीवर्ग माथामां तेल नांखी शके छे. माधुं श्रोळी शकातुं नथी, पुरुषवर्गने उपधान तप पूरुं थतां सुधी क्षौर (मुंडन ) करावी शकातुं नथी. काउस्सग्ग विधि. खमा० दइ इरियावदी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! प्रथम उपधान पंचमंगल स्कंध आराधनार्थं काउस्सग्ग करूं ? इच्छं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिश्राए अन्नत्थ कही १०० लोगस्सनो काउरसग्ग चंदेसु निम्मलयरा सुधी करवो. पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. उपधान बदलाय त्यारे नाम पण बदलबुं खमासमण. खमाणमनो पाखो पाठ शुद्ध उच्चारी संडासा बराबर पडिलेही पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधाय नमो नमः एम कही खमासमय १०० देवा अधर रहीने खमासमण न देवा. शक्ति न होय तो गुरुमहाराज पासे रजा लइ बेठा बैठा देवा. अत्रे ***K**KYXKX उपधान विधि. ॥ ३३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96