Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 88
________________ श्री जैन प्रविधि ॥ ४१ ॥ *******-✈✈✈✈H HH HH HH H समुद्देश तेनुंज विशेषप अने अनुज्ञा ते ते सूत्रोनी पठन-पाठन करवानी आज्ञारूप समज. २ देववंदनना सूत्रो के जेना उपधान वहन करावामां आवे छे ते सिवायना बीजा सामायिकादि श्रावश्यकना सूत्रो माटे उपधान वहन करवानुं फरमान नथी. तदुपरांत चउसरण आदि चार पयन्ना अने दशवैकालिक सूत्रमा चार अध्ययन श्रावक-श्राविकाने भणवानी छूट छे. तेने माटे त्रण त्रण आंबिल करीने वांचना लेवानो विधि छे, ते गुरुगमथी जाणवो. ३ उपधान वहन कर्या भगाउ नवकारादि भगवा - मणाववामां आवे छे ते जीतव्यवहार तथा संप्रदायथी थाय छे, परन्तु ते ते मण्या पछी पहेली तके उपधान वहन करवानी जरूर छे. ४ उपधानमां के अन्य दिवसे पोसह प्रथम पहोरमांज लइ शकाय छे. प्रथम पहोर व्यतीत थया पछी लइ शकातो नथी. ५ सामान्य पौषधना एकाशनमां पण लीलोतरी शाक, पाका फल, तेनो रस वर्ज्य छे. ६ उपधान करनारा क्रिया अगाउ, क्रिया करवाना स्थानथी चोतरफ सो हाथ वस्ति शुद्ध इंमेश- सांज सवार करवानी छे. तेमां मनुष्य के तिर्यचना शत्रु के तेना शरीरनो हाड, रुधिर आदि भाग दूर कराववो. तिचनुं शब के ना शरीरनो भाग ६० हाथनी अंदर रहेवो न जोइए अने मनुष्यनो १०० हाथनी अंदर रहेवो न जोइए. ७ उपधानमा तेल चोळाव अने औषध लेवानो निषेध छे, परंतु प्रबळ कारणे गुरुनी आज्ञाथी लेवु. अंधने उपधान करवानो निषेध नथी परन्तु तेने बीजा सचक्षु मनुष्यनी सहायनी जरूर छे. KKKK✈✈✈✈✈✈✈✈✈ उपधान विधि. ॥ ४१ ॥

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