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श्रीलब्धिसूरीश्वर-जैनग्रन्थमालायाः प्रथमो मणिः RECERTERSHESHEKHARSHIXXEXXXXXSEXKRUARRIE R RY
श्रीस्यावादिने नमः श्री आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरेभ्यो नमः ।
श्री जैन व्रतविधि संग्रह. कविकुलकिरीट, व्याख्यान-वाचस्पति, आगमप्रज्ञ, शासनप्रभावक जैनाचार्य श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराजना पट्टप्रभावक आचार्य श्री विजयगंभीरसूरीश्वरजी महाराजश्रीना सदुपदेशथी
सहायक:श्री जैनसंघ-मद्रास.
प्रकाशक:
शा. चंदुलाल जमनादास. आवृत्ति बीजी )
वि. सं. १९९४. मूल्य ०-८-० प्रत... १०००
। वीर सं. २४६४. 5 REEXXXBHIROEXXXBESSESEXEEEEEEEEECH5.00
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ई व्यवस्थापक तथा प्राप्तिस्थान:शा.चंदुलाल जमनादास
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शेठ देवचंद दामजी आनंद प्रीन्टींग प्रेस
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प्राक्कथन:__मुझ महाशयो ! जणावतां अत्यंत हर्ष थाय छे के, नीचे जणावेल प्रन्थमाळाना उत्पादक व्याख्यान-वाचस्पति, भागमप्रज्ञ शासन-प्रभावक जैनाचार्य श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराजना विद्वाम्-शिष्यरत्न पूज्यपाद् श्रीगंभीरविजयजी (हासमां-तेश्रोश्रीना पट्टप्रभावक भाचार्य श्रीविजयगंभीररिजी) महाराजश्रीनुं चातुर्मास मद्रास शहेरमा वि. सं. १९८४नी सालमा थ एल ते प्रसंगे पूज्यश्रीए सद्ज्ञान प्रचारार्थे उपदेश आपतां त्यांना श्रीसंघे ते उपदेश सहर्ष शिरोमान्य राखी सद्-ज्ञानप्रचारार्थे आर्थिक सहाय आपी हती. एमांथी अत्यन्त उपयोगी प्रन्यो बहार पाडनारी "श्री लब्धिसूरीश्वर-जैन ग्रन्थमाळा " नी शरुपात करवामां आवे छे.
श्रा ग्रन्थमाळाना प्रथम मणीने जनता समक्ष रजू करतां जणाववायूँ के, जुदा जुदा स्थळोएथी विविध विषयक अनेक प्रन्थोन प्रकाशन थाय छे, छता पण नाजनी जैन जननाने अत्यन्त उपयोगी प्रन्थोनी जरूरीआत रहे छे, तेमां पण तात्कालिक उपयोगमा आवनार एवा अपूर्व-विधिविधानना प्रन्थोनी अतीव भावश्यकता होवाथी आ " जैन व्रतविधि " नामना ग्रन्थने प्रकाशन करवानी फरज पडी छे.
अद्यावधि अनुकूळ संयोगोना भभावे अन्योना प्रकाशन कार्यमा जे विलंब थयो तेने जनता दरगुजर करशे एज अभ्यर्थना, मा ग्रन्थमा भार्थिक सहाय मळवा छता कीसन केम ? तो तेना जवाबमा जणाववानुं के ग्रन्थोनो दुरुपयोग न थाय अने
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पाकक
श्री जैन व्रत विधि.
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विशेष प्रचार थाय ते हेतुथी किंमत राखवामां आवेल के, अने तेनी जे आवक यशे तेमांथी बीजा नवीन प्रन्यो बहार पाडी * जनताने विशेष लाभ थाय अने ज्ञान भक्तिनो लाभ मळे ते मुख्य उद्देशथी किंमत राखवामां आवी छे.
जनताले
उपकार:all जैन व्रतविधि नामक प्रन्थनी पहेली श्रावृत्ति बहादुरपुरना शा. कस्तूरचंद करमचंद तथा छाणीना चंदुलाल मगनलाल
तरफथी बहार पडी हती, तेमां सकलागमरहस्यवेदी शासनमान्य जैनाचार्य श्रीमद्विजयदानपूरीश्वरजी महाराज अने व्याख्यानवाचस्पति आगमप्रज्ञ शासनप्रभावक जैनाचार्य श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराजे आगमवाचनादि अनेक शासन प्रभावनाना कार्योमाथी पोतानो अमूल्य समय काढीने सुधारोवधारो करवामां जे परिश्रम उठान्यो ते माटे बन्ने महात्मामोनो तेमज उपदेशदाता आचार्य श्रीविजयगंभीरमूरिजी महाराजनो भने श्रीमद्रास जैनसंघे सद्-ज्ञान प्रचारार्थे भार्थिक सहाय भापी पोतानी लक्ष्मीनो सव्यय कर्यो तेथी लेमनो उपकार मानवानुं विसरता नथी.
वीर संवत २४६४
व्यवस्थापक:
विक्रम संवत १९९४
चंदुलाल जमनादास
॥२
॥
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अनुक्रमणिकाः१प्रवज्या ( दोक्षा ) विधि ... २ बडो दीक्षा विधि ३: तोचारण विधि ( ब्रह्मचर्यादि व्रत उच्चारण विधि) - द्वादशवत विधि ५ सम्यक्त्व आरोपण विधि ...
तीर्थमाल पहेराववानी विधि ... ७ बार मासे काउस्सग करवानो विधि
लोच विधि ९ उपधान विधि ... .
श्री लब्धिमरीश्वर-जैन ग्रन्थमाळाना छपाता अन्धोःप्रारंभसिद्धि-श्रीउदयप्रभदेवसूरीश्वरविरचित संस्कृत टीका साथे हीरप्रश्नोत्तराशि-श्रीकीर्तिविजयगणिसमुचित
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॥ श्रीवीतरागाय नमः॥ श्री आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरेभ्यो नमः॥
श्रीजैन व्रतविधि संग्रह
॥ अथ प्रव्रज्या ( दीक्षा ) विधि ॥ प्रथम दीक्षा मापवाना ठेकाणे (चैत्य, वड, आसोपालव, आंबा प्रमुख सारा स्थाने) आवी, श्रीफल हाथमा ग्रहण करी नांदने त्रण प्रदक्षिणा आपवी. पछी उचरासण करीने प्रथम इरियावहि पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेडं. इच्छं, कही मुहपत्ति पडिलेहीने खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक प्रारोपा
(१) जेमणे सम्यक्त्व पहेला उच्चर्यु होय तेमने माटे ए पाठ न बोलवो.
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श्री जैन व्रत विधि.
प्रवन्याविधि.
वणि, नंदिकडावणि, वास निक्षेप करो, एम शिष्य ज्यारे कहे त्यारे गुरु माथे वासक्षेप नवकार त्रण गणवापूर्वक नाखे. पछी खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक पारोपावणि नंदिकट्टावणिश्र, देव वंदावो, एम शिष्य कहे त्यारे गुरु कहे-चंदावेमि. शिष्य कहे इच्छं. गुरु शिष्यने पोताना डाचे पडखे राखीने संघ समक्ष देव वंदावे. खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? इच्छं कही पार्श्वनाथर्नु अगर शांतिनाथर्नु चैत्यवंदन करे.
॥ अथ चैत्यवंदन ॥
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ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिंतामणीयते । ही धरणेंद्र वैरोट्या पद्मादेवीयुतायते ॥१॥ शांतितुष्टिमहापुष्टिधृतिकीर्तिविधायिने । ॐ ह्री द्विव्यालवैतालसर्वाधिव्याधिनाशिने ॥ २ ॥ जया जिताख्या विजयाख्या पराजितयान्वितः। दिशां पालैहेर्यक्षैविद्यादेवीभिरन्वितः ॥३॥ ॐ असिआउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् !। चतुष्षष्टिसुरेन्द्रास्ते भासन्ते छत्रचामरैः ॥ ४॥ श्रीशंखेश्वरमंडन : पार्श्वजिनप्रणतकल्पतरुकल्प!। चूरय दुष्टवातं पूरय मे वांछितं नाथ!॥ ५॥
॥
१
॥
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__पछी जं किंचि, नमुत्थुणं, अरिहंतचेइमाणं, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी, नमोऽईद कही नीचे लखेली थोय कहेवी. अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यन्द्री सकलाऽत्रहि, रंहसा सहसौच्यत ॥१॥
व्याख्या-सोऽईन्-वीतरागः श्रेयःश्रियं-मोक्षलक्ष्मी तनोतु-विस्तारयतु, स कः? यद्ध्यानतो-यस्य ध्यानात न-मनुष्यैः ऐन्द्री-इन्द्रसम्बन्धिनी अपि सा लक्ष्मीः इत्योच्यत-इत्यवादि । इतीति किं ? हे लक्ष्मि! त्वं सकला-समस्ता रंहसा-वेगेन सह भत्र एहि-त्रागच्छ इत्यक्षरार्थः ॥१॥ __पछी लोगस्स, सव्वलोए अरिहंत०, अमत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी बीजी थोय कहेवी. ओमितिमन्ता यच्छासनस्य नंता सदा यदङ्घीश्च।आश्रीयते श्रियाते भवतो भवतो जिनाः पान्तु।।
व्याख्या:-ते जिनास्तीर्थकराः भवतः-युष्मान् भवतः-संसारात पान्तु-रक्षन्तु । ते के ? यच्छासनस्य ॐमिति मन्ता पुमान् येषां शासनस्य ॐ इत्यङ्गीकारे इदं शासनं सत्यमेवेति मन्ता मन्यमानः, च पुनरर्थे येषां चरणान्-यदीन् नन्ता पुमान् सदा-सर्वदा निया-लक्ष्म्या पाश्रीयते इत्यर्थः ॥२॥
पछी पुख्खरवरदी, सुनस्स भगवो बंदणवत्तिमाए, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी त्रीजी थोय कहेवी.
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श्री जैन व्रत विधि.
प्रव्रज्या
विधि.
नवतत्त्वयुता त्रिपदी श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता।वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दास्या जैनगी यात् ॥३॥ *
व्याख्याः -जैनगीजिनवाणी जीयात, किंभूता जैनगी ? नवतचैर्युता पुनः किंभूता त्रयाणां पदानां समाहारस्त्रिपदी, पुनः किंभूता रुचिः सम्यक्त्वं ज्ञानमवबोधः, पुण्यं चारित्रं तद्वता मुनिजातेन पुरुषेण वा श्रिता आश्रिता । पुन: किंभूता? वर:-प्रधानो दयामूलो धर्मः कीर्तिः विश्वसंचारिणी, विद्या केवलज्ञानादिका,मानन्दचाव्ययसुखरूपः तेषां भास्या स्थानं " स्यादास्या स्थासना स्थितिरिति" नाममालावचनात् ॥३॥
पछी सिद्धाण बुद्धाणं कही श्री शांतिनाथ आराधनार्थ करेमिकाउस्सग्ग बंदणवत्तिाए, अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो Fel काउस्सग्ग ( सागरवरगंभीरा सुधी) करी पारी नमोऽहंत कही चोधी थोय कहेवी.
श्रीशान्तिः श्रुतशांतिः प्रशांतिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् ।
नयतु सदा यस्य पदाः सुशान्तिदाःसन्तुसन्ति जने ॥४॥ व्याख्याः-सौ श्रीशान्तिः शान्ति अकल्याणं उपशान्ति नयत, किंभूतः श्रीशान्तिः श्रुता विख्याता शान्तिभद्रं मोचो वा यस्यासौ श्रुतशान्तिः । पुनः किंभूतः प्रशान्तिः प्रशमः शान्तिर्विद्यते यस्य स 'शेषाद्वा' कथ् प्रत्ययः, प्रशान्तिकः । स कः यस्य श्रीशान्तेः पदाः सदा जने लोके सुशान्तिदाः संतुसन्ति सम्पूर्वकः 'तुस हस लस रस शन्दे' धातूनामनेकार्थत्वात् सम्यक्प्रकारेण तुसन्ति विद्यन्ते सन्तुसन्ति इत्येकमेव क्रियापदम् ॥ ४ ॥
॥२
॥
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श्री द्वादशांगी आराधनार्थ करेमि काउस्सगं बंदणवत्तिाए, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी नमोऽह कही पांचमी थोय कहेवी.. सकलाथसिद्धिसाधन-बीजोपांगा सदास्फुरदुपाङ्गा । भवतादनुपहतमहा, तमोपहा द्वादशाङ्गी वः।५ __व्याख्या:-द्वादशाङ्गी वो युष्माकं तमोपहा भवतात् तमोऽज्ञानमपहन्तीति तमोपहा । किंभूता द्वादशाङ्गी ? सकलार्थसिद्धिसाधनस्य वीजभूतान्युपाङ्गानि यस्यां सा, पुनः किंभूता ? सदा स्फुरदूपाणि उपसमीपे अङ्गानि यस्याः सा, पुनः किंभूता ' अनुपहतो महो महोत्सवो यस्याः सा अनुपहतमहा ॥ ५॥ श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्य कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी छट्ठी थोय कहेवी.
वद वदति न वाग्वादिनि ! भगवति! कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः।
रंगत्तरंगमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ६॥ व्याख्या:-हे भगवति ! वाग्वादिनि ! त्वं वद, श्रतसरस्वति-श्रुतसमुद्रे गमनं कर्तुमिच्छुः कः पुमान् तुभ्यं नम इति इह न वदति अपि तु वदत्येव । किंभूतः पुमान् ? रंग-तरंगमतिरेव वरा तरणिनीयस्य सः रङ्गत्तरङ्गमतिवरतरणिः ॥३
श्री शासनदेवता भाराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी नमोऽईत् कही सातमी थोय कहेवी.
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प्रव्रज्या
श्री जैन व्रत विधि.
विधि.
॥३॥
朵法朵法米法杀出米米米米米%术法术出术常识
उपसर्गवलयविलयन-निरता,जिनशासनावनैकरताः। द्रुतमिह समीहितकृते, स्युःशासनदेवताभवताम्
व्याख्याः -शासनदेवता द्रुतं-शीघ्र इह धर्मकृत्ये भवतां युष्माकं समीहितकृते स्युः। किंभूताः शासनदेवताः ? उपसर्गवलयविलयननिरताः उपसर्गानां वलयं तस्य विलयन-भेदनं तत्र निरताः । पुनः किंभृताः? जिनशासनावनैकरताः जिनानां शासनं तस्यावनं रचणं तत्र एकमद्वितीयं यथा भवति तथा रताः प्रवृताः ॥ ७॥
समस्त वैयावच्चगराणं संति सम्मदिद्वि समाहिगराणं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी नमोऽर्हत् कही पाठमी थोय कहेवी.
संघेऽत्र येगुरुगुणौघनिघे सुवैया-वृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः।
ते शांतये सह भवंतु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ व्याख्या:-ते सुराः-देवाः सुरिभिः-देवीभिः सहावास्मिन् सङ्घ शान्तये भवन्तु । ते के देवाः ? ये सुवैयावृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः, सुष्टु वैयावृत्त्यादि च तत् कृत्यं च सुयावृत्यादिकृत्यं तस्य करणं तत्र एकाद्वितीया निबद्धा कक्षा प्रतिज्ञा यैस्ते । किंभूते सर्छ ? गुरुगुणौघनिघे गुरवश्चते गुणाश्च गुरुगुणास्तेषामोघः समृहस्तेन निघः सम्पूर्णस्तस्मिन् । | किंभूताः सुराः सदृष्टयः सत्प्रधाना दृष्टिर्येषां ते सदृष्टयः सम्यग्दृष्टय इत्यर्थः । पुनः किंभूताः सुराः १ निखिलविघ्नस्य विघातने नाशकरणे दक्षा:-प्रवीणा इत्यथैः ॥८॥
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ते पछी एक नवकार गर्णाने बेसीने नमुत्थुणं, जावंति चेइमाई, जावंत केवि साहू भने नमोऽहत् कही नीचे मुजब पंचपरमेष्ठी स्तव कहे.
॥ अथ पंचपरमेष्ठी स्तवः ॥ ओमिति नमो भगवओ,अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय। वरसव्वसाहुमुणिसंघधम्म-तित्थप्पवयणस्सा१॥ सप्पणवं नमो तह भगवई-सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंति देवयाए सिवपवयण देवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरईय वरुण वाऊ कुबेर ईसाणा। बंभोनागुत्तिदसहमविय सुदिसाणपालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमणवासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं सुराइ गहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्यं गच्छउ, जिणाइ नवकारओधणियं ॥५॥
पछी जय वीयराय संपूर्ण कहेवा.
॥ इति देववंदन विधि ॥ त्यारपछी प्रतिमाजीने पडदो करावी खुल्ला स्थापनाजी सामे वांदणा वे देवा. पछी खमा० दइ शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्रसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक, भारोवावणी, नंदिकडावणी, नंदिसूत्रसंभ
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ ४ ॥
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लावणी काउस्सग्ग करावो. ( श्रहींया जेमणे सम्यक्त्व प्रथम उच्चर्यु होय तेमने माटे मात्र सर्वविरतिनो पाठ कद्देवो . ) गुरु कहे कह, शिष्य कहे इच्छं सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक, आरोवावणी, नंदिकढावणी, नंदिसूत्र संभलावणी, करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दई इच्छा० संदि० भगवन् ! सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक आरोवावणि, नंदिसूत्रकड्डावणि काउस्सग्गं करूं, इच्छं, सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक आरोवावाण नंदिसूत्रड्डावाले करेमि काउस्सगं अन्नत्थ कही गुरु शिष्य बन्ने एक लोगस्सनो सागरवरगंभीरा सुधी काउस्सग्ग करे- पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी शिष्य खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाए करी नंदिमूत्र संभळावोजी एम कहे. त्यारे गुरु कहे सांभळो. गुरु खमा० दइ नंदिसूत्र कढुं, पछी गुरु ऊभा थह ऋण नवकाररूप नंदिसूत्र संभळाची, त्रण वार तेना मस्तके वासक्षेप नांखे पछी शिष्य खमासमण दहने कहे - इच्छकारी भगवन् ! मम पवावे मम वेसं समप्पेह. पछी गुरु ऊमा थह ओघो मुहपत्ति हाथमां लइ, नवकार एक गणनापूर्वक सुग्गाहियं करेह, एम कहेतां शिष्यनी जमणी बाजुए दशीश्रो आवे तेम ओवो मुहपत्ति शिष्यना हाथमां जाळत्रीने (जयन पर न पडे तेवी रीते ) उत्तर अथवा पूर्व दिशामां शिष्यनुं मुख राखीने आ. शिष्य इच्छं कही माथे ओघो चढावी नाचे. पी ईशान खूणामां जइ वस्त्राभरण विगेरे उतारी ऋण चपटी लेवाय तेटता बाळ राखीने मुंडन करावी स्नान करे. स्नान कर्या पछी इशान खूणामां मुख राखीने साधुनो वेष पहेरे पछी गुरु पाते अत्री मत्यरण वंदामि कही खमा० दइ इरि
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प्रव्रज्या
विधि
॥ ४ ॥
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यावहियं पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! मम मुंडावेह, मम सव्त्रविरइसामाइयं आरोवेह. गुरु० कहे श्रारोत्रेमि पछी खमा० दइ इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेह. इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेही नांदने पडदो करावी चे वांदणा देवा. पडदो कढावी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे थम्हं सम्य सामा० श्रु०सामा० सर्व०वि० सामा० आरोवावणी काउस्सग्ग करावो. शिष्य एम कहे त्यारे इच्छं करेमि काउस्सगं अन्नत्थ कही गुरु अने शिष्य बन्ने एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करे. पछी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी मुहूर्त्त वेलाए ऊं श्वासे त्र नत्रकार गणनापूर्वक त्रण चपटी लेवी. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! सम्यक्त्व आलापक उच्चरावोजी. एम कही पृथक् पृथक् नवकारपूर्वक त्रण वार उच्चराववो. ( प्रथम उच्चर्यु | होय तो न बोलवो.)
॥ अथ सम्यक्त्व आलावो ॥
अहन्नं भंते तुम्हाणं समीचे मिच्छत्ताउपडिक्कमामि सम्मत्तं उवसंपजामि तं जहा - दव्ओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, दव्वशोणं मिच्छत्तकारणाइं पञ्चरकामि, सम्मत्तकारणाई उवसंपज्जामि, नो मे कप्पइ अज्जप्पभिइ, अन्नउत्थिआए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्न उत्थियपरिग्गही -
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प्रव्रज्याविधि.
श्री जैन
आणि अरिहंतचेइआणि वा, वंदित्तए वा, नमंसित्तए वा, पुव्वं प्रणालत्तेणं आलवित्तएवा व्रत विधि.
संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पयाउं वा खित्तमोणं इत्थं वा अन्नत्थं वा कालोणं जावजीवाए, भावभोणं जावग्गहेणं न गहिज्जामि, जाव छलेणं
न छलिज्जामि, जाव संनिवारणं नाभिभविज्जामि, जाव भन्नेण वा केणइ वा रोगायंकाइणा एस . परिणामो न परिवडइ ताव मे एवं सम्म दंसणं नन्नत्थ रायाभिभोगणं, गणाभियोगेणं, बलाभिओगेणं, देवाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं वोसिरामि।
अरिहंतो महदेवो जावजीवं सुसाहुणो गुरुणो, जिणपन्नत्तं सत्तं इस सम्मत्तं मए गहिनं। (भा गाथा पण त्रण वार बोलवी ). पछी समा० दइ इच्छकारी भगवन् ! सर्वविरति मालावो उच्चरावोजी. एम शिष्य कहे त्यारे पृथक् पृथक् नवकार गणी त्रण वार करेमि भंते उच्चरावे.
__ करोमि भंते ! सामाइ सव्वं सावज जोगं पञ्चकामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि
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| निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
(ए पाठ शिष्य पण पाछळथी बोले. अत्रे चोखा मंत्रेला वासक्षेपमा मेळवीने चतुर्विध संघने आपवा.)
पछी शिष्य खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्वसामायिक श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक प्रा. रोवेह. बीजुं खमा० दइ संदिसह किं भवामि ? गुरु कहे वंदित्तापवेह. इच्छ. त्रीजुं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्य सा० श्रुतसा० सर्वविरतिसा०मारोवीयं इच्छामो अणुसदिगुरु० कहे. पारोवीयं भारोवीयं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं, तदुभयेणं सम्मं धारिजाहि अन्नसिं च पवजाहि गुरु गुणेहिं वुडिजाहि नित्थारपारगाहोह. इच्छं कही चोथु खमा० दह तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहणं पवेएमि ? गुरु कहे. पवेह. इच्छं पांचभुखमा० देह चारे बाजु एक एक नवकार गणता भने गुरुने नमस्कार करता त्रय प्रदक्षिणा देवी. गुरु प्रमुख चतुर्विध संघ त्रय वखत दीचितना मस्तक उपर वासचेप नाखे. बहु खमा० दइ तुम्हाशं पवेइमं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि ? गुरु कहे करह. इच्छं कही सात खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सर्वविरतिसामायिक स्थिरिकरणार्थ करेमि काउस्सगं. मनत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा०६इ शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! मम नामठवणं करेह. ते पछी गुरु वासनिक्षेप करता नाम स्थापे. दिग्बंध या प्रमाणे:-नवकार मसवापूर्वक कोटिगण, वयरी.
१ गुरु ग्यारे भावेश भापे यारे शिष्ये दरेक बनते इच्छ कहेवू.
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ ६ ॥
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शाखा, चांद्रकुल, प्राचार्य
कहेतुं तमारा गुरुनुं नाम
उपाध्याय
तमारुं नाम
"
वासक्षेप नांखे पछी सज्झाय करी उपयोग करवा काउस्सग्ग करी खमा० दइ पच्चक्खाण करे. पछी नवदीक्षित, गुरु तथा सर्व साधुने वांदे पछी साध्वी श्रावक श्राविका नवदीक्षितने वांदे पछी खमा० दर इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी हितशिक्षाप्रसाद करोजी एम शिष्य कहे त्यारे गुरु देशना थापे पछी वाजतेगाजते सकळ संघ साथे दहेरासर जबुं. पछी उपाश्रये यावी इशान खूखा तरफ मों राखी एक बाधापारानी नवकारवाळी नवीन दीचित पासे गणाववी.
॥ इति प्रव्रज्या विधि ॥
प्रवर्तिनी
"
एप्रमाणे त्रण वखत कद्देवु. पछी गुरु
१ स्त्री दीक्षा लेनार होय तो प्रवर्तिनी नाम देवु.
एम
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प्रव्रज्या
विधि
॥६॥
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॥ अथ वडीदीक्षा विधि ॥
प्रथमं चारे दिशाए सो हाथ सुश्री वस्ति शुद्ध करवी, नांद मंडाववी, सवापांच शेर चोखाना पांच साथीचा कराववा, चौमुखजी पधरावा, चारे बाजु दीपक अने धूप रखाववो, सवापांच रुपीया प्रभुनी पलांठीयां मूकवा, पांच श्रीफळ पांच साथीचा उपर सूकवा. पछी चारे बाजु एक एक नवकार गणी त्रण प्रदक्षिणा देवी.
पछी खमा० दइ इरियाव पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छा ० संदि• भग० मुहपत्ति पडिलेहूं ? गुरु कहे पडिलेहो. इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे श्रम् पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं आरोवावणी, नंदिकड्डावणी वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि इच्छं. पछी गुरु वासक्षेप मंत्री मस्तक उपर त्रय वखत नांखे पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण पष्ठं आरोवावणी, नंदिकड्डावणी, देव वंदावो. गुरु कहे वंदावेमि. इच्छं० खमा० दइ इच्छा० संदि० भग० चैत्यवंदन करूं ? इच्छं. (गुरु बोले भने शिष्य सांभळे ).
“ॐ नमः पार्श्वनाथाय " थी संपूर्ण जय वीयराय सुधी प्रव्रज्या विधियां पाने १ मां लख्या प्रमाणे देववंदन कराव. १- नांदनी विधि दरेक स्थळे या प्रमाणे समजवी.
२
HH HH HH JEH JE K K K K K HK HK
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श्री जैन व्रत विधि.
विधि.
| पछी नांदने पडदो करावी खुल्ला स्थापनाजी साये बे वांदणा देवा. पछी पडदो लेबरावीने प्रभु सामे ऊभा रही, प्रव्रज्या- इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं पारोबावणी नंदिकड्ढावणी देववंदावणी काउस्सग्गर
करायो. गुरु कहे करह. इच्छं कही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण पष्ठं आरोबावणी नंदिकड्ढावणी, देववंदावणी करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं भारोवावणी नंदिसूत्र कड्डावणी काउस्सग्गं करूं इच्छं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजन विरमण षष्ठं आरोवा| वणी नंदिसूत्र कढावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग (सागरवरगंभीरा सुधी) गुरु शिष्य
बन्ने जणे करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नंदिसूत्र संमळावोजी, एम शिष्य कहे त्यारे गुरु कहे सामळो. गुरु खमा० दइ कहे नंदिसूत्र कटुं. पछी गुरु ऊभा थइ त्रण नवकार गणवापूर्वक था नीचे लखेल संपूर्ण नंदिसूत्र संभळाव.
नंदिसूत्र
नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा-श्राभिणियोहियणाणं १, सुपनाणं २, ओहिणाणं ३, मणपञ्जवनाणं ४, केवलनाणं ५ तथ्य चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिजाई नो उदिसिजंति, नो समुद्दिसिजंति, नो अगुनविजंति, सुयनाणस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुना ३ अणुओगो ४ पत्तइ, जइ सुभनाणस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुरोगो ४ पवतइ ?
॥
७
॥
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________________
कि अंगपविठ्ठस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ ? किं अंगवाहिरस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्ता ? अंगपविट्ठस्सवि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुयोगो ४ पवत्तइ. अंगवाहिरस्सवि उद्देशो १ समुदेशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. जइ अंगबाहिरस्स उद्देशो १ समुदेशो २ अणुना ३ अणुोगो ४ पवत्तइ ? कि आवस्सगस्त उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ ? आवस्सगस्स वइरित्तस उद्देशो १ समुदेशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ. श्रावस्सगस्सवि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्ताइ श्रावस्तगवरित्तस्सवि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुरोगो ४ पवत्तइ. जइ आवस्सगस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ १ कि सामाइयस्स १ चउविसथ्थयस्स २ वंदणयस्स ३ पडिकमणस्स ४ काउस्सग्गस्स ५ पच्चख्खाणस्स ६ उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ सम्बेसि पि एएसिं उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. जइ प्रावस्सगवइरित्तस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुभोगो ४ पवतइ. किं कालियस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ उक्कालियस्सवि उद्देशो १ समुदेशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ । कालियस्सवि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुओगो ४ पवत्तइ. उक्कालियस्सवि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. जइ उकालिस्स उद्देशो १ समुदेशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. किं दसवेमालिभस्म १ कपिआकप्पिस्स २ चुल्लकप्पसुअस्स ३ महाकप्पसुअस्स ४ उववाइअस्स ५ रायप्पसेणि अस्स ६ जीवाभिगमस्स ७ पण्णवणाए ८ महापण्णवणाए ९ नंदीए १० अणुप्रोगदाराणं
-
-
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प्रव्रज्या
श्री जैन व्रत विधि
विधि
॥८
॥
११ देविंदत्यनस्स १२ तंदुलावभालिमस्स १३ चंदाविज्झयस्स १४ पमायप्पमायस्स १५ पोरिसिमंडलस्स १६ | मंडलप्पवेसस १७ गणिविजाए १८ विजाचरणविणिच्छअस्स १९ झाणविभत्तीए २० मरणविभत्तीए २१ प्रायविसोहीए २२ संलेहणासुअस्स २३ वीयरायसुअस्स २४ विहारकप्पस्स २५ चरणविहीए २६ पाउरपञ्चरुखाणस्स २७ महापञ्चख्खाणस्स २८ उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुना ३ अणुोगो ४ पवत्तइ सम्वेसिपि एएसि उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. जइ कालिमस्स उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुप्रोगो ४ पवत्तइ. किं उत्तरज्झयणाणं १ दसाणं २ कप्पस्स ३ ववहारस्स ४ इसिभासिमाणं ५ निसीहस्स ६ महानिसीहस्स ७ जंबुद्दीवपन्नत्तीए ८ सूरपननीए ९ चंदपन्नत्तीए १० दीवसागरपन्नत्तीए ११ खुड्डियाविमाणपविभत्तीए १२ महल्लिा विभाणपविभत्तीए १३ अंगचूलिपाए | १४ वग्गचूलिमाए १५ विवाहचूलिपाए १६ अरुणोववायस्स १७ वरुणोववायस्स १८ गरुलोववायरस १९ (धरणोववायरस ) वेसमणोववायस्स २० वेलंधरोववायस्स २१ देविंदोववायरस २२ उट्ठाणसुअस २३ समुठ्ठाणसुअस्स २४ नागपरिमावलिआणं २५ निरयावलिमाणं २६ कप्पिाणं २७ कप्पवडिंसयाणं २८ पुफिमाणं २९ पुप्फचूलिआणं ३० वहिदसाणं ३१ आसीपिसभावणाणं ३२ दिट्ठीविसमावणाणं ३३ चारण भावणाणं ३४ महासुभिणभावयाणं | ३५ तेअगिनिसग्गाणं ३६ उद्देशो १ समुद्दे शो २ अणुना ३ अणुयोगो ४ पवत्ताइ । जइ अंगपविट्ठस्स उद्देशो
१ समुद्देशो २ अणुन्ना ३ अणुयोगो ४ पबत्तइ कि आयरस्स १ सुभगडस्स २ ठाणस ३ समवासस्स ४ विवाह| पन्नत्तीए ५ नायाधम्मकहाणं ६ उवासगदसाणं ७ अंतगडदसाणं ८ अणुत्तरोववाईअदसाणं ९ पण्हावागरणाणं १०
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विवागसुअस ११ दिठिवास्स १२ उद्देशो १ समुद्देशो २ अणुना ३ अणुोगो पबत्तइ सबमिं पि एएसि उद्देशो१ समुदेशो २ अणुन्ना ३ अणुअोगो ४ पवत्तइ.
नंदिसूत्र समाप्तः। त्यारपछी त्रण वार वासक्षेप नांखवो. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी महाव्रतदंडक उच्चरावोजी. गुरु कहे उच्चरेह. इच्छं कही मुहपत्ति टचली आंगळी अने तेनी जोडेनी आंगळी बच्चे राखी तथा ओघो हाथमा राखी हाथ वे दंतूशळनी पेठे करी कोणी पेट उपर राखी मस्तक नमावे. पछी नवकार एक अने महावत एक एम एक एक महाव्रत त्रण वार नवकारपूर्वक गुरु शिष्यने मुहर्तवेलाथी पहेला उच्चरावे. भालाबा नीचे मुजब.
नवकार पढमे भंते ! महब्बए पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! पाणाइवायं पञ्चरकामि, से सुहुमं वा वायरं वा तसंवा थावरं वा नेव सयं पाणे अइवाइज्जा, नेवन्नेहिं पाणे अइवायाविजा पाणे अइ. वायंते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । पढमे भंते ! महव्वए उवढिओमि सव्वाओ पाणाइवायानो वेरमणं ॥ १ ॥
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श्री जैन
प्रव्रज्याविधि.
बत विधि.
米米米米出杀决%%杀出长出器等光榮。
__ अहावरे दुच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मुसावायं पञ्चकामि से कोहा | वा लोहा वा भया वा हासा वा नेवसयं मुसं वइजा, नेवन्नेहिं मुसं वायाविजा, मुसं वयंते वि अन्नं न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि दुच्चे भंते ! महव्वए उवटिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं ॥ २ ॥ ।
अहावरे तच्चे भंते ! महत्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पञ्चकामि से गामे वा नगरे वा रपणे वा, अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थुलं वा चित्तमंत्तं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गिहिज्जा नेवन्नहिं अदिन्नं गिहाविजा अदिन्नं गिण्हते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि, तच्चे भंते ! महव्वए उवाहोमि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं ॥ ३ ॥
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________________
।
弟杀出杀%%%%%%
米米米%米諾装%
__ अहावरे चउत्थे भंते ! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! मेहुणं पच्चरकामि, से दिव्वं वा माणुसं वा तिरिस्कजोणिअं वा नेव सयं मेहुणं सेविजा, नेवन्नेहि मेहुणं सेवाविज्जा मेहुणं सेवते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करोमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि चउत्थे भंते ! महव्वए उवढिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ॥ ४॥ ___अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते ! परिग्गहं पञ्चकामि से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थुलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं परिगिहिजा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा, परिग्गहं परिग्गण्हते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि पंचमे भंते ! महव्वए उवष्टिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥५॥
弟弟朵朵染諾迷染浴%杀%米杀杀杀出
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※
श्री जैन अत विधि
प्रव्रज्या विधि.
4॥१०॥
※※※¥%%%术%
अहावरे छठे भंते ! वये राइभोअणाओ वेरमणं सव्वं भंते ! राइभोअणं पच्चरकामि से असणं | वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राइं भुजेजा नेवन्नेहिं राइं मुंजाविज्जा राइं भुजंते वि
अन्ने न समणुजाणानि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवमि करंतपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि.
छठे भंते ! वये उवडिओमि सव्वाओ राइभोअणाओ वेरमणं ॥ ६॥ नीचेनी गाथा लग्नवेलाए नवकारपूर्वक त्रण वखत बोलवी.
इच्चेयाइं पंचमहब्धयाइं राइभोअणवेरमणछठाई अत्तहिअठाए उवसंपजित्ताणं विहरामि ॥१॥ पछी खमा० दड़ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं आरोवमो. गुरु कहे आरोवेमि, इच्छं. बीजुं खमा० दइ संदिसह किं भवामि गुरु कहे वंदित्ता पवेह. इच्छं त्रीजु खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं | पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं आरोवियं इच्छामो अणुसहिं. गुरु कहे आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभयेणं सम्मं धारिजाहि, अन्नसिं च पवजाहि, गुरु गुणेहिं बुड्डिजाहि नित्थार पारगाहोह इच्छं चोथु खमा० दइ तुम्हाणं साहूणं पवेइयं संदिसह पवेएमि ? गुरु कहे पवेह. इच्छं पांचमुं खमा० दइ एक नवकार नाणनी चारे
%%%%杀%术治术
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बाजु गणतो गुरुने नमस्कार करतो त्रण प्रदक्षिणा करे. (या प्रसंगेत्रण प्रदक्षिणा वखते सकळ संघ वासक्षेप करे.) छठं खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सगं करेमि ? गुरु कहे करह. इच्छं कही सातप्तुं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पंचमहाव्रतं रात्रिभोजनविरमण षष्ठं आरोवावणी करेमि काउस्सगं अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग सागरवरगंभीग सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी दिग्बंध करावोजी. गुरु वासक्षेप लइ नीचे प्रमाणे त्रण बार नवकार गणता बोले.
कोटिगण वयरीशाखा, चांद्रकुल आचार्य श्री , उपाध्यायश्री , प्रवर्तनी , तमारा गुरुर्नु नाम , तमाएं नाम , एम कही गुरु वासक्षेप करे. खमा० दइ अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगवो. खमा० दइ आदेश मागी पञ्चरकाण कर. पछी नांदने पडदो करी गुरु आदिने वंदन करे. पछी नवीन दीक्षितने संघ वांदे. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! हितशिक्षा प्रसाद करोजी. गुरु उपदेश भापे. यथा-चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो माणुस्सत्तं सुइ मद्धा संजमंमिप्रवीरियं ॥१॥ इत्यादि तथा उज्झिता, भक्षिता, रक्षिता अने रोहिणी ए चार श्रेष्ठिवधुनुं दृष्टांत कहे. पछी संघ साथे वाजतगाजते दर्शन करवा जाय. पछी इशानखूणामां बेसाडी एक नवकारवाळी बाधापारानी गणावबी.
इति वडीदीक्षाविधि. १ साधी होय तो प्रवर्तनीनुं नाम देवु.
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प्रव्रज्या
- श्री जैन
व्रत विधि.
विधि.
॥११॥
॥अथ व्रतोच्चारण विधि ॥ प्रथम नांदनी विधि, वडीदीक्षानी विधिमां बताच्या मुजब करवी. पछी व्रत लेनार महोत्सवपूर्वक श्रीफळ हाथमा धारण करी नांदने नवकारपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आपे. पछी सचित्तनो त्याग करी खमा० दइ इरियावहि, तस्सउत्तरी, अन्नत्थ. कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा० दइ इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! तुम्हे अम्हं श्री ब्रह्मवंत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, वीशस्थानक तप, मौन एकादशी तप, (जे व्रतो उच्चराववाना होय तेनाज नाम देवा.) आरोवावणी, नंदि करावणी वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि, शिष्य कहे इच्छं. गुरु वासक्षेप मंत्रीने व्रत लेनाराने पोतानी डाबी बाजुए राखी नवकारपूर्वक त्रण वार मस्तक उपर वासक्षेप नांखे. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, वीशस्थानक तप, मौनएकादशी तप, भारोवावणी नंदि करावणी, देव वंदावो, गुरु कहे वंदावेमि. शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं? गुरु कहे कोह. शिप्य कहे इच्छं. गुरु शिष्यने पोताने डावे पडखे राखी प्रव्रज्याविधिमा ( पाने १ मा) लख्या मुजब संपूर्ण जय वीयराय पर्यंत देववंदन करावे. पछी नांदने परदो करावी वांदणा बे देवा. पछी पडदो कढावी नांखी, ऊभा थइ. इच्छाकारि भगवन तुम्हे अहं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, वीशस्थानक तप, मौनएकादशी तप (बीजा तप होय तो तेना
१ बीजा जे तप उच्चराववा होय तेना नाम बोलवा.
ॐ
॥११॥
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*K*KHK HK HK HK JEK JK JE K & K & H
पण नाम देवा.) शेवारणी नंदिक डावणी, देवबंदावणी, नंदीसूत्र संभलावणी काउस्सग्ग करावी. गुरु कडे करेह. शिष्य इच्छं कही ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, विंशतिस्थानक तप, मौन एकादशी तप आरोवावणी, देवबंदावणी, नंदी कड्डावणी, नंदिसूत्र संभलावणी करोमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दह इच्छा ० संदि० भगवन् ! ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, विंशतिस्थानक तप, मौनएकादशी तप (जे जे होय तेना नाम देवा ) आरोवावणी नंदिसूत्र कढावणी काउ सग्ग करूं ? इच्छं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, विंशतिस्थानक तप, मौनएकादशी तप, ( जे जे तप होय तेना नाम देवा) आरोवावणी, नंदीसूत्र कड्डावणी करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ० कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग ( सागरवरगंभीरा सुधी) गुरु शिष्ये बन्ने जणे करी, पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नन्दी सूत्र संभळावोजी. गुरु कहे सांभळो. शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरु खमा० दइ कहे. नंदीसूत्र कडे पछी गुरु ऊभा थइ त्रण वार नवकार गणवपूर्वक शिष्यना मस्तक उपर त्रण वखत वासनिक्षेप नाखी नित्थारपारगाहोह कहे शिष्य खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी सम्यक्त्व श्रालावो उच्चरावोजी. (पहेला सम्यक्त्व न उच्चर्यु होय तो दीक्षाविधमां पाने ४ मां बतान्या मुजब उच्चरावनुं . )
पछी मा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी ब्रह्मचर्य व्रत, ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, वीशस्थाक तप, मौनएकादशी तप उच्चरावोजी. गुरु त्रण नवकारपूर्वक त्रण वार नीचे प्रमाणे भालावा उच्चारावे. ( जे जे व्रतो उच्चराववाना होय ते व्रतनाज नाम तथा अलावा बोलवा. )
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श्री जैन
प्रवज्या
व्रत विधि
विधि.
॥ १२ ॥
ब्रह्मचर्य आलाबो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे बंभवयं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्यओ खित्तो कालन भावओ, दव्वओणं इमं बंभचेरवयं खित्तोणं इत्थ वा अन्नत्थ, कालओणं जावज्जीवाए भावओणं ओरालीय, वेउब्विअ, भेयं पञ्चरकामि तत्थ दिव्वं दुविहं तिविहेणं, तेरिच्छे एगविहं तिविहेणं, मणुअं एगविहं एगविहेणं अहागहियभंगेणं तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि.
वीशस्थानक तप आलावो. अहन्नं भंते तुम्हाणं समीवे इमं वीशस्थानकतवं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्वओ खित्तो A कालो भावओ, दव्व ओणं इमं वीशस्थानकतवं, खित्तमोणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालोणं | जाव दशवरिसाइ (छ मासमांही वीस वीसनी एक ओळी करवी. ), भावओणं अहागहिय भंगेणं, (छट्ट, उपवास, आयविल निवि, एकासण यथाशक्ति तपथी करे ) अरिहंतसक्खियं,
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सिद्धसक्खियं, साहसस्कियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. नित्थारपारगाहोह.
ज्ञानपंचमी तप आलावो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे इमं ज्ञानपंचमी तवं उवसंपज्जामि, तंजहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, दव्वओणं ज्ञानपंचमीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालओणं पंच वरस पंच मास, भावओणं अहागहियभंगेणं ( उववासेणं ) अरिहंतसक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहसक्खियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरा. गारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. नित्थारपारगाहोह.
रोहिणी तप आलावो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे इमं रोहिणीतवं उवसंपज्जामि, तंजहा-दव्वओ, खित्तओ, कालो, भावओ, दवओणं इमं रोहिणीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालोणं जाव
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ १३ ॥
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सात वरस सात मास, भावओोणं अहागहियभंगेणं ( उववासेणं) अरिहंत सक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहसविखयं देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपजामि अन्नरणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरा - गारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेण वोसिरामि नित्थारपारगाहोह.
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ब्रह्मचर्यादि
व्रत विधि.
मौनएकादशी तप आलावो.
अहन्नं भंते! तुम्हाणं समीवे इमं मैौन एकादसीतवं उवसंपज्जामि, तं जहा - दव्वत्रो, खित्तत्रो, कालो, भाव, दव्वओोणं इमं मौन एकादसीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालओ जाव अगीआर वरस अगीआर मास, भावओणं अहा गहियभंगेणं ( उववासें ) अरिहंतसक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहूसक्खियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तित्रागारेणं वोसिरामि . नित्थारपारगाहोह.
(बीजा व्रतोना पण घालावा नाम तथा काळनुं मान बदली बनावी लेवा.) पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी, रोहिणी, वीसस्थानक, मौन एकादशी तप आरोवो. गुरु कहे- भारोवेमि. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दद्द संदिसह किं भणामि ?, गुरु कहे वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ शिष्य ॐ ॥ १३ ॥
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कहे, इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे थम्हं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी, रोहिणी, वीसस्थानक, मौन एकादशी तप आरोवियं इच्छामो भणुसहि, गुरु कहे श्रारोवियं आरोवियं खमासमणाणं, हत्थेणं, सुत्तेणं, अत्थेणं, तदुभएणं सम्मं धारिज्जाहि गुरु गुणेहिं बुढिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य इच्छं कही खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि, गुरु कहे पवेह. शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ नांदने नवकार गण वा पूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आपे. गुरु तथा सकळ संघ त्रण वखत मस्तक उपर वासक्षेप नाखे. पछी खमा ० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सग्गं करेमि, गुरु कहे करेंह. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दह ब्रह्मचर्यादि ( जे व्रत होय तेना नाम लेवा ) व्रतस्थिरिकरणार्थं करेमि काउस्सग्गं श्रन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवर - गंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ यथाशक्ति पञ्चरकाण करे. खमा० दइ अविधि प्रशातना मिच्छामि दुक्कडं मागे. खमा० दह शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! हितशिक्षा प्रसाद करोजी. गुरु उपदेश आपे.
यथा
देवदाणव गंधव्वा, जक्खरक्खस किन्नरा । बंभयारीं नमसंति, दुक्करं जे करंति ते ॥ १ ॥ इत्यादि गाथा भोथी उपदेश प्रापे.
इति ब्रह्मचर्यादिव्रत विधि.
* ॐ * ॐ * ॐ * ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
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श्री
चत विधि
द्वादश व्रत विषि.
॥१४॥
अथ द्वादश व्रतविधि प्रथम वडीदीक्षानी विधिमां बताया मुजब नांद मांडी व्रत लेनारे हाथमा श्रीफळ ग्रहण करी नांदने नवकार गणवापूर्वक त्रण प्रदक्षिणा देवी. पछी इरियावही पडिकमी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० Pal दइ मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन्! तुम्हे अम्हं द्वादशवयं आरोवावणी नंदि करावणी वासनिक्षेप
करो. गुरु कहे करेमि, शिष्य कहे इच्छं. गुरु त्रण वार मस्तक उपर वासक्षेप नाखे. खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं द्वादशव्रतं आरोवावणी, नंदि करावणी, देव वंदाबो, गुरु कहे वंदावेमि. पछी खमा० दइ शिष्यने पोताने डावे पडखे राखी पाना १ थी ३ सुधीमा लख्या मुजब चैत्यवंदनथी मांडी संपूर्ण जयवीयराय सुधी देववंदन कराववा. पछी नांदने पडदो करावी चे वांदणा देवा. पछी पडदो दूर कराची खमा० दइ इच्छकारी भगवन् द्वादशव आरोवावणी, नंदी करावणी, देववं दावणी, नंदिसूत्र संभलावणी काउस्सग करावो. गुरु कहे करेह, शिष्य कहे इच्छं. द्वादशव पारोवावणी देववंदावणी नंदिकट्ठा
वणी, नंदिसूत्र संभलावणी करेमि काउस्सगं. गुरु पग खमा० दह इच्छा. संदि० भगवन् ! द्वादशत्रतं आरोवावणी नंदि* सूत्र कड्ढावणी काउस्सग्ग करूं ? इच्छ, द्वादशवतं आरोवावणी नंदिसूत्र कढावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नस्थ कही एक
लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी गुरु शिष्षे करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! नंदिसूत्र संभळावो. गुरु कहे सांभळो. शिष्य कहे इच्छ. पछी गुरु खमा० दइ कहे, नंदिस्त्र कलु पछी
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गुरु ऊभा रही प्रण नवकार गणना पूर्वक त्रण वार मस्तक पर वासक्षेप नांखे. ( अत्रे पहेला सम्यक्त्व न उच्चर्यु होय तो प्रवज्या विधिना पाना पांचमामा लख्या मुजव उच्चराव. ) पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पसाय करी व्रतदंडक उच्चरावोजी. पछी गुरु जे जे व्रतो उच्चरात्रवाना होय ते ते व्रतोना आलावा नीचे लख्या मुजब नवकार गणवा पूर्वक त्रण वखत उच्चरावे.
प्रथम व्रत आलावो.
अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे थुलगपाणाइवायं संकल्पो निरवराहं निरवेक्खं पञ्चखामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्क मामि निंदाभि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ..
द्वितीय व्रत बालावो.
अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीचे थुलगंमुसावायं जीहा छे आइहेडं, कन्नाली आइअं पंचविहं पञ्चखामि दक्खिन्नाइ अविसये जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि.
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ १५ ॥
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तृतीय व्रत आलावो.
अन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे थुलगं दिन्नादाणं खत्तखणणाइयं, चोरंकारकरं रायनिग्गहकरं सचित्ताचित्तवर विसयं पञ्चक्खामि, जावजीवाए दुविहं तिविहेणं मरणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवैमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि.
चतुर्थ व्रत आलो.
अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे ओरालिय- वेउन्त्रिय भेयं थुलगं मेहुणं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए तत्थ दिव्वं दुविहं तिविणं, तेरिच्छं एगविहं तिविहेणं मणुयं महाग हियभंगेणं, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि,
पंचम व्रत आलावो.
अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे थुलगं अपरिमियं परिग्गहं पञ्चवखामि धणधन्नानवविह वत्थुविसयं इच्छापरिमाणं उवसंपज्जामि जावज्जीवाए, महागहियभंगेणं तस्स भंते ! पडिक मामि
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द्वादश व्रत
विधि.
॥ १५ ॥
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निंदामि गारहामि अप्पाणं वोसिरामि.
षष्ठ सप्तम अष्टम व्रत आलावो.
अन्नं भंते! तुम्हाणं समीचे गुणव्वय तिए उड्डअहोतिरियलो अगम शवितयं दिसिपरिमाणं पडिवज्जामि उवभोगपरिभोगवए भोयणओ, अणंत काय - बहुबी - राई भोयणाई परिहरामि . कम्मश्रणं पन्नरसम्मादाणाई इंगालकम्माइ आइयं बहुसावज्झाई खरकम्माई रायनियोगं च परिहरामि, अन्नत्थदण्डे अवज्झाणइयं चउव्विहं अन्नत्थदण्डं परिहरामि जावजीवाए अहागाहियभंगएणं तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि.
नवमं दशम एकादश द्वादश व्रत आलावो.
अन्नं भंते! तुम्हाणं समीवे सामाइयं देसावगासियं पोसहोववासं प्रतिहिसंविभागवयं च जहा सत्तिए पडिवज्जामि जावज्जीवाए श्रहागहियभंगेणं तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पा वोसिरामि.
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• श्री जैन
व्रत विधि.
|ৱৰয় সব
विधि.
१.१६॥
अथ लग्न वेलाएः
इच्चेइयं सम्मत्तमूलपंचाणुव्वइयं सत्तसिखावइयं दुवालसविहसावगधम्म उवसंपज्झित्ताणं विहरामि ॥
पा गाथा नवकार गणवापूर्वक त्रण वार उच्चरावी.
पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं द्वादशवयं आरोवेह, गुरु कहे आरोवेमि, शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ संदिसह किं भणामि ? गुरु कहे-वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छं, खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! द्वादशवयं आरोवियं इच्छामो अणुसढ़ि. गुरु कहे आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभयणं सम्मं धारिजाहि गुरुगुणेहिं बुड्डिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहे-इच्छं. खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि ? गुरु कहे-पवेह. इच्छं कही खमा० दइ नवकारपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा देवी. (या प्रसंगे गुरुए तथा सकळ संघे वासक्षेप व्रत लेनारना मस्तक उपर नांखवो.) खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहुणं पवेइयं सांदेसह काउस्सग करेमि ? गुरु कहे-करेह. इच्छं कही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! द्वादशवयं स्थिरिकरणार्थ काउत्सरगं करेमि अन्नस्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्त कहेवो. पछी गुरु पच्चरकाण करावी देशना भापे.
इति द्वादशव्रत विधि . १-बार व्रतमाथी थोडा व्रतो ग्रहण करवाना होय तो वेटल्लाज व्रतोना नाम बोलवा.
॥१६॥
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सम्यक्त्व आरोपण विधि. प्रथम सम्यक्त्व ग्रहण करनारे हाथमा श्रीफळ लइ नांदने त्रण नवकार गणवापूर्वक त्रण प्रदक्षिणा देवी. पछी इरियावही पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी, पारी प्रगट लोगस्स कही खमा० दइ मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा. दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं संमत्तं आरोवणीयं नंदिकरावणीयं वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि. शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरु शिष्यना मस्तक उपर त्रण वार वासक्षेप नाखे. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं संमत्तं आरोवावणी नंदिकरावणी देव वंदावो. गुरु कहे वंदावेमि. पछी शिष्यने पोताने डावे पडखे राखी प्रवज्याविधि पाना एकथी त्रण सुधीमा लख्या मुजब संपूर्ण जयवीयराय पर्यंत देव वंदावे. पछी नांदने पडदो करावी चे वांदणा देवा. पछी पडदो दूर करावी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्ह संमत्तं पारोवावणी, नंदिकरावणी, देववंदावणी नंदिसूत्र संभलावणी काउस्सग्ग करावो. गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. समत्तं आरोवारणी, नंदिकरावणी, देववंदावणी, नंदिसूत्रसंभलावणी करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! संमत्तं प्रारोवावणी नंदिसूत्र कड्डावणी काउस्सग्ग करूं ? इच्छं संमत्तं आरोवावणी नंदिसूत्र कड्डावणी करेमि काउस्समा अन्नत्थ कही एक लोगस्तनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी गुरु-शिष्य बन्ने जणे करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! नंदिसूत्र संभळावो. गुरु कहे सांभळो. शिष्य कहे इच्छ. पछी गुरु खमा० दइ कहे नंदिसूत्र कट्ठ. पछी गुरु ऊभा रही त्रण नवकार
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श्री जैन
व्रत विधि.
॥ १७ ॥
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गणवापूर्वक ऋण वार वासक्षेप नाखे. ( त्रण नवकाररूप नंदीसूत्र जाणवुं . ) पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे श्रहं संमत्तं भारोवेह. गुरु कहे आरोवेमि. शिष्य कहे इच्छं. पछी त्रण नवकार गणवापूर्वक त्रण बखत उच्चरावे. सम्यक्त्व आलावो.
अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीचे मिच्छत्ताओ पडिक्कमामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि, तं जहा - दव्बो, खित्तओ, कालओ, भावओ. दव्वओणं मिच्छत्तकारणाइं पच्चक्खामि सम्मत्तकारणाई उवसंपजामि. नो मे कप्पइ अज्जप्पभिइ अन्न उत्थिए वा अन्नउत्थिय देवयाणि वा अन्न उत्थिय परि ग्गहिआणि अरिहंतचेइआणि वा, वंदित्तए वा नमसित्तए वा, पुत्रं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्त वा सिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउंवा अणुप्पयाडं वा, खित्तणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालोशं जावज्जीवाए महागहिय भंगेणं, भावओोणं जाव गहेणं न गहिजामि, जाव छलेणं न छलिज्जामि, जाव संनिवारणं नाभिभविज्जामि, जाव अन्त्रेण वा केणइ रोगायंकेण एस परिणामो न परिवडइ ताव एवं सम्मं दंसणं नन्नत्थ रायाभियोगेणं, गणाभियोगेणं, वलाभियोगेणं, देवाभियोगेणं, गुरुनिग्गहेगां वित्तिकं तारेण वोसिरामि
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सम्यक्त्व
आरोपण
विधि.
॥ १७ ॥
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त्यारबाद नीचे लखेली गाथा लग्नवेलाए नवकार गण वापूर्वक त्रण वार उच्चराववी:अरिहंतो महदेवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपन्नत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए गहियं ॥
पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे भम्ं सम्यक्त्व सामायिक आरोवेह, गुरु कहे भारोवेमि. शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ संदिसह किं भणामि ? गुरु कहे वंदित्तापवेह शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे म्हं सम्मतं आरोवियं इच्छामो अणुसडिं. गुरु कहे भारोवियं भारोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अस्थेणं तदुभयेणं सम्मं धारजाह, गुरुगुणेहिं बुढिजाहि. नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि, गुरु कहे पवेह. शिष्य कहे इच्छं ( खमा० दइ त्रण नवकारपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आपवी. ) ( या प्रसंगे गुरु तथा सकळ संघ व्रत लेनारना मस्तक उपर वासक्षेप नांखे.) पछी खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सागं करोमि . गुरु कहे कह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे थम्हं सम्यक्त्व सामायिक स्थिरीकरणार्थं करेमि काउteri अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी अभदय अनंतकाय आदिनो नियम आापी यथाशक्ति पञ्चक्खाण करावे. पछी गुरु देशना आपे.
इति सम्यक्त्व आरोपण विधि.
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ १८ ॥
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तीर्थमाल पहेराववानी विधि.
प्रथम नांदने त्रण नवकार गणवापूर्वक त्रण प्रदक्षिणा देवी पछी खमा० दइ इरिया वही पडिकमी एक लोगस्सनो काउ० करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भग० मुहपत्ति पडिलेहुं ? गुरु कहे पडिलेहो. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे थम्हं तीर्थमाळ श्रारोवावणीयं नंदिकरावणीयं वासनिक्षेप करो, एम ज्यारे शिष्य कहे त्यारे गुरु ऋण नवकार गणवापूर्वक वासनिक्षेप करे. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे भ्रम्हं तीर्थमाळ आरो वावणीयं, नंदिकरावणीयं देव वंदावेह एम कहे त्यारे गुरुए शिष्यने पोताना डावा पडखे राखी प्रव्रज्या विधि पाना १ थी ३ सुधीमां लख्या मुजब चैत्यवंदनथी मांडी संपूर्ण जयवीयराय पर्यंत विधि कराववी ।
ते पछी नांदने पडदो करावी वांदणा वे देवा. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं तीर्थमाळ आरोवावणि, देवदावणि, नंदिकरावणि, नंदिवत्र संभळावणि काउस्पग्ग करावो. गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. तीर्थमाळआरोवावणि, नंदिकरावणी, देववंदावणि, नंदिमूत्रसंमळावणि करेमि काउस्सगं. गुरु पण खमा० दइ इच्छा० संदि • भगवन् ! तीर्थमाळ आरोवावणी नंदिसूत्र कड्डावणी काउस्सग्ग करूं ? इच्छं तीर्थमाळ मासेवावणी, नंदिसूत्र कड्डावणी, करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही गुरु-शिष्य बन्ने जणे एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सांगरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कवो. पछी शिष्य खमा० दह कहे इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नंदिसूत्र संभळावोजी. गुरु कहे सांभळो. शिष्य
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तीर्थमाल
पहेरा
ववानी
विधि.
॥ १८ ॥
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कहे इच्छं. पछी गुरु खमा० दह कहे नंदिसूत्र कढउं. पछी गुरु ऊभा रही त्रण नवकार छूटा छूटा गणवापूर्वक तेना मस्तके | त्रण वार वासक्षेप नांखे. गुरु नित्थारपारगाहोह कहे त्यारे शिष्ये इच्छ कहे. ' पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं तीर्थमाळ मारोवेह. गुरु कहे भारोवेमि. (भत्रे संघवीने माळ पहेराववी.) खमा० दइ शिष्य कहे संदिसह किं मणामि ? गुरु कहे वंदितापवेह. खमा० दइ शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे | अम्हं तीर्थमाळमारोवियं इच्छामो अणुसदि. गुरु कहे मारोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभयेणं सम्मं धारिजाहि गुरुगुणेहिं वढिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहे इच्छं. खमा. दइ शिष्य कहे तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि. गुरु कहे पवेह. खमा० दइ नांदने नवकार गणता त्रण प्रदक्षिणा देवी. (आ वखते सकळ संघ वासक्षेपवाळा अक्षत नांखे.) खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सगं करेमि, गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं, खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं तीर्थमालं आरोवणत्थं करेमि काउस्सगां अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ प्रविधि माशातना मिच्छामिदुक्कडं मांगे. पछी शिष्य खमा० दइ कहे इच्छकारी भगवन् ! हितशिक्षा प्रसाद करोजी..
मुक्तिकनी वरमाला, सूक्तिजलाकर्षणे घटीमाला । साक्षादिव गुणमाला, माला परिधीयते धन्यैः ॥१॥
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भी जैन व्रत विधि.
॥१९॥
बार मासे काउस्सग करवानो विधि चैत्र शुदि ११-१२-१३ अथवा १२-१३-१४ अथवा १३-१४-१५ ए त्रण दिवसोए दररोज दैवसिक प्रतिक्रमण कर्या पछी आ काउस्सग्ग करचो. प्रथम खमा० दइ इच्छा. संदिसह भगवन् ! अचित्तरजमोहडावणत्यं काउस्सग्ग करुं? इच्छं अचित्तरजोहडावीणत्थं करेमि काउस्सग्गं, प्रमस्थ कही चार लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंमीरा सुधी करवो. पारी प्रगट लोगस्स कहेवो.
लोचविधि. प्रथम इरियावही करी चंदेसु निम्मलयरा सुधी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेनो. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुँगुरु कहे पडिलेह. इच्छं कही महपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! लोयं संदिसाहु. गुरु कहे संदिसावेह. बीजुं खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! लोयं करेमि. गुरु कहे करेह. उपरनो आदेश मळ्या पछी जो ऊंचे भासने वेसवार्नु होय तो खमासमण दह नीचेना आदेश मांगवा. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! उच्चासणं संदिसाहु, गुरु कहे संदिसावेह. पछी चोधुं खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् । उच्चासणं ठामि. गुरु कहे ठावेह. पछी खमा० दइ लोच करनार वडील होय तो इच्छकारी भगवन् ! लोयं करेह, भने नाना हाय तो इच्छकारी लोयं करेह एम कहेवू. पछी लोच करावको.
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लोष थया बाद गुरुमहाराज पासे भावी करवानी विधि - प्रथम खमा० दइ इरियावही करी जगचिंतामणिर्नु चैत्यवंदन जयवीयराय सुधी संपूर्ण कर. पछी खमा० दइ मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी वांदगाबे देवा. खमा० दइ इच्छा. संदि भगवन् ! लोयं पवेएमि ! गुरु कहे पवेह. बीजुं खमा० दइ
संदिसह किं भवामि ? गुरु कहे वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छ. खमा० दइ कहे केसामे पज्जुवासिया, गुरु कहे तमो दुक्कर | कयं इगिणी साहियात्ति. इच्छामो अणुसडिं. खमा० दइ तुम्हास पवेइयं संदिसह साहूयं पवेएमि. गुरु कहे पवेह. खमा०
दइ तुम्हाणं पवेइयं साहणं पवेइयं सदिसह काउस्सग्गं करेमि. गुरु कहे करेह. खमा० दह केसेसु पन्जुवासिजमाणेसु सम्म जंन महियासियं कुइयं कक्कराइई तस्स मोहडावणीयं करेमि काउस्सग्गं प्रमत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी अनुक्रमे साधुनोने वंदन करे.
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श्री जैन
चत विधि.
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उपधानविधि.
उपधान वहन करनार श्रावक-श्राविका प्रातःकाले प्रतिक्रमण करी, देव वांदी, पडिलेहण करी, जिनपूजा करी घेरथी सापांच शेर अक्षत, श्रीफल ग्रहण करी ज्यां नींद मांडी होय त्यां भावी गुंडली करे पछी हाथमां श्रीफल ग्रहण करी नदिने नवकार गणवपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आपे पछी श्रीफळ मूकी, पौषधना उपकरणों ग्रहण करी, खमा० दह इरि यावही पडिकमी पौषध लेवानी विधि प्रमाणे पौषध ग्रहण करें। यावत् बहुवेल संदिसाहु, बहुवे करशुं त्यां सुधी कहे. पछी पडिलेना आदेश मांगी यावत् उपधि पडिलेहुं कही सर्व उपकरण पडिले हवा. कोइ स्त्रीने कारणसर वस्त्र पडिलेहवा रही गया होय तो नांदनी सघळी क्रिया कर्मा पछी पडिलेहय करे. पडिलेह कर्मा पछीज पत्रेणानी क्रिया थह शके. पौषध लीघा पछी नीचे मुजब प्रवेशविधि कराववी.
प्रवेशविधि
खमा० दइ इरियावहि पडिक्कमी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग चंदेसु निम्मलपरा सुधी की पारी प्रगट लोगस्स कहे वो. खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! वसति पत्रे ? गुरु कहे पत्रेह. इच्छं कही खमा० दइ शिष्य कहे भगवन् ! शुद्धावसहि. गुरु कड़े तहत पछी खमा० दइ इच्छा कारण संविह भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कदे पडिलेह. इच्छ १. प्रथम वे उपधानमां नांद होय घे. बाकीना उपधानमां स्थापनाचार्यथी पण प्रवेश करावी शकाय बे.
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ २१ ॥
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कही पति पडिलेवी. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगल महाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तवअध्ययन उद्देशावणी, नंदिकरावणी, देवबंदावणी वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि पछी इच्छं कही गुरु पासे भावे. गुरु नवकार गंणवापूर्वक त्रण वखत वासनिक्षेप करे. पछी खमा० दह शिष्य कहे. इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तवश्यध्ययन उद्देशावणी, नंदि करा वणी, वासनिक्षेप करावणी, देव वंदावो. गुरु कहे बंदा वेमि. पछी शिष्य० खमा० दइ कहे कहे. इच्छा कारण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूँ ? गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी नीचे प्रमाणे चैत्यवंदन करे. चत्यवंदन.
ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्वचिंतामणीयते । ह्री धरणेन्द्रवैरोट्या, पद्मादेवीयुतायते ॥ १ ॥ शांतितुष्टिमहापुष्टि-धृतिकीर्तिविधायिने । ॐ ह्रीं द्विड्व्यालवैताल - सर्वाधिव्याधिनाशिने ॥ २ ॥ जयाजिताख्या विजयाख्या पराजितयान्वितः । दिशां पालेर्यहर्यक्षै-विद्यादेवीभिरन्वितः ॥ ३ ॥
१ अत्रे ज्यारे बीजा अढारीयामां, चोकीयामां तथा छकीयामां प्रवेश कराववो होय तो अनुक्रमे बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, चोथुं उपधान चेत्पस्तव, बटुं उपधान श्रुतस्तव सिद्धस्तव जे उपधान होय तेनुं नाम बोलवु .
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उपधान
विधि.
॥ २१ ॥
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「不米米米米米米米米米米米諾杀%杀-中举
* असियाउसाय नमस्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् । चतुःषष्टि सुरेन्द्रास्ते, भासन्ते छत्रचामरैः ॥ ४ ॥ श्रीशंखेश्वरमंडनपार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प !। चूरय दुष्टवातं, पूरय मे गंछितं नाथ ! ॥५॥
पछी जं किंचि, नमुत्थुणं, अरिहंतचेइमाणं, अमस्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी नमोऽईन कही नीचे प्रमाणे स्तुति कहेवी.
अहंस्तनोतु स श्रेयः, श्रियं यद्ध्यानतो नरैः ।
अप्यन्द्रि सकलाऽत्रेहि, रंहसा सहसौच्यत ॥ १॥ पछी लोगस्स, सम्वलोए, वंदणवत्तिाए, भन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी बीजी स्तुति कहेवी.
ओमितिमन्तायच्छासनस्य, नन्ता सदा यदंघीश्च ।
आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥२॥ पुस्करवरदी, वंदणवत्तिमाए, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी त्रीजी स्तुति कहेवी.
नवतत्त्वयुता त्रिपदीश्रिता, रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्याऽनन्दाऽऽस्याजैनगी यात् ॥ ३ ॥
米%米%术出米·米卷术-米米米米米长黑米黑米
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उपधान
प्रत विधि
__ पछी सिद्धाणं युद्धाणं कही श्रीशांतिनाथ माराधनार्थ करेमिकाउस्सग्ग बंदणवत्तिपाए अन्नत्य कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी नमोऽर्हत् कही चोथी स्तुति कहेवी.
श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् ।
नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तु सन्ति जने ॥ ४ ॥ पछी श्रीद्वादशांगी अाराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी नमोऽईत कही पांचमी स्तुति कहेवी.
___ सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गा सदा स्फुरदुपाङ्गा ।
भवतादनुपहतमहा-तमोऽपहा द्वादशाङ्गी वः ॥५॥ _पछी श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउस्सगं अन्नत्य कही एक नवकारनो काउस्सग करी पारी नमोऽहं कही छठी स्तुति कहेवी.
वदवदति न वाग्वादिनि ? भगवति ! कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः रङ्ग-त्तरङ्गमतिवरतरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ६ ॥
॥
२
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米米米米諾恭法杀杀杀%季諾不容%术%
श्री शासनदेवता आराधनार्थ करोमि काउस्सग्गं मन्नत्थकही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी सातमी स्तुति कहेवी.
उपसर्गवलयविलयननिरता, जिनशासनावनैकरताः।
द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥ ७॥ समस्त वैयावच्चगराणं सम्मदिहिसमाहिगराणं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्य कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी पारी आठमी स्तुति कहेवी.
सोऽत्र ये गुरुगुणौघनिधेसु वैयावृत्यादिकृत्यकरणकनिबद्धकक्षाः ।
ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ ___ पछी एक नवकार कही बेसीने नमुत्थुणं, जावंति चेइमाई, जावंत केवि साहू, नमोऽई कही पंचपरमेष्ठीस्तव कहे.
पंचपरमेष्ठीस्तव. ओमिति नमो भगवओ, अरिहन्तसिद्धाऽऽरियउवझायवरसव्वसाहुमुणिसंघधम्मतित्थपवsal यणस्स ॥ १ ॥ सप्पणय नमो तह भगवई सुयदेवयाइ सुहयाए, सिवसंति देवयाणं सिवपवयण
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श्री जैन व्रत विधि
उपधान विधि.
२३॥
本%米米出米米米米米米米米米%杀肃肃杀出
देवयाणं च ॥ २॥ इन्दा गणिजम नेरईय, वरुणवाउकुबेरईशाणा । बंभो नागुत्ति दसहमविय सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमणवासवाणं तहेव पंचण्हं । तहलोगपालयागं, सूराइ गहाण य नवग्रहं ॥४॥ ___साहतस्स समक्खं मज्झमिणं चेव धम्मणुट्टाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइ नवकारो धणियं ॥५॥
पछी जय वीयराय संपूर्ण कद्देवा ।। इति देववंदन विधि ॥
पछी नांदने पडदो करावी स्थापनाचार्य खुल्ला राखी बे बादणा देवा. पछी पडदो लेबरावीने प्रभु सामे ऊमा रही कहे इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी नंदिकरावणी, देववंदावणी, नंदिसूत्रसंमलावणी काउस्सग्ग करावो. गुरु कहे करह. इच्छं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे भम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजु उपधान शक्रस्तव मध्ययन, पंचम
१. अत्र ज्यारे बीजा अढारीयामा, चोकीयामां तथा छकीयामा प्रवेश कराववो होय त्यारे अनुक्रमे बीजं उपधान, प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, चोधुं रुपधान चैत्यस्तव, ; उपधान श्रुतस्तवसिद्धस्तव विगेरेमाथी जे उपधान होय तेना नाम बोलवा.
॥२३॥
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उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी, नंदिकरावणी, देवबंदावणी, नंदिसूत्र संभळावणी करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी, नंदी सूत्रकटावणी, काउस्सग्ग करूं ? इच्छं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणि करेमि काउस्सग्गं अमत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी गुरु शिष्य बने जण करे. पछी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी शिष्य खमा० दइ कहे इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नंदिसूत्रे संभळावो. गुरु कहे सांभळो, शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरु खमा० दइ कहे नंदि सूत्र कढउं ? पछी गुरु ऊभा रही श्रण नवकाररूप नंदिसूत्र संभळावी त्रण वखत वासक्षेप नांखी गुरु० नित्थारपारगाहोह कहे भने शिष्य इच्छं कहे.
सात खमासमण विधि.
पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगल महाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांच उपधान नामस्तव अध्ययन उद्दिसश्रो. गुरु कहे उद्देसामि. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दइ संदिसह भणामि गुरु कहे वंदित्तापवेह इच्छं वही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हें प्रथम उपधान पंचमंगल महा१. श्रावक श्राविकाने उपधानमां त्रण नवकाररूपज नंदिसूत्र संभलावबुं श्रा प्रमाणे हरिप्रश्नमां लखेल छे.
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श्री जैन
व्रत विधि
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तस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांचमुं उपधान नामस्तव अध्ययन उदिडुं इच्छामो अणुस गुरु कहे उदि खमासमणाणं इत्थेणं सुत्तेणं प्रत्थेणं तदुभयेणं जोगं करिजाहि, गुरुगुणेहिं बुढिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहेतहत्ति. पछी खमा० दइ कहे तुम्हाणं पबेइयं संदिसह साहूणं पत्रेएमि. गुरु कहे पवेह शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दह नंदने नवकार गणवपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आहे. या वखते गुरु तथा सकल संघ सर्वेना मस्तक उपर वासक्षेपवाळा भक्षत नांखे. (प्रदक्षिणा कर्या पहेला संघमां चोखा वहेंचवा) पछी खमा० दइ कहे तुम्हाणं पवेइयं साहुखं पवेइयं संदिसह काउरुसगं करोमि गुरु कहे कह. इच्छं कही खमा दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हें प्रथम उपधान पंचमंगल महा श्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांचमुं उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देसावणी करोमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी पत्रेय कराव,
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उपधान
विधि.
॥ २४ ॥
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पवेण विधि.
प्रथम खमा० दइ इरियावदी पडिक्कमी एक लोगस्सनो काउसग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छा० संदिसह भगवन् ! पवेरणा मुहपति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेह. शिष्य इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहे. पछी नांदणा बे देवा. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पवेयणुं पवेउं ? गुरु कहे पवेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छकारी भगवन् । तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांच उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देसावणी, नंदिकरावणी, देवबंदावणी, नंदिपुत्र संभलावणी, पूर्वचरणपदपइसरावणी पाली तप करशुं. गुरु कहे करजो शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! पञ्चखाण करावो. गुरु प्रथम दिवसे उपवास अथवा आयंबिल करावे पच्चरकाण कर्षा पछी वांदा वे देवा. पछी खमा० दइ इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहु. गुरु कहे संदिताहो. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दह इच्छाकारेण संदिसह ! बेसखे ठाउं गुरु कहे ठाजो शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ अविधि आयातना मिच्छामि दुक्कडं इति पत्रेय.
पछी शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! हितशिक्षा प्रसाद करोजी. गुरु नीचे प्रमाणे हितशिवा आपे.
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श्री जैन व्रत विधि.
उपधान विधि.
नाणं पयासगं सोहो तवो संजमो अ गुत्तिधरो। तिण्हपि समायोगे मुस्को जिणसासणे भणिो ॥ १ ॥ भुक्तिकनी वरमाला, सुकृत जलाकर्षणे घटीमाला। साक्षादिव गुणमाला, माला परिधीयते धन्यैः ॥२॥
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इति उपधानप्रवेशविधि.
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हमेशा सवारना करावधानी क्रिया.
. पौषध विधि. खमा० दइ इरियावहि पडिक्कमी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग (चंदेसु निम्मलयरा सुधी) करी पारी प्रगट लोगस्स | कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! पोसह सहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेहो. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दइ इच्छा• संदिसह भगवन् ! पोसह संदिसाहुं १ खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! पोसह ठाउं ? एम कही एक नवकार गणी इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पोसहदंडक उच्चरावोजी एम कहे. पछी गुरु नीचे प्रमाणे पाठ बोले.
पोसह पच्चक्खाण. करोमि भंते ! पोसहं आहारपोसहं देसओ सव्वओ, सरीरसकारपोसहं सम्बो बंभचेरपोसहं सव्वओ, अव्वावारपोसहं सव्वओ चउविहे पोसहे ठामि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवमि तस्स भंते ! पोडकमामि निंदामि
१ वरेक वखते गुरु आदेश मापे त्यारे शिष्य इच्छ कहे. २ उपधानमा अहोरात्रिना ज पौषध करवाना होय छे एटले दिवसनो पाठ लख्यो नथी.
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श्री जैन
व्रत विधि
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रिहामि अप्पाणं वोसिरामि.
पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! सामायिक मुद्दपत्ति पडिलहुं ? मुहपत्ति पडिलेही खमा० दइ इच्छा • संदि ० भगवन् ! सामायिक संदिसाहुं ? इच्छं खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! सामायिक ठाउं ? इच्छं कही एक नवकार गण इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी सामायिकदंडक उच्चरावोजी एम कहेवुं. पछी गुरु नीचे मुजब पाठ उच्चारावे. सामायिक पञ्चक्खाण.
करेमि भंते ! सामाइयं, सावज्जं जोगं पञ्चरकामि जाव पोसहं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेां मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि..
पछी खमा० दह इच्छा ० संदि० भग० बेसणे संदिसाहुं ? इच्छं खमा० दइ इच्छा ० संदि० भगवन् ! बेसणे ठाउं ? इच्छं खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं, खमासमण दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! सज्झाये करूं ? इच्छं कही त्रण नवकार गयी खमा० दह इच्छा • संदिसह भगवन् ! बहुवेल संदिसाहु ? इच्छं खमा० दइ इच्छा०
१. पौषधना आदेशोमां बीजा दिवसे पण सज्झाय करूं एमज आदेश मांगवी एवो सेनप्रश्नमां पण पाठ .
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॥ २६ ॥
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संदि० भगवन् ! बहुवेल करशुं ? इच्छं खमा० दइ इच्छा० संदि० मगवन् ! पडिलेहण करूं ? इच्छं कही ( पडिलेह पहेला करी होय तो) अत्रे मात्र मुहपति पडिलेहवी. पछी खमो० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पडिलेइया पडिलेहावोजी. इच्छं खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! उपधि मुहपत्ति पडिलेहुं । इच्छं कही मुहपाते पडिलेही खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! उपधि संदिसाहुं ? इच्छं खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् उपधि पडिले हुं ? खमा० दह प्रविधि प्रशासनामिच्छामि दुक्कडं मांगवो. ते पछी नीचे मुजब पवेयखानी क्रिया करवी.
पवेषणानी क्रिया.
मा० दइ इरियावद्दी करी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी ( चंदेसु निम्मलयरा सुधी) पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! वसति पवेउं ? खमा० दइ भगवन् ! शुद्धावसहि. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! पवेणा मुहपत्ति पडिले हुं ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी वे वांदणा देवा. पक्की इच्छा० संदि० भगवन् ! पवेयणु वेडं ? एम कहे. गुरु कहे पवेद. शिष्य कई इच्छं. पी खना० दइ कड़े इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम् पहेलुं उपधान पंच१ कंदोरो छोड्यो होय तेणे पडिलेइया पडिलेहाबोजी ए आदेश इरियावद्दी कर्या पछी मांग वो.
२ जेटला उपधानना नाम लेवानी जरूर होय तेनाज नाम बोलवा. सुगमता माटे अत्रे वधाना नाम लख्या के, तथापूर्व चर पद विगेरे पदो वांचना प्रमाणे बोलवा.
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उपधान
श्री जैन प्रत विधि.
विधि.
॥ २७॥
मंगलमहाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांचसु उपधान नामस्तव अध्ययन, (बीजु उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, चोथु उपधान चैत्यस्तव अध्ययन, छटुं श्रुतस्तव सिद्धस्तव मध्ययन.) पूर्वचरण पदपइसरावणी (जे उपधाननी चे वाचना होय तेमा पहेली न थइ होय त्या सुधी) उत्तरचरणपदपइसरावणी (बीजी वांचना न थइ होय त्यां सुधी) भने जे उपधानमा त्रण वांचना होय त्यां पूर्वचरण पदपइसरावणी (पहेली वांचना न थइ होय त्यां सुधी.) क्रमागतपदपइसरावणी (बीजी वांचना न थइ होय त्यां सुधी) उत्तरचरण पदपइसरावणी (त्रीजी वांचना न थइ होय त्यां सुधी) अने जे उपधाननी एक वांचना होय त्यां पूर्वचरण, क्रमागतचरण, उत्तरचरणपदपइसरावणी पाली (उपवास अथवा प्राबिल होय तो) तप करशुं, (नीवी एकासगुं होय तो) पारगुं काशुं एम कहे. गुरु कहे करजो. शिष्य कहे इच्छं, खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चरकाण करावोजी, पछी गुरु उपवास, भायबिल अगर नीवी जे पच्चरकाण होय ते करावे.
पछी बांदणाचे देवा. पछी खमा० दइ इच्छाकारेण संदि० भगवन् ! बेसणे संदिसाहु ? खमा० दइ इच्छा संदि० | भगवन् ! बेसणे ठाउं ? खमा० दइ प्रविधि आशातना मिच्छामि दुकडं.
हवे पवेय' कर्या पछी राइ मुहपत्ति पडिलेहवी. ..
米米米杀出米%深深深深%未出米肃器端米
२७॥
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米米米米米米米米%架出米肃杀出休中
राइ मुहपत्तिनी विधि. प्रथम खमा० दइ इरियावही पडिक्कमी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्म कहेवो. पछी खमा० दह इच्छा० संदि• भगवन् ! राइ मुहपत्ति पडिले हुं ? इच्छ, कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी चे बांदणा देवा, पछी इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! राइ भालोवू ? इच्छं भालोएमि जो मे राइनो अइमारो ए पाठ संपूर्ण कहेवो. पछी सव्वस्सवि राइग्रं कहाँने जो पदस्थ मुनि होय तो बौदखाबे देवा अने अपदस्थ होय तो खमा० दइ इच्छकार सुहराइनो पाठ कहीने अब्भु. हिमो खामवो. पछी वांदण्यांबे देवा. खमा० दइ प्रविधि माशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगो.
सांजनी क्रियानी विधि. प्रथम खमा० दइ बहुपडिपुनापोरिस कही खमा० दइ इरियावहि पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! गमणागमणे आलोउं ? इच्छं, कही नीचे मुजब पाठ बोले.
इरियासमिति, भाषासमिति, एपणासमिति, पादानभंडमचनिरकेवणासमिति, पारिष्ठापनिकासमिति, मनगुप्ति, वचनगुप्ति. कायगुप्ति ए अष्टप्रवचनमाता सामायिक पोसह लीधे रुडी पेरे पाळथा नहि. जे काइ खंडन विराधना हुइ होय ते सवि हुं मन, वचन, कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं. पछी खमा० दइ इच्छा० संदिसह भगवन् ! पडिलेहण करूं ? इच्छं
१ पौषधमा वडीनीति, लघुनीति करी तथा काजो परठुवी इरियावही करी गमणागमणे अवश्य आलोक्वा- (प्राचीन समाचारी)
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।
उपधान
श्री जैन व्रत विधि
विधि
॥ २८॥
术%术中杀出杀杀杀梁榮忠米需带来杀%法术。
कही खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! पोसहशाळा प्रमाणु ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पडिलेहणा पडिलेहावोजी ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छा० संदिसह भगवन् ! उपधि मुहपत्ति पाडेलेहुं ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! सज्झाय करूं ? इच्छं कही नीचे मुजब सज्झाय कहेवी.
सज्झाय. | मन्ह जिणाणं आणं मिच्छं परिहरह धरह सम्मतं । छठिवह आवस्तयामि उज्जुत्तो होइ पइदिवसं ॥१॥ | पव्वेसु पोसहवयं दाणं सीलं तवोअभावो अ । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयणाय ॥२॥ जिणपुआ जिणथुणणं, गुरुथुम साहम्मियाणवच्छल्लं । ववहारस्सय शुद्धि, रह जत्ता तित्थजत्ता य ॥३॥ उवसमविवेकसंवर भासासमिइ छजीवकरुणाय । धम्मिअजण संसग्गो करणदमो चरणपरिणामो॥४॥ संघोवरि बहुमाणो, पुत्थयलिहणं पभावणातित्थे । सड्डाण किच्चमेयं, निच सुगुरुवएसेणं ॥५॥ __ पछी खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! उपधि संदिसाहुं ? इच्छं कही समा० दइ इच्छा. संदिसह भगवन् ! उपधि पडिले हुं ? इच्छं खमा० दइ प्रविधि माशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगचो. ।
१ स्त्रीए ऊभा ऊभा कहेवी अने पुरुषोए बेसीने कहेवी.
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本法米法器法朵朵%浴决杀烹茶串带条%法术
संध्यानी विधि. खमा० दइ इरियावही करी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बसति पवेउं ? इच्छं खमा० दइ भगवन् ! शुद्धावसहि ? गुरु कहे तहत्ति. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुँ ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. जेणे उपवास कर्यो होय तेणे खमा० दइ अने खाधुं होय तेणे वे वांदणां दइ पञ्चरकाण कर. पछी बधाए बे वांदणां देवां. ____खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बेपणे ठाउं ? इच्छं कही खमा० दइ अविधि पाशातना मिच्छामि दुक्कडं.
देवसी मुहपत्ति. खमा० दइ इरियावही करी एक लोगस्सनो काउसग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! देवसी मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेही वांदणा चे देवा. पछी इच्छा० संदि. भगवन् ! देवसिमं
१ साधु साथे प्रतिक्रमण करनारे श्रावकने देवसी मुहपत्तिनी विधि करवानी नथी. श्राविकाए राइ तथा देवसी मुइपत्ति बने अवश्य करबानी छे.
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श्री जैन व्रत विधि.
| उपधान विधि.
॥२९॥
半米出%%米米米米除%深深%米諾深*
मालोउं ? इच्छं कही जो मे देवसिमो भइमारो ए पाठ संपूर्ण कहेवो. पछी सम्बस्सवि देवासिय दुचिंतियनो पाठ कहीने
जो पदस्थ मुनि होय तो वांदणांबे देवा भने अपदस्थ होय तो खमा० दइ इच्छकार सुहदेवसिनो पाठ कही भभुडिओ | खामवो. पछी बांदणां वे देवा, पछी खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! स्थंडिल शुद्धि करुं ? इच्छं कही खमा० दइ | इच्छा संदि० भगवन् ! दिशि प्रमाणु ? इच्छं कही खमा० दइ अविधि भाशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगवो. (श्रावके स्थंडिल पडिलेहुंनो एक जमादेश मांगवो भने श्राविकाए स्थंडिलनोअने दिशि प्रमाणुएम बन्ने आदेश मांगवा)
वांचनाविधि. खमा० दइ इरियावहि करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! वसति पवेउं ? इच्छं कही खमा० दइ भगवन् ! सुद्धावसहि ? गुरु कहे तहत्ति० पछी खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! वायणा मुहपति पडिले हुँ ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी बांदगा बे देवा. पछी खमा० दइ इच्छा संदि० भगवन् ! वायणा संदिसाहुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छा० संदिसह भगवन् ! वायणा लेशुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी वाय
१ बायणा सवारना कोइ कारणे रही जाय तो सांजनी क्रिया पहेला वांचना लइ शकाय छे. पवेयणु कराया पछी वांचना प्रापवी. पवेणा पछी पारे तरत ज बांचना आपवामां आवे छे त्यारे वसतिपबेउं अने भगवन् ! शुद्धावसहीना आदेश न मांगवा.
1 २९॥
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याप्रसाद करोजी. पछी गुरु जे वांचना आपवानी होय तेनुं एक पद बोले. शिष्य ते प्रमाणे उच्चार करे पछी तेनो अर्थ समजावे. अंते गुरु, निथारपारगाहोह गुरुगुणेहिं वड्ढिजाहि कहे. शिष्य तहत्ति कहे. खमा० दइ अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगो. वचनाना दिवसे बायणा संबंधी जेने जे उपधान होय तेना २५ खमासमण भत्रे देवा. श्रावक चैत्यवंदन मुद्रा ने भाविका ऊभी रहीने वांचना ले. वांचना नवकार विना व्यापवी, एम श्री हिरप्रश्नमां कयुं छे. उपधाननी वांचना.
पहेलुं उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, ( नवकारनुं ) दिवस १८, कुल तप १२॥ उपवास. वांचना बे. पहेली वांचना पांच उपवासे.
पहेली वांचना.
नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं बीजी वाचना साडासात उपवासे.
बीजी वांचना.
एसो पत्र नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥
बीजं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध ( इरियावहि, तस्स उत्तरी ) दिवस १८, कुल तप १२॥ उपवास. वांचना वे.
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श्री जैन व्रत विधि
॥ ३० ॥
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पहेली पांचना पांच उपवासे.
पहेली बांधना
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं इच्छामि पडिक्कमिउं ॥ १ ॥ इरिया विराहए || २ || गमणागमखे ॥ ३ ॥ पाणक्कमणे बीयक्कमणे हरियक्कमणे, मोसा उसिंग पराग दग महि मक्कडासंताणा संकमणे ॥ ४ ॥ जे मे जीवा विराहिया ॥ ५ ॥ बीजी वांचना साडासात उपवासे.
बीजी वांचना.
एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ॥ ६ ॥ अभिहया वत्तिया, लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उदविया ठाणा ओठाणं संकामिया जीवियाश्रो ववरोविया तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
तस्स उत्तरी करणेणं पायच्छित करणेणं, विसोहीकरणेणं विसल्लिकरणेणं पावाणं कम्माणं निघायट्ठा ठामि काउस्सग्गं ॥ ८ ॥
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उपधान
विधि.
॥ ३० ॥
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त्रीजु उपचान शक्रस्तव मध्ययन (नमुत्थुषं) दिवस ३५, कुन तप १९॥ उपवास, वांचना त्रण. पहेली वांचना त्रम उपवासे.
- वांचना पहेली. नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ॥ १॥ आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं ॥२॥ पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवरगंधहत्थीणं ॥ ३॥ .. बीजी वाचना भाठ उपवासे.
. बीजी वाचना. लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपइवाणं लोगपजोगगराणं ॥ ४॥ अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, ॥ ५॥ धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कबहीणं ॥ ६ ॥
त्रीजी वांचना साडामाठ उपवासे.
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श्री जैन बत विधि.
उपधान: विषि.
॥३१॥
出半米4%毕米米米%米米出米法米米%架中
श्रीजी वाचना. अप्पडिहयवरनाण, दंसणधराणं, विअदृछउमाणं ॥ ७॥ जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं | तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ॥ ८॥ सव्वन्नुणं सव्वदरिसिणं, सिवमयलमरुपमणंतमख्खय मव्वाबाहमपुणरावित्ति सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं | जियभयाणं ॥ ९ ॥ जेम अइया सिद्धा जेन भविस्संति णागए काले, संपइन वट्टमाणा सव्वे | | तिविहेण वंदामि ॥१०॥ .. चोथु उपधान चैत्यस्तव अध्ययन (अरिहंतचेइमाणं-ममत्थ ) ४, कुल तप २॥ उपवास, वांचना एक.
. वाचना. अरिहंतचेइआणं करेमि काउस्सग्गं ॥ १ ॥ वंदणवत्तिाए पुअणवत्तिाए, सक्करवत्तिाए | * सम्माणवत्तिआए, बोहिलाभवत्तिाए निरुवस्सग्गवत्तिाए ॥२॥ सद्धाए मेहाए धिइए धारणाए
अणुप्पेहाए वड्डमाणिए ठामि काउस्सग्गं ॥ ३॥
॥३१॥
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******************
अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिए छीपणं जंभाइएणं उडएणं वायनिसग्गेण भमलिए पिसमुच्छा हुमेहिं अंग संचालेहिं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं एवमाइ श्रागारेहिं भगोविराहियो हुज्ज मे काउस्सग्गो जाव अरिहंताणं मगवंताणं नमुक्कारेणं न पारोमिताव कार्य ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥
पांच उपधान नामस्तव अध्ययन. ( लोगस्स ) दिवस २८ कुल तप १५॥ उपवास, वांचना त्र पहेली वांचना ण उपवासे.
पहेली वांचना.
लोगस्स उज्जो गरे धम्मतित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं चउविसंपि केवली ॥ १ ॥ बीजी वांचना ६ उपवासे.
बीजी वांचना.
उसभमाजिनं च वंदे संभवमभिणंदणं च सुमई च । पउम्मप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥ २ ॥ सुविहिं च पुष्पदंतं सीमल सिज्जंसवासुपूज्जं च, विमलमणतं च जिणं धम्मं संतिं च
******63636363**
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उपधान
श्री जैन व्रत विधि.
विधि
不品不杀的黑米米米米米米米米米%
वंदामि ॥ ३॥ कुंथु अरं च मल्लिं वंदे मुणिमुवयं नमिजिणं च । वंदामि रिडनेमि पासं तह वद्धमाणं, च ॥४॥ त्रीजी वांचना ६॥ उपवासे.
त्रीजी यांचना. ___ एवं मए अभिथुआ विहुयरयमला पहीणजरमरणा, चउविसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसी. यंतु ॥५॥ कित्तिय वंदिय महिमा जेए लोगस्स उत्तमा सिद्धा, आरुग्ग बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ ६ ॥ चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगंभीरा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥७॥ - छडु उपधान श्रुतस्तव सिद्धस्तव अध्ययनं ( पुक्खखरदीवड्डे, सिद्धाणं बुद्धाणं वैयावच्चगराणं ) दिवस ७, कुल ४॥ उपवास, वांचना बे. पहेली वांचनाचे उपवासे. पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ संडे अ जंबुदीवे अ। भरहेरवयविदेहे धम्माइगरे नमसामि ॥१॥
柴米杀出米米米米米%术%米%术法术%术%
॥३२॥
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तमतिमिरपडलविद्धंसणस्त सुरगणनरिंदमहिअस्स। सीमाधरस्त वंदे पप्फोडिअमोहजालस्त ॥२॥ जाइजरामरणसोगपणासस्स कल्लाणपुरकलविसालसुहावहस्त । को देवदाणवनरिंदं गणचिअस्स धम्मस्त सारमुवलब्भ करे पमायं ॥३॥ सिद्धे भो पयो णमो जिणमए नंदि. सया संजमे देवं नागसुवन्नकिन्नरगणस्सब्भुप्रभावच्चिए । लोगो जत्थ पइट्ठिओ जगमिणं तेलुक्कमच्चासुरं धम्मोबड्डउ सासओ विजयो धम्मुत्रं वड्डउ ॥४। सुअस्त भगवमो करेमि काउस्सग्गं ॥ ___ बीजी वांचना २॥ उपवासे.
' बीजा वचना.. सिद्धाणं बुद्धाणं पारगयाणं परंपरगयाणं लोअग्गमुवगयाणं नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥१॥ जो देवाण वि देवो जं देवा पंजलि नमतंति तं देवदेवमहिमं सिरसा वंदे महावीरं ॥ २॥ इकोवि नमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स संसारसागराओ तारेइ नरं व नारिं वा ॥ ३ ॥ उर्जित
米出浴%器密卷%术来%米%米米米米米米
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ ३३ ॥
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सेल सिहरे दिरका नाणं नीसिहिया जस्स तं धम्मचक्कवहिं अरिनेमिं नम॑सामि ॥ ४ ॥ चारि अट्ठ तस दोय वंदिया जिणवरा चउव्वीसं परमड निट्टिट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ५ ॥ वैयावञ्चगरामं संतिगराणं सम्मदिट्टिसमाहिगराणं करोमि काउस्सगं ॥
वचनाना दिवसे स्त्रीवर्ग माथामां तेल नांखी शके छे. माधुं श्रोळी शकातुं नथी, पुरुषवर्गने उपधान तप पूरुं थतां सुधी क्षौर (मुंडन ) करावी शकातुं नथी.
काउस्सग्ग विधि.
खमा० दइ इरियावदी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! प्रथम उपधान पंचमंगल स्कंध आराधनार्थं काउस्सग्ग करूं ? इच्छं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिश्राए अन्नत्थ कही १०० लोगस्सनो काउरसग्ग चंदेसु निम्मलयरा सुधी करवो. पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. उपधान बदलाय त्यारे नाम पण बदलबुं
खमासमण.
खमाणमनो पाखो पाठ शुद्ध उच्चारी संडासा बराबर पडिलेही पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधाय नमो नमः एम कही खमासमय १०० देवा अधर रहीने खमासमण न देवा. शक्ति न होय तो गुरुमहाराज पासे रजा लइ बेठा बैठा देवा. अत्रे
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उपधान
विधि.
॥ ३३ ॥
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पण उपधान बदलाय त्यारे नाम बदलवं.
नवकारवाली.
पहेला, बीजा, चोथा भने छट्टा उपधानबालाए नवकारनी बाधा पारानी हंमेश वीश नवकारवाली गणवी, अने श्रीजा तथा पांचमा उपघानवालाए लोगस्सनी ऋण नवकारवाली गयावी. नवकारवाली श्रोछामां श्रोछी पांच साथे गणवी. नवकारवालीने बदले में हजार गांथा प्रमाण जीवविचार, नवतन्त्र आदि प्रकरणनो पाठ करवो पण ठीक छे.
उपवास थवानी विधि.
४५ नवकारसहिए २० पोरसीहए १८ साढपोरसीए १६ दुबिहार पुरिम, १२ तिविहार पुरिमढे ८ चउविहार पुरम, १० तिविहार अवड्ढे ६ चंउविहार अवढे ८ विभासणे ४ एकासये ३ निविए २ आयंबिले एक उपवास थाय छे. अत्रे मात्र एकास, आयंबिल भने पुरिमदु तपनो संबंध होवाथी ते खास ध्यानमा राखवानुं छे.
हमेशां उपधानवालाए करवानी क्रिया. १ बने टंक प्रतिक्रमण करकुं, तेमां सवारे प्रतिक्रमणना अंते अहोरात्रिनो पोसह लेवो.
२ बे टंक पडिलेहण कर. ३ण ढंक देव चांदवा.
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श्री जैन व्रत विधि
॥ ३४ ॥
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४ दहेरासरे दर्शन करी त्यां भाठ स्तुतिपूर्वक देव वांदवा. ५ सो लोगस्सनो एक साधे काउस्सग्ग करवो.
पहेला, बीजा, चोथा अने बट्टा उपधानवालाए वीश नवकारवाली बाधा पारानी गणवी. त्रीजा ने पांचमा उपधानवाला पण श्रण नवकारवाली लोगस्सनी गणवी.
७ दररोज पोताना उपधानना नामपूर्वक सो खमासमणां देवा.
८ उपवास, भांबिल अथवा एकासकामां पाणी पीवुं होय त्यारे पञ्चकखाण विधिपूर्वक पाळवू.
९ एकाशन के बिलमां उठती वखते दिवसचरियं तिविहारनुं पञ्चकखाण कर, अने उठ्या पछी इरियावही करी जग चिंतामणिनुं चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत करवुं.
१० सवारे फरीने गुरुमहाराज पासे पोसह लेवो, प्रवेदन कर भने राह मुहपत्ति पडिलेहवी. ११ सांजे गुरुमहाराज पासे पडिलेहयना आदेश मागरा, प्रवेदन करवुं देवसी मुहपति पडिलेहवी. १२ रात्रे संथार पोरिसि मणाववी.
१३ सवारना छ घडी दिवस चढे त्यारे पोरिसी भयाववी.
आलोयणामां दिवस था कारणथी पडे छे ?
१. नीनी के प्रांतील करीने उठ्पा पछी उलटी थाय तो.
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उपधान
विधि.
॥ ३४ ॥
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२ अन एटुं मूकवामां आवे तो. ३ सचित्त, काची विगय, लीलोतरी खावामां आवे तो. ४ पञ्चक्खाण पारदुं भूली जवाय तो.. ५ भोजन कर्या पछी चैत्यवंदन रही जाय तो. ६ दहेरासर जq भूली जाय तो.. ७ देव वांदवा भूली जाय तो.. ८ रात्रे सांजनी क्रिया कर्या पछी भने सवारनी क्रिया कर्या पहेला स्थंडिल जाय तो. ९ पोरिसी मणाव्या विना सुइ जाय तो, उघी जाय तो अगर पोरिसी बीलकुल भणावे जनहीं तो. १० मुहपत्ति भूली जाय अने सो डगला जाय तो. ११ मुहपत्ति अगर बीजा उपकरणो खोइ नांखे तो. १२ श्राविकाने ऋतु समये ऋण दिवस .. १३ मांखी, माकड, ज विगेरे त्रस जीवो पोताना हाथे मरी जाय तो. उपर मुजब थाय तो दिवस पडे एटले तप लेख लागे पण पोषध जाय एटले तेटला पौषध पाछळधी करवा पडे ते
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भी जैन बत विधि
उपधानविधि.
॥३५॥
पौषध जो उपधाननी साथे साथे मेळा ज करे तो भाबिल मादि तप करी शकाय पण उपधानमाथी नीकळ्या पछी करवामां भावे तो उपवास तपपूर्वक ज पाठ पहोरना पौपध करवा पडे.
नीचेना कारणोथी सामान्य भालोयण भावे छ १ पडिलेह्या विनानुं वस्त्र पात्र वापरे तो. २ मुहपत्ति भने चरवलानी भाड पडे तो. ३ मोढामांथी एलु नीकळे तो.. ४ लुगडामांथी के शरीरमाथी जू नीकळे तो. . ५ नवकारवाली गणतां पडी जाय तो अथवा खोइ नांखे तो. ६ रुना पुंबडा कानमा रात्रे न नांखे तो, अथवा खोइ नाखे तो. ७ स्थापनाजी पडी जाय तो. ८ पुरुषनो स्त्रीने अने स्त्रीनो पुरुपने संघट्टो थाय तो. ९ काजामांथी जीवनुं कलेवर नीकले तो. १० पडिलेहण करता, नोकारवाली गणता अने खाता बोले तो.
॥ ३५॥
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११ तिर्यचनो संघटो थाय तो. १२ (एकेंद्रिय) सचित्तनो संघेट्टो वाय तो. १३ दिवसे निद्रा ले तो. १४ दिवानी के विजळीनी उजेही लागे तो. १५ माथे कामळी नाखवाना काळमां कामळी नख्या विना खुनी जग्यामा जाय तो. १६ वरसाद आदिना काचा छांटा लागे तो.. १७ वाडामा स्थंडिल जाय तो. १८ वेठा पडिकमणुं करे तो. १६ बेठा खमासमण देवे तो. २० उघाडे मुखे बोले तो. मा उपरांत वीजा पण भनेक कारणे भालोयण मावे छे ते प्रसंगोपात जाणी लेबी.
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श्री जैन व्रत विधि.
मालारोपण विधि.
॥३६॥
मालारोपण विधि. - शुभ मुहूर्ते पंचवरणी हीरकुसुमयुक्त एक सो आठ तांतणावाळी माला घरथी महामहोत्सवपूर्वक संध्या समये गुरु समीपे प्राणी, वासक्षेपथी प्रतिष्ठावी महामहोत्सव सहित घर प्राणी, पाट उपर मुकी रात्रिजागरण करवू. पछी सवारना (माल पहेरवाना दिवसे ) श्रीफल. प्रवत आदि लइ खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! वसति पवेउं ? गुरु कहे पवेश्रो शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छा० संदि० म० शुद्धावसहि. गुरु कहे तहत्ति. शिष्य कहे इन्छ
नांद मांडी होय त्यां आवी नांदने नवकार गणबापूर्वक त्रण प्रदक्षिणा मापे. पछी सचित्त वस्तु मृकी दइ खमा० दह इरियावही करी एक लोगस्सनो (चंदेसु निम्मलयरा सुधी) काउसग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दह इच्छा० संदि• भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी बांदणांचे देवा. खमा० दइ इच्छ. कारि भगवन् ! पसाय करी तुम्हे अम्हं पहेलु उपचान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीचं उपधान शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उपचान चैत्यस्तबअध्ययन, पांचमु उपधान नामस्तवमध्ययन, छ8 उपधानश्रुतस्तव, सिद्धस्तवमध्ययन समुद्देसमो? गुरु कहे समुद्देसामि, शिष्य कहे इच्छं पछी खमा०दइ संदिसह किं भवामि गुरु कहे वंदित्तापवेह शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अझ पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उपधान चैत्यस्तवमध्ययन, पांचहुं उपधान नामस्तवमध्ययन,
॥३६॥
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| छटुं उपधान श्रुतस्तवसिद्धस्तवमध्ययन समुद्दिछं इच्छामो मणुसहि, गुरु कहे समुदिई समुद्दिढे खमासमणाणं हत्थेणं
सुत्तेणं पत्थेणं तदुभयेणं थिरपरिचियं करिजाहि, शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि ? गुरु कहे पवेह, शिष्य कहे इच्छं, खमा० दह ऊभा रही एक नवकार गणवो. पछी खमा० दइ कहे. तुम्हाणं पवेहयं साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सरगं करेमि ? गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं | पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शकस्तवमध्ययन, चोधू उपधान
चैत्यस्तवमध्ययन, पांच, उपधान नामस्तव अध्ययन, छई उपधान श्रुतस्तव, सिद्धस्तवमध्ययन समुदेसावणी काउस्सग्गं करूं ? गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजें उप० शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवमध्ययन, पांच उप. नामस्तवअध्ययन, छटुं उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवअध्ययन समुदेसावणी करेमि काउस्सगं अन्नत्य कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग (सागरवरगंभीरा सुधी) करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी शिष्य इच्छामि खमासमणो वंदिरं जावणिजाए निसिहिमाए एटलुं कही ऊभो रहे. गुरु कहे तिविहेण, शिष्य कहे मत्थएण बंदामि.
पछी इच्छा० संदि० भगवन् ! वायणा संदिसाहुं ? गुरु को संदिसावेह. शिष्ध कहे इच्छ. खमा० दइ इच्छा० संदि०
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भी जैन
उपधानविधि
व्रत विधि.
॥३७॥
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भगवन् ! वायणा लइ. गुरु कहे लेजो. शिष्य कहे इच्छं. पछी शिष्य इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिजाए निसिहिनाए कही ऊभो रहे. गुरु कहे तिविहेण, शिष्य कहे मत्थएण वंदामि. पछी इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसणे संदिसाहूं? गुरु कहे संदिसावेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ इच्छा. संदि. भगवन् ! बेसणे ठाउं ? गुरु कहे ठाजो. शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ प्रविधिमाशातना मिच्छामि दुक्कडं. इति समुद्देश
अनुज्ञाविधि. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहुं ? गुरु कहे पडिलेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी वांदणां वे देवा. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजु उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, श्रीजुं उप० शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवमध्ययन, पांचमु उप० नामस्तवअध्ययन, छटुं उपधान श्रुतस्तव सिद्धस्तवअध्ययन अणुजाणावणी नंदिकरावणी वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि. शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरु सात नवकारथी वासक्षेप मंत्रीने नवकार त्रण गणवापूर्वक त्रण वार सर्वेना मस्तक उपर नांखे. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पहेलु उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध, बीजं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजु उप० शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवमध्ययन, पांचमुं उप० नामस्तवअध्ययन, छ8 उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवअध्ययन अणुजाणावणी
॥३७॥
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नंदिकरावणी, देव वंदावो. गुरु कहे बंदेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छा. संदि० भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ? गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरुए उपधानप्रवेशविधिमा लख्या मुजब देववंदन जयवीयराय पर्यंत करावq. पछी प्रतिमाजीने पडदो करावी वांदणांबे देवा. पछी पडदो दूर करी ऊभा रही इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उप. शक्रस्तवअध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवअध्ययन, पांचभु उपधाननामस्तवअध्ययन, छटुं उप. श्रुतस्तवसिद्धस्तव अध्ययन अणुजाणावणी, नंदिकरावणी वासनिक्षेप करावणी देववंदावणी नंदिसूत्र संभलावणी काउस्सग्ग करावो. गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. पहेलु उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उप० शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उप. चैत्यस्तवअध्ययन, पांचमुं उप. नामस्तवमध्ययन, छटुं उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवअध्ययन अणुजाणावणी, नंदिकरावणी, देवबंदावणी, नंदिसूत्र संभलावणी करेमि काउस्सग्ग, गुरु पण खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! प्रथम उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, चीजें उप० प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध, त्रीजु उप० शक्रस्तवअध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवअध्ययन, पांचमुं उप. नामस्तवअध्य
उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवमध्ययन अणुजाणावणी नंदिसूत्र कड्डावणी काउस्सग्गं करूं? इच्छं. प्रथम उप. पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजु उप० शक्रस्तवअध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवअध्ययन, पांचU उप० नामस्तवअध्ययन, छ8 उप० श्रुतस्तवसिहस्तवअध्ययन अणुजाणावणी नंदिसूत्र कटावणी करेमि काउ
शन.
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श्री जैन व्रत विधि
॥३८॥
स्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग ( सागरवरगंभौरा सुधी ) गुरु शिष्य बने जणे करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नंदिसूत्र संभलावोजो. गुरु कहे सामळो. शिष्य कहे इच्छं. गुरु खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! नंदिसूत्र कहूं ? इच्छं कही त्रण नवकार गणवापूर्वक त्रण वार मस्तक उपर वासक्षेप नांखी नित्थारपारगाहोह गुरुगुणेहिं वड्विजाहि कहे. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पहेलु उप० पंचमंगल महाश्रुतस्कंध, बीजु उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजु उप० शक्रस्तवअध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवअध्ययन, पांचसु उप० नामस्तवमध्ययन, छ8 उप. श्रुतस्तवसिद्धस्तवमध्ययन अणुबाणह. गुरु कहे अणुजाणामि, शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ संदिसह किं भवामि ? गुरु कहे वंदित्तापवेह शिष्य कहे इच्छ. खमा० इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं पहेलु उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजु उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उप. शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उप० चैत्यस्तवमध्ययन, पांचमुं उप. नामस्तव अध्ययन, छई उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवमध्ययन अणुनाय इच्छामो अणुसहि गुरु कहे अणुभायं अणुनायं खमासमणाणं हत्थेणं, सुत्तेणं, प्रत्येणं, तदुभयेसं सम्मं धारिजाहि, गुरु गुणेहि पड्डिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि. गुरु कहे पवेह. शिष्य कहे इच्छं. शिष्य खमा० दह नंदिनी चारे बाजु अकेक नवकार गणवापूर्वक त्रय प्रदक्षिणा मापे. गुरु संघ साथे प्रण वार वासचेप नांखे. खमा० दइ तुम्हावं पवेइ साहूणं पवेइयं संदिसह काउस्सगं करेमि ? गुरु कहे करेह. शिष कहे इपर्छ।
३८॥
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खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हे पहेलु उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उप० प्रविक्रमणश्रुतस्कंध, श्रीजुं उप० शक्रस्तव बंध्पयन, चोथुं उप० चैत्यस्तव अध्ययन, पांच उप० नामस्तवव्यध्ययन, बहुं उप० श्रुतस्तव अध्ययन अणुजावणी करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग ( सागरवरगंभीरा सुधी ) करी पारी प्रगट लोगस्स कही चे वांदा दह इच्छा० संदि० भगवन् ! बेस संदिसाउं ? गुरु कहे संदिसावेद, शिष्य कहे इच्छं. पछी शिष्य खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसणे ठाउं ? गुरु कहे ठावेद, शिष्य कहे इ. शिष्य खमा० दइ अविधि आशातनामिच्छामि दुकडं. खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! पवेयथा मुहपत्ति पडिलेहुं ? गुरु कहे पडिलेह. शिष्य कहे इच्छं. कही मुहपत्ति पडिलेही, वांदणा वे दद्द, इच्छाकारेण संदि० भगवन् ! पवेषणुं पवेउं ? गुरु कहे पवेह. खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हे पहेलु उप० पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उप० प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उप० शक्रस्तव अध्ययन, चोथुं उप० चैत्यस्तवच्चध्ययन, पांचमुं उप० नामस्तत्र अध्ययन, बहु उप० श्रुतस्तवसिद्धस्तवमध्ययन समुद्देसावणी अणुजाणावणी वासनिक्षेप करावणी देवबंदावणी नंदिकरावणी नंदिपुत्र संभलावणी मालापहेरावणी पाली तप कर. गुरु कहे करजो. पछी शिष्य खमा० दह इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चरकाय करावो. गुरु कहे करेह पछी शिष्य पञ्चक्खाण करी बे वांदा दह ऊभा रही कहे इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसखे संदिसाहुं ? गुरु कहे दिसावे. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसणे ठाउँ ? गुरु कहे ठाजो- शिष्य कहे इच्छं.
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बत विधि
॥३९॥
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खमा० दइ प्रविधि भाशातना मिच्छामि दुकडं. शिष्य कहे इच्छा० संदि० भगवन् ! मम माला पहिरावो. गुरु कहे पहिरो, शिष्य कहे इच्छं.
इति मालारोपण विधि. पछी खजन संबंधी पासे ब्रह्मचर्यादि व्रतनो यथाशक्ति गुरु नियम करावी माळा तेना हाथमा आपे, त्रण अथवा सात नवकार गणीने माळा पहिरावे. त्यारपछी माळा पहेरनार माळा सहित नंदिने त्रण नवकारपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा मापे. गुरुमहाराज त्रण वार नवकार कहेता मस्तक उपर वासनिक्षेप करे. पछी शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी हितशिक्षाप्रसाद करोजी ! पछी गुरुमहाराज उपदेश प्रापे.
गाथा. कृत्वा पौषधमक्षतं प्रतिदिन सामायिकं चादरात् , व्यापार परिहत्य बंधजनकं संपूर्य शुद्धं तपः। भक्तिं तीर्थपतेर्विधाय विधिना साध्वादिसंघे ततो, धन्यैः शुद्धधनेन सौख्यजनकं स्रग्रोपणं कारितं ॥१॥ मुक्तिरमा वरमाला, सुकृतजलाकर्षणे घटीमाला। साक्षादिव गुणमाला, माला परिधीयते धन्यैः ॥२॥
माला पहेरे ते दिवसे उपवास अथवा आंबील करे. ते दिवसे रात्रिपोषध करे. माला पहेरे ते दिवसथी उत्कृष्टो छ
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मास ब्रह्मचर्य पाले. एकास करे. भूमिशयन करे. जघन्यथी दश दिवस पण पाळे. छए उपधान बहीने माला पहेरी शके अथवा वे भढारीया तथा चोकीयुं, छकीयुं. एम चार उपधान बहीने माला पहेरे पछी बाकीना वे उपधान वहन करे त्यारे पहेलुं पत्रिशुं भने पछी अट्ठावीशुं वहन करे. कोइ कारण अगर मुहूर्त्त विशेषे छकीयामही छकीयानी वे उपवासनी पहेली वचनादइने पण माला पहेरावी शकाय कारणे छकीयामहे पेसे ते दिवसे माला पहेरे तो पण चाले परंतु निष्कारणे नहि. माला दसेरा पछी पहेरखी कन्पे. माळा पहेरे ते दिवसे वार्जित्र वगडाववा. ज्ञानपूजा तथा गुरुपूजन विगेरे कर. मालाविधि संपूर्ण. थ वर्धमान विद्या.
ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ नमो अहिजिणाएं, ॐ नमो सव्वोहिजिणाणं, ॐ नमो अंतोहिजिणा, ॐ नमो अरहओ भगवच्च महावीरस्स सिज्झउ मे भयवं महइ, महाविज्जा वीरे वीरे जयवीरे सेणबीरे वद्धमाण वीरे, जयेविजये - जयंतीए अपराजीए “ ॐ ह्री अणीए स्वाहा " ए
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श्री जैन श्रत विधि.
वा ४० ॥
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सात अक्षर वासक्षेपना थालामां हाथनी अनामिका अंगुलीए आलेखीने पछी वासक्षेप मंत्रवो.
इति वर्धमान विद्या.
माला कदाच भूमि पर पड जाय त्यारे “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं ॐ नमः " ए मंत्र सात बार माळा उपर गणवो अने त्रण वार थालामां गणतो. पछी वर्धमान विद्याए वासनिक्षेप करवो.
श्रीजा - चोथा पांचमा अने छुट्ठा उपधानमां की स्थापनाचार्यथी प्रवेश कराववो पडे तो
तेनी हुंकी विधि.
प्रथम इरिया ही करो, पौषध ग्रहण करी पडिलेहखना सर्व आदेश मागत्रा पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् । वसति पत्रे ? गुरु कहे पवेह शिष्य कहे इच्छं. खमा० दद्द कहे संदि० भगवन् ! शुद्धावसहि गुरु कहे तहचि. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेहो. शिष्य कहे इच्छं. पक्षी खमा० दइ इच्छा० संदि० भग० तुम्हे अम्हं श्रीजुं उपधान शक्रस्तत्र अध्ययन ( जे उपधान होय तेना नाम देवा० ) उद्देशावणि देववंदावथि वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि. शिष्य कहे इच्छं. गुरु नवकार गणनापूर्वक ऋण वार वासनिचेप करे. पछी खमा० दइ इच्छ
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उपचान
विधि
॥ ४० ॥
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कारी भगवन् ! तुम्हे भम्हं शक्रस्तवमध्ययन (जे उपधान होय तेना नाम देवा ) उदेशावणि नंदिकरावणि वासनिक्षेपकरावणि देव वंदावो. गुरु कहे वंदावमि. शिष्य खमा. दह इच्छा. संदि. भग० चैत्यवंदन करूं ? गुरु कहे करेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी"ॐनमः पार्श्वनाथाय............"र्नु चैत्यवंदन जयवीयराय पर्यंत कर. पछी वांदणां वे देवा. पछी इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अमंत्रीजु उपचानशकर (जे उपधान होय तेनुं नाम देवु.) अध्ययन उद्देशावणी शकस्तवमध्य. भाराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा. दह प्रविधि आशातना मिच्छामि दुकडं. अहिं सात खमासमणनी विधि केटलीक प्रतामा नथी, पण सेन. प्रश्नमा पापया कहेला के ते पा प्रमाणे:-शिष्य खमा. दह इच्छा. संदि० भगवन् ! तुम्हे अम्हं त्रीजुं उपधान शक्रस्तव | अध्ययन (त्रीजु, चोथु, पांच, छह जे उप० होय तेनुं नाम देवु..) उद्देशो, गुरु कहे उद्देशामि-इत्यादि सात खमासमण समजवा
उपधान संबंधी विशेष हकीकत. नीचे जणावेल हकीकत उपधानवाहके खास ध्यानमा राखवा लायक होवाथी जुदी जुही विधियोनी प्रतोमांथो तेमज सेनप्रश्नादिकमांथी ग्रहण करवामां आवी छे.
१ जे जे सूत्रोने माटे उपधान वहन करवामां मारे छे. तेनो उद्देश उपधान वहेतां करवामां मावे अने समुद्देश तथा अनुनाबंधा सूत्रोनी माळा परिधान करती वखते करावधामा आये छे, तेमा उदेश ते सूत्रार्थ ग्रहण करवानी योग्यता,
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श्री जैन प्रविधि
॥ ४१ ॥
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समुद्देश तेनुंज विशेषप अने अनुज्ञा ते ते सूत्रोनी पठन-पाठन करवानी आज्ञारूप समज.
२ देववंदनना सूत्रो के जेना उपधान वहन करावामां आवे छे ते सिवायना बीजा सामायिकादि श्रावश्यकना सूत्रो माटे उपधान वहन करवानुं फरमान नथी. तदुपरांत चउसरण आदि चार पयन्ना अने दशवैकालिक सूत्रमा चार अध्ययन श्रावक-श्राविकाने भणवानी छूट छे. तेने माटे त्रण त्रण आंबिल करीने वांचना लेवानो विधि छे, ते गुरुगमथी जाणवो.
३ उपधान वहन कर्या भगाउ नवकारादि भगवा - मणाववामां आवे छे ते जीतव्यवहार तथा संप्रदायथी थाय छे, परन्तु ते ते मण्या पछी पहेली तके उपधान वहन करवानी जरूर छे.
४ उपधानमां के अन्य दिवसे पोसह प्रथम पहोरमांज लइ शकाय छे. प्रथम पहोर व्यतीत थया पछी लइ शकातो नथी. ५ सामान्य पौषधना एकाशनमां पण लीलोतरी शाक, पाका फल, तेनो रस वर्ज्य छे.
६ उपधान करनारा क्रिया अगाउ, क्रिया करवाना स्थानथी चोतरफ सो हाथ वस्ति शुद्ध इंमेश- सांज सवार करवानी छे. तेमां मनुष्य के तिर्यचना शत्रु के तेना शरीरनो हाड, रुधिर आदि भाग दूर कराववो. तिचनुं शब के ना शरीरनो भाग ६० हाथनी अंदर रहेवो न जोइए अने मनुष्यनो १०० हाथनी अंदर रहेवो न जोइए.
७ उपधानमा तेल चोळाव अने औषध लेवानो निषेध छे, परंतु प्रबळ कारणे गुरुनी आज्ञाथी लेवु. अंधने उपधान करवानो निषेध नथी परन्तु तेने बीजा सचक्षु मनुष्यनी सहायनी जरूर छे.
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उपधान
विधि.
॥ ४१ ॥
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९ पौषधमा कामळी नाखवाना काळ समये कटासणुं न नाखवू परंतु कामळी प्रोढीने जवू, भने ते ओढेली कामळीनो बेसवा-पाथरवामां बे घडी सुधी उपयोग करवो नहि. खीटी उपर खुल्ली करी मुकी राखवी.
१० समुदाये पडिलेहण करी काजो उद्धर्यो होय त्यारपछी कोइ एकलो पडिलेहण करे तो तेणे पण काजो उद्धरवो जोइए, नहि उद्धरे तो दिवस पडे.
११ उपधानमाथी नीकळे ते दिवसे एकासन अने रात्रिपौषध करवो जोइए. १२ चातुर्मासमा उपधान वहन करनार पाट-पाटला वापरी शके छे.
१३ छकीयाना पहेले दिवसे प्रबळ कारण होय तो माळ पहेरी शकाय छे, अने तेम करवु पडे तो ते दिवसे प्रवेदन करावी पहेली वांचना भापीने माळ पहेरावे.
१४ जे दिवसे वांचना लेवानी होय ते दिवसे सवारे लेवी, भृली जाय तो सांजे पवेय' कर्या अगाउ लइ शके. ते वखते पण भूली जाय तो बीजे दिवसे सवारे पवेयणु कर्या भगाउ लइ शके छे. ते दिवस बीजी वाचनामां गणी शकाय छे.
१५ उपधानमाथी नीकळ्या पछी जो माळ पहेरवामां आवे तो ते दिवसे उपवास करवो. १६ माळ पहेरावनारे पण ते दिवसे भोछामा ओछो एकासन तप करवो. १७ उपधान वहन करनार स्त्रीरोए मार्गे चालतां गीतगान करवू नहि. (श्री हीरप्रश्न).
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मालारापन विषि.
श्री जैन
१८ नंदि मांडवानी हकीकत श्री अनुयोगद्वारमा कही छे. व्रत विधि
१९ उपधानमा उपवासने दिवसे कल्याणक तिथि आवे भने उपधानवाहक कल्याणक तप करतो होय तो ते उप॥ ४२ ॥ वासथीज सरे.
२० आलोयण तप स्त्रीवर्ग ऋतु समयमां करे तो लेखे न जागे. (श्री हीरप्रश्न ). २१ उपधानमाथी नीकळ्या पछी माळा पहेरनारने माळा परिधान विधिमा पवेयपुं करवानो नियम नथी. २२ उपधान वाचना नवकार मंत्र विनाज पापवी. (श्री हीरप्रश्न) २३ श्रावक-श्रारिकाने उपधानमा त्रण नवकाररूपज नंदिसूत्र संभळाव.
२४ पंचमी तप उच्चरेल होय तेने छकीयामा जो छढे दिवस पंचमी भावे तो पंचमीनो उपवास भने सातमे दिवसे जरूर उपवास करवानो होवाथी छठ करवो पडे, माटे जेने छठ करवानी शक्ति न होय तेमणे छ8 दिवसे पंचमी न भावे Pएवी रीते प्रवेश करवो.
२५ उपधान तप पूर्ण थया पछीना पवेयखामां पण दिवस पडे तो दिवसनी वृद्धि थाय.
२६ पौषधमा संध्याकाळनी पडिलेहणमा पौषशाळा प्रमाणु ? ९ भादेशमाथी श्राविकाए एकासगुं, भांबील भगर उपवासना दिवसे मुहपत्ति, चरवलो,कटास',साडो (पाप),कांवळी अने साडलो छ वानानी पडिलेहण करवी.(प्रा.समाचारी)
॥१२॥
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२७ माळा संबंधी जे द्रव्य उत्पन्न थाय ते सर्व देवन्यज जाग. श्री सेनप्रश्नमा श्रीहीरपुरीश्वरजी भगवान्ना पट्टप्रमावक श्री सेनसूरिजी महाराजे सष्ट उल्लेख कर्यों छे. श्राद्धविधिमा पण देवद्रव्यनी वृद्धि माटे दर वर्षे मालारोपस कर एम कहेल ले. ए उपरांत सुकृतसागर, कुमारपाळ आदि पूर्वाचार्यकृत घणा मन्थोमां कडं छे. कलिकालसर्वज्ञ श्रीमान् हेमचंद्राचार्य महाराजनी हयातिमा पण मालारोपणनी उछामणीनुं द्रव्य देवद्रव्यमां गयाना पाठो छे.
२८ चैत्र भने मासो मासमां शुदि ७-८-९ एत्रण त्रण दिवस भने इदनो दिवस ए चार दिवसो भसज्झायना होवाथी उपधानमां गणी शकाता नथी.
२९ सव्वलोए मा चार अक्षरो केटलीक विधिमा चोथा उपधानमा चैत्यस्तवना प्रारंभमा भने केटलीक विधिमा पांचमा उपधानमा नामस्तवना भंतमा पांचना प्रापवा माटे लख्या छे. उपचान वहेवरावनारे प्रवृत्ति अनुपार तेनी वाचना प्रापवी.
३० सांजनी क्रिया प्रवीण श्राविका स्थापना समिपे पण करी शके. (हीरप्रश्न ). ३१ बरसादन मावठं अकाळष्टि कहेवाय छे, पण तेथी उपधानमा दिवस वधतो नथी. ३२ कार्तिक श्रादि प्रण चातुर्मासमां मढी दिवसनी प्रसन्झाय गयाय बे ते उपचानमां गणवानी नथी..
३३ चार अथवा छए उपधान वा पछी बार वरस व्यतीत थइ मया होय भने माळ न पहेरी होय तो त्यारपछी उपधान बघा फरीने वहन करवा पडे.
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श्री जैन व्रत विधि.
॥ ४३ ॥
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३४ जरूरी कारणे पाळी पलटाववामां आवे छे एटले वे एकासथा एक साथे कराववामां आवे छे.
३५ उपधान वहन कराववाना अधिकारी महानिशिथना जोग वहन करनारज सुनियो छे. तेमां पण जेनो शास्त्रबोध विशेष होय, क्रिया कराववामां प्रवीण होय, शुद्ध भने पूर्ण क्रिया कराववानी रुचिवाळा होय, रहस्य समझता होय तवा मुनिओए क्रिया करावी योग्य छे.
३६ एक साथे बहेवाना ४ उपधानो पैकी गाढ कारणथी जो एक के बे अढारीया ( पहेलुं बजुं उपधान ) वहन करवामां आवे अथवा एक ज श्रढारी वहन करवामां आवे तो त्यारपछी बार वरसनी अंदर बाकी रहेल उपधान वहन करी माल परे तो ते प्रथमना एक अथवा वे श्रढारीया लेखामां गणाम. बार वरसनी अंदर माल न पहेरे तो लेखामां न गयाय. अने चौथं तथा छुट्टं उपधान बहन कर्या पछी छ मासनी अंदर माळ न पहेरे तो ए वे उपधान फरीथी वहन करना पडे.
३७ उपवासने दिवसे करातुं पुरिमुड विशेष तपम गणातुं नथी, तेम मूळ विधिथी कराता उपधानना आंबिलनुं पुरिगातुं नथी. एकासथाना दिवसे जे पुरिमृड थाय छे तेन। वे भानी तप लेखे लागे छे. ३८ शुदि ५-८-१४ भने ८-१४ मा पांच तिथिए जो एकास भावे तो आंबिल कराववामां आवे छे.
३९ जो उपधान वहन करनार बालक होय, वृद्ध होग अथवा तरुण खतां अशक्त होय तो उपधान तपनुं प्रमाण पोतानी शक्ति अनुसार पूर्ण करवां. महानीशियसूत्रमां कहेल के पथ ते प्रवृति जोवामां आवती नथी.
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उपधान
विधि.
॥ ४३ ॥
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____४० उपधानमा पेठा पछी प्रथमना प्रण दिवस सुधीमा नर्बु बस्न के उपकरण घरेथी लावी शकाय छ, त्यारपछी लइ शकाय नहि.
४१ माला पहरबाना पागला दिवसे उत्तम रेशम विगेरेनी करावेली माळा महोत्सवपूर्वक वरघोडो चढावी गुरु पासे लइ जइ त्यां तेनी प्रतिष्ठा करावी पोताने घेर अथवा संघ ठरावेला स्थाने लइ जइ बाजोठ पर पधरावी त्या माळा पहेर नारे रात्रिजागरण कर. परमात्मानी स्तुति स्तवनादिवडे रात्रि व्यतीत करवी. पछी प्रभाते ते माला लइने गुरुमहाराज पासे माला पहेरवा जq.
४२ उपधान वहन करनारामोए उपधान तपनी यादगीरी माटे सचित्तादिनो त्याग, ब्रह्मचर्यादिकनो नियम, पर्वतिथए पौषध, चौद नियमनी धारणा, सामायिक, प्रतिक्रमण करवा, पूजा, तीर्थयात्रा आदि धर्मकार्यमा उद्यम राखवो.
४३ पञ्चक्खाय पारती वखते, भोजन कर्या पछी चैत्यवंदन करती वखते तथा सवार सांजनी क्रिया वखते स्थापना. चार्य खुला राखवा जोइए.
मी सिवाय पीजी केटलीक अपवादीक हकीकत छे ते प्रवाह तरीके गहाइ जवाना भरथी भत्रे लखवामां भावेल नथी. उपधान कविरावनाराए गुरुगमता लइ तेनो यथा उपयोग विधिनी प्रतो विगेरे जोइने करवो.
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श्री जैन व्रत विधि
॥४४॥
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आलोयण विधि. पहेले उपधाने तथा बीजे उपधाने (अढारीया) (सरखी होवाची साथे लखी). पोसह प्रक, स्वाध्याय छ हजार, उपवास चार, जीवविराधनाए-पोसह चार, स्वाध्याय पाठ हजार, अधिक तप.
बीजे उपधाने (पांत्रीशं). पोसह छ, स्वाध्याय चार हजार, उपवास छ. जीवविराधनाए-पोसह सात, स्वाध्याय चौद हजार, अधिक तप..
चोथे उपचाने (चोकीयु). पोसह एक, स्वाध्याय बे हजार, उपवास एक. जीवविराधनाए-पोसह बे, स्वाध्याय चार हजार, अधिक तप.
पांचमे उपधाने (अट्ठावीसु ). पोसह पांच, स्वाध्याय दश हजार, उपवास पांच. जीवविराधनाए-पोसह छ, स्वाध्याय बार हजार, अधिक तप.
छट्टे उपधाने (छकीयुं). पोसह एक, स्वाध्याय चे हजार, उपवास एक. जीवविराधनाए-पोसह बे, स्वाध्याय चार हजार, अधिक तप. पोसह वा महोरतं उपवासथी करवा.
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दिन पड्या होय तथा वध्या होय ते आलोयणमा भावे नहि.
इति आलोयण विधि.
पुरुषे राखवाना उपकरणो. १ कटासणुं, १ चरवलो, १ मुहपत्ति, २ धोतियां, २ उत्तरासण. १ मातरी (पंची) ठ-मात्रे बता पहेवा सारं, १ उत्तरपटो, १ संथारीयु, १ अोढवानी गरम कामळी, १ खेळीयु (लुगडानो ककडो), १ डंडासण, पुरुषे सका| रण बब्बे कटासणा, महपत्ति, परवलो राखवानी प्रवृत्ति के.
स्त्रीए राखवाना उपकरणो. २ कटासणा, २ मुहपत्ति, ९ चोरस दांडीना चरवला, २ साडला, २ घाघरा, २पंचवा, ३ ठोमात्रे जवानो वक्ष, | १ संथारीयु, १ उत्तरपटो, १ मोढवानी गरम कामळी, १ डंडासय, १ खेळीयु.
हा संपूणोऽयं ग्रन्थः ।
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