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________________ श्री जैन व्रत विधि. ॥ ४३ ॥ ********************* ३४ जरूरी कारणे पाळी पलटाववामां आवे छे एटले वे एकासथा एक साथे कराववामां आवे छे. ३५ उपधान वहन कराववाना अधिकारी महानिशिथना जोग वहन करनारज सुनियो छे. तेमां पण जेनो शास्त्रबोध विशेष होय, क्रिया कराववामां प्रवीण होय, शुद्ध भने पूर्ण क्रिया कराववानी रुचिवाळा होय, रहस्य समझता होय तवा मुनिओए क्रिया करावी योग्य छे. ३६ एक साथे बहेवाना ४ उपधानो पैकी गाढ कारणथी जो एक के बे अढारीया ( पहेलुं बजुं उपधान ) वहन करवामां आवे अथवा एक ज श्रढारी वहन करवामां आवे तो त्यारपछी बार वरसनी अंदर बाकी रहेल उपधान वहन करी माल परे तो ते प्रथमना एक अथवा वे श्रढारीया लेखामां गणाम. बार वरसनी अंदर माल न पहेरे तो लेखामां न गयाय. अने चौथं तथा छुट्टं उपधान बहन कर्या पछी छ मासनी अंदर माळ न पहेरे तो ए वे उपधान फरीथी वहन करना पडे. ३७ उपवासने दिवसे करातुं पुरिमुड विशेष तपम गणातुं नथी, तेम मूळ विधिथी कराता उपधानना आंबिलनुं पुरिगातुं नथी. एकासथाना दिवसे जे पुरिमृड थाय छे तेन। वे भानी तप लेखे लागे छे. ३८ शुदि ५-८-१४ भने ८-१४ मा पांच तिथिए जो एकास भावे तो आंबिल कराववामां आवे छे. ३९ जो उपधान वहन करनार बालक होय, वृद्ध होग अथवा तरुण खतां अशक्त होय तो उपधान तपनुं प्रमाण पोतानी शक्ति अनुसार पूर्ण करवां. महानीशियसूत्रमां कहेल के पथ ते प्रवृति जोवामां आवती नथी. ******************* उपधान विधि. ॥ ४३ ॥
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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