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________________ ***KKKKK उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी, नंदिकरावणी, देवबंदावणी, नंदिसूत्र संभळावणी करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, श्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी, नंदी सूत्रकटावणी, काउस्सग्ग करूं ? इच्छं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणि करेमि काउस्सग्गं अमत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी गुरु शिष्य बने जण करे. पछी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी शिष्य खमा० दइ कहे इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी नंदिसूत्रे संभळावो. गुरु कहे सांभळो, शिष्य कहे इच्छं. पछी गुरु खमा० दइ कहे नंदि सूत्र कढउं ? पछी गुरु ऊभा रही श्रण नवकाररूप नंदिसूत्र संभळावी त्रण वखत वासक्षेप नांखी गुरु० नित्थारपारगाहोह कहे भने शिष्य इच्छं कहे. सात खमासमण विधि. पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगल महाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांच उपधान नामस्तव अध्ययन उद्दिसश्रो. गुरु कहे उद्देसामि. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दइ संदिसह भणामि गुरु कहे वंदित्तापवेह इच्छं वही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हें प्रथम उपधान पंचमंगल महा१. श्रावक श्राविकाने उपधानमां त्रण नवकाररूपज नंदिसूत्र संभलावबुं श्रा प्रमाणे हरिप्रश्नमां लखेल छे. *******KYKYH **K*K*K*K*K
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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