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________________ उपधान प्रत विधि __ पछी सिद्धाणं युद्धाणं कही श्रीशांतिनाथ माराधनार्थ करेमिकाउस्सग्ग बंदणवत्तिपाए अन्नत्य कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी नमोऽर्हत् कही चोथी स्तुति कहेवी. श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तु सन्ति जने ॥ ४ ॥ पछी श्रीद्वादशांगी अाराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए, अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी नमोऽईत कही पांचमी स्तुति कहेवी. ___ सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गा सदा स्फुरदुपाङ्गा । भवतादनुपहतमहा-तमोऽपहा द्वादशाङ्गी वः ॥५॥ _पछी श्री श्रुतदेवता आराधनार्थ करेमि काउस्सगं अन्नत्य कही एक नवकारनो काउस्सग करी पारी नमोऽहं कही छठी स्तुति कहेवी. वदवदति न वाग्वादिनि ? भगवति ! कः श्रुतसरस्वतिगमेच्छुः रङ्ग-त्तरङ्गमतिवरतरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ६ ॥ ॥ २
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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