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________________ 本法米法器法朵朵%浴决杀烹茶串带条%法术 संध्यानी विधि. खमा० दइ इरियावही करी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बसति पवेउं ? इच्छं खमा० दइ भगवन् ! शुद्धावसहि ? गुरु कहे तहत्ति. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुँ ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. जेणे उपवास कर्यो होय तेणे खमा० दइ अने खाधुं होय तेणे वे वांदणां दइ पञ्चरकाण कर. पछी बधाए बे वांदणां देवां. ____खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! बेपणे ठाउं ? इच्छं कही खमा० दइ अविधि पाशातना मिच्छामि दुक्कडं. देवसी मुहपत्ति. खमा० दइ इरियावही करी एक लोगस्सनो काउसग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! देवसी मुहपत्ति पडिलेहुं ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेही वांदणा चे देवा. पछी इच्छा० संदि. भगवन् ! देवसिमं १ साधु साथे प्रतिक्रमण करनारे श्रावकने देवसी मुहपत्तिनी विधि करवानी नथी. श्राविकाए राइ तथा देवसी मुइपत्ति बने अवश्य करबानी छे.
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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