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________________ श्री जैन व्रत विधि. ॥ ४ ॥ HHH HH HH HH HH HHHKKKK लावणी काउस्सग्ग करावो. ( श्रहींया जेमणे सम्यक्त्व प्रथम उच्चर्यु होय तेमने माटे मात्र सर्वविरतिनो पाठ कद्देवो . ) गुरु कहे कह, शिष्य कहे इच्छं सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक, आरोवावणी, नंदिकढावणी, नंदिसूत्र संभलावणी, करेमि काउस्सग्गं. गुरु पण खमा० दई इच्छा० संदि० भगवन् ! सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक आरोवावणि, नंदिसूत्रकड्डावणि काउस्सग्गं करूं, इच्छं, सम्यक्त्व सामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक आरोवावाण नंदिसूत्रड्डावाले करेमि काउस्सगं अन्नत्थ कही गुरु शिष्य बन्ने एक लोगस्सनो सागरवरगंभीरा सुधी काउस्सग्ग करे- पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी शिष्य खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाए करी नंदिमूत्र संभळावोजी एम कहे. त्यारे गुरु कहे सांभळो. गुरु खमा० दइ नंदिसूत्र कढुं, पछी गुरु ऊभा थह ऋण नवकाररूप नंदिसूत्र संभळाची, त्रण वार तेना मस्तके वासक्षेप नांखे पछी शिष्य खमासमण दहने कहे - इच्छकारी भगवन् ! मम पवावे मम वेसं समप्पेह. पछी गुरु ऊमा थह ओघो मुहपत्ति हाथमां लइ, नवकार एक गणनापूर्वक सुग्गाहियं करेह, एम कहेतां शिष्यनी जमणी बाजुए दशीश्रो आवे तेम ओवो मुहपत्ति शिष्यना हाथमां जाळत्रीने (जयन पर न पडे तेवी रीते ) उत्तर अथवा पूर्व दिशामां शिष्यनुं मुख राखीने आ. शिष्य इच्छं कही माथे ओघो चढावी नाचे. पी ईशान खूणामां जइ वस्त्राभरण विगेरे उतारी ऋण चपटी लेवाय तेटता बाळ राखीने मुंडन करावी स्नान करे. स्नान कर्या पछी इशान खूणामां मुख राखीने साधुनो वेष पहेरे पछी गुरु पाते अत्री मत्यरण वंदामि कही खमा० दइ इरि **********✈✈✈ WH प्रव्रज्या विधि ॥ ४ ॥
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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