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________________ श्री जैन व्रत विधि. मालारोपण विधि. ॥३६॥ मालारोपण विधि. - शुभ मुहूर्ते पंचवरणी हीरकुसुमयुक्त एक सो आठ तांतणावाळी माला घरथी महामहोत्सवपूर्वक संध्या समये गुरु समीपे प्राणी, वासक्षेपथी प्रतिष्ठावी महामहोत्सव सहित घर प्राणी, पाट उपर मुकी रात्रिजागरण करवू. पछी सवारना (माल पहेरवाना दिवसे ) श्रीफल. प्रवत आदि लइ खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! वसति पवेउं ? गुरु कहे पवेश्रो शिष्य कहे इच्छं. खमा० दह इच्छा० संदि० म० शुद्धावसहि. गुरु कहे तहत्ति. शिष्य कहे इन्छ नांद मांडी होय त्यां आवी नांदने नवकार गणबापूर्वक त्रण प्रदक्षिणा मापे. पछी सचित्त वस्तु मृकी दइ खमा० दह इरियावही करी एक लोगस्सनो (चंदेसु निम्मलयरा सुधी) काउसग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमा० दह इच्छा० संदि• भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेह. शिष्य कहे इच्छं. पछी बांदणांचे देवा. खमा० दइ इच्छ. कारि भगवन् ! पसाय करी तुम्हे अम्हं पहेलु उपचान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीचं उपधान शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उपचान चैत्यस्तबअध्ययन, पांचमु उपधान नामस्तवमध्ययन, छ8 उपधानश्रुतस्तव, सिद्धस्तवमध्ययन समुद्देसमो? गुरु कहे समुद्देसामि, शिष्य कहे इच्छं पछी खमा०दइ संदिसह किं भवामि गुरु कहे वंदित्तापवेह शिष्य कहे इच्छं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अझ पहेलु उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, बीजुं उपधान प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तवमध्ययन, चोथु उपधान चैत्यस्तवमध्ययन, पांचहुं उपधान नामस्तवमध्ययन, ॥३६॥
SR No.600317
Book TitleJain Vrat Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhisuri
PublisherJain Sangh Madras
Publication Year1938
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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