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लोष थया बाद गुरुमहाराज पासे भावी करवानी विधि - प्रथम खमा० दइ इरियावही करी जगचिंतामणिर्नु चैत्यवंदन जयवीयराय सुधी संपूर्ण कर. पछी खमा० दइ मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी वांदगाबे देवा. खमा० दइ इच्छा. संदि भगवन् ! लोयं पवेएमि ! गुरु कहे पवेह. बीजुं खमा० दइ
संदिसह किं भवामि ? गुरु कहे वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छ. खमा० दइ कहे केसामे पज्जुवासिया, गुरु कहे तमो दुक्कर | कयं इगिणी साहियात्ति. इच्छामो अणुसडिं. खमा० दइ तुम्हास पवेइयं संदिसह साहूयं पवेएमि. गुरु कहे पवेह. खमा०
दइ तुम्हाणं पवेइयं साहणं पवेइयं सदिसह काउस्सग्गं करेमि. गुरु कहे करेह. खमा० दह केसेसु पन्जुवासिजमाणेसु सम्म जंन महियासियं कुइयं कक्कराइई तस्स मोहडावणीयं करेमि काउस्सग्गं प्रमत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी अनुक्रमे साधुनोने वंदन करे.
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