Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 86
________________ श्री जैन श्रत विधि. वा ४० ॥ ***K***KKK 44 34 34 E36 E सात अक्षर वासक्षेपना थालामां हाथनी अनामिका अंगुलीए आलेखीने पछी वासक्षेप मंत्रवो. इति वर्धमान विद्या. माला कदाच भूमि पर पड जाय त्यारे “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं ॐ नमः " ए मंत्र सात बार माळा उपर गणवो अने त्रण वार थालामां गणतो. पछी वर्धमान विद्याए वासनिक्षेप करवो. श्रीजा - चोथा पांचमा अने छुट्ठा उपधानमां की स्थापनाचार्यथी प्रवेश कराववो पडे तो तेनी हुंकी विधि. प्रथम इरिया ही करो, पौषध ग्रहण करी पडिलेहखना सर्व आदेश मागत्रा पछी खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् । वसति पत्रे ? गुरु कहे पवेह शिष्य कहे इच्छं. खमा० दद्द कहे संदि० भगवन् ! शुद्धावसहि गुरु कहे तहचि. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! मुहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेहो. शिष्य कहे इच्छं. पक्षी खमा० दइ इच्छा० संदि० भग० तुम्हे अम्हं श्रीजुं उपधान शक्रस्तत्र अध्ययन ( जे उपधान होय तेना नाम देवा० ) उद्देशावणि देववंदावथि वासनिक्षेप करो. गुरु कहे करेमि. शिष्य कहे इच्छं. गुरु नवकार गणनापूर्वक ऋण वार वासनिचेप करे. पछी खमा० दइ इच्छ KKHHHHKYKYKKY******** उपचान विधि ॥ ४० ॥

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