Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 64
________________ श्री जैन व्रत विधि. | उपधान विधि. ॥२९॥ 半米出%%米米米米除%深深%米諾深* मालोउं ? इच्छं कही जो मे देवसिमो भइमारो ए पाठ संपूर्ण कहेवो. पछी सम्बस्सवि देवासिय दुचिंतियनो पाठ कहीने जो पदस्थ मुनि होय तो वांदणांबे देवा भने अपदस्थ होय तो खमा० दइ इच्छकार सुहदेवसिनो पाठ कही भभुडिओ | खामवो. पछी बांदणां वे देवा, पछी खमा० दह इच्छा० संदि० भगवन् ! स्थंडिल शुद्धि करुं ? इच्छं कही खमा० दइ | इच्छा संदि० भगवन् ! दिशि प्रमाणु ? इच्छं कही खमा० दइ अविधि भाशातना मिच्छामि दुक्कडं मांगवो. (श्रावके स्थंडिल पडिलेहुंनो एक जमादेश मांगवो भने श्राविकाए स्थंडिलनोअने दिशि प्रमाणुएम बन्ने आदेश मांगवा) वांचनाविधि. खमा० दइ इरियावहि करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! वसति पवेउं ? इच्छं कही खमा० दइ भगवन् ! सुद्धावसहि ? गुरु कहे तहत्ति० पछी खमा० दइ इच्छा० संदि. भगवन् ! वायणा मुहपति पडिले हुँ ? इच्छं कही मुहपत्ति पडिलेहवी. पछी बांदगा बे देवा. पछी खमा० दइ इच्छा संदि० भगवन् ! वायणा संदिसाहुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छा० संदिसह भगवन् ! वायणा लेशुं ? इच्छं कही खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी वाय १ बायणा सवारना कोइ कारणे रही जाय तो सांजनी क्रिया पहेला वांचना लइ शकाय छे. पवेयणु कराया पछी वांचना प्रापवी. पवेणा पछी पारे तरत ज बांचना आपवामां आवे छे त्यारे वसतिपबेउं अने भगवन् ! शुद्धावसहीना आदेश न मांगवा. 1 २९॥

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