Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 54
________________ श्री जैन व्रत विधि 41 38 11 £33.-34 HK JH HH HK HK HK *K*** तस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांचमुं उपधान नामस्तव अध्ययन उदिडुं इच्छामो अणुस गुरु कहे उदि खमासमणाणं इत्थेणं सुत्तेणं प्रत्थेणं तदुभयेणं जोगं करिजाहि, गुरुगुणेहिं बुढिजाहि नित्थारपारगाहोह. शिष्य कहेतहत्ति. पछी खमा० दइ कहे तुम्हाणं पबेइयं संदिसह साहूणं पत्रेएमि. गुरु कहे पवेह शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दह नंदने नवकार गणवपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा आहे. या वखते गुरु तथा सकल संघ सर्वेना मस्तक उपर वासक्षेपवाळा भक्षत नांखे. (प्रदक्षिणा कर्या पहेला संघमां चोखा वहेंचवा) पछी खमा० दइ कहे तुम्हाणं पवेइयं साहुखं पवेइयं संदिसह काउरुसगं करोमि गुरु कहे कह. इच्छं कही खमा दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हें प्रथम उपधान पंचमंगल महा श्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पांचमुं उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देसावणी करोमि काउस्सग्गं अन्नत्थ कही एक लोगस्स सागरवरगंभीरा सुधी करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी पत्रेय कराव, KKK XKYK H H H H H H HH-WKWKWKXI उपधान विधि. ॥ २४ ॥

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