Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 57
________________ हमेशा सवारना करावधानी क्रिया. . पौषध विधि. खमा० दइ इरियावहि पडिक्कमी एक लोगस्सनो काउस्सग्ग (चंदेसु निम्मलयरा सुधी) करी पारी प्रगट लोगस्स | कहेवो. पछी खमा० दइ इच्छाकारण संदिसह भगवन् ! पोसह सहपत्ति पडिले हुं ? गुरु कहे पडिलेहो. शिष्य कहे इच्छं. पछी खमा० दइ इच्छा• संदिसह भगवन् ! पोसह संदिसाहुं १ खमा० दइ इच्छा० संदि० भगवन् ! पोसह ठाउं ? एम कही एक नवकार गणी इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पोसहदंडक उच्चरावोजी एम कहे. पछी गुरु नीचे प्रमाणे पाठ बोले. पोसह पच्चक्खाण. करोमि भंते ! पोसहं आहारपोसहं देसओ सव्वओ, सरीरसकारपोसहं सम्बो बंभचेरपोसहं सव्वओ, अव्वावारपोसहं सव्वओ चउविहे पोसहे ठामि जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवमि तस्स भंते ! पोडकमामि निंदामि १ वरेक वखते गुरु आदेश मापे त्यारे शिष्य इच्छ कहे. २ उपधानमा अहोरात्रिना ज पौषध करवाना होय छे एटले दिवसनो पाठ लख्यो नथी.

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