Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 52
________________ श्री जैन व्रत विधि उपधान विधि. २३॥ 本%米米出米米米米米米米米米%杀肃肃杀出 देवयाणं च ॥ २॥ इन्दा गणिजम नेरईय, वरुणवाउकुबेरईशाणा । बंभो नागुत्ति दसहमविय सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमणवासवाणं तहेव पंचण्हं । तहलोगपालयागं, सूराइ गहाण य नवग्रहं ॥४॥ ___साहतस्स समक्खं मज्झमिणं चेव धम्मणुट्टाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइ नवकारो धणियं ॥५॥ पछी जय वीयराय संपूर्ण कद्देवा ।। इति देववंदन विधि ॥ पछी नांदने पडदो करावी स्थापनाचार्य खुल्ला राखी बे बादणा देवा. पछी पडदो लेबरावीने प्रभु सामे ऊमा रही कहे इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजुं उपधान शक्रस्तव अध्ययन, पंचम उपधान नामस्तव अध्ययन उद्देशावणी नंदिकरावणी, देववंदावणी, नंदिसूत्रसंमलावणी काउस्सग्ग करावो. गुरु कहे करह. इच्छं खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे भम्हं प्रथम उपधान पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध, त्रीजु उपधान शक्रस्तव मध्ययन, पंचम १. अत्र ज्यारे बीजा अढारीयामा, चोकीयामां तथा छकीयामा प्रवेश कराववो होय त्यारे अनुक्रमे बीजं उपधान, प्रतिक्रमणश्रुतस्कंध, चोधुं रुपधान चैत्यस्तव, ; उपधान श्रुतस्तवसिद्धस्तव विगेरेमाथी जे उपधान होय तेना नाम बोलवा. ॥२३॥

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