Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ श्री जैन व्रत विधि. ॥ १३ ॥ KKKKKK********** सात वरस सात मास, भावओोणं अहागहियभंगेणं ( उववासेणं) अरिहंत सक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहसविखयं देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपजामि अन्नरणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरा - गारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेण वोसिरामि नित्थारपारगाहोह. HKJ(KKKKK. WHI ब्रह्मचर्यादि व्रत विधि. मौनएकादशी तप आलावो. अहन्नं भंते! तुम्हाणं समीवे इमं मैौन एकादसीतवं उवसंपज्जामि, तं जहा - दव्वत्रो, खित्तत्रो, कालो, भाव, दव्वओोणं इमं मौन एकादसीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालओ जाव अगीआर वरस अगीआर मास, भावओणं अहा गहियभंगेणं ( उववासें ) अरिहंतसक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहूसक्खियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तित्रागारेणं वोसिरामि . नित्थारपारगाहोह. (बीजा व्रतोना पण घालावा नाम तथा काळनुं मान बदली बनावी लेवा.) पछी खमा० दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं ब्रह्मव्रत, ज्ञानपंचमी, रोहिणी, वीसस्थानक, मौन एकादशी तप आरोवो. गुरु कहे- भारोवेमि. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दद्द संदिसह किं भणामि ?, गुरु कहे वंदित्तापवेह. शिष्य कहे इच्छं. खमा० दइ शिष्य ॐ ॥ १३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96