Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 31
________________ सिद्धसक्खियं, साहसस्कियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं, उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. नित्थारपारगाहोह. ज्ञानपंचमी तप आलावो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे इमं ज्ञानपंचमी तवं उवसंपज्जामि, तंजहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, दव्वओणं ज्ञानपंचमीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालओणं पंच वरस पंच मास, भावओणं अहागहियभंगेणं ( उववासेणं ) अरिहंतसक्खियं, सिद्धसक्खियं, साहसक्खियं, देवसक्खियं, अप्पसक्खियं उवसंपज्जामि अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरा. गारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि. नित्थारपारगाहोह. रोहिणी तप आलावो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे इमं रोहिणीतवं उवसंपज्जामि, तंजहा-दव्वओ, खित्तओ, कालो, भावओ, दवओणं इमं रोहिणीतवं, खित्तओणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालोणं जाव

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