Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ श्री जैन प्रवज्या व्रत विधि विधि. ॥ १२ ॥ ब्रह्मचर्य आलाबो. अहन्नं भंते ! तुम्हाणं समीवे बंभवयं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्यओ खित्तो कालन भावओ, दव्वओणं इमं बंभचेरवयं खित्तोणं इत्थ वा अन्नत्थ, कालओणं जावज्जीवाए भावओणं ओरालीय, वेउब्विअ, भेयं पञ्चरकामि तत्थ दिव्वं दुविहं तिविहेणं, तेरिच्छे एगविहं तिविहेणं, मणुअं एगविहं एगविहेणं अहागहियभंगेणं तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि. वीशस्थानक तप आलावो. अहन्नं भंते तुम्हाणं समीवे इमं वीशस्थानकतवं उवसंपज्जामि तं जहा-दव्वओ खित्तो A कालो भावओ, दव्व ओणं इमं वीशस्थानकतवं, खित्तमोणं इत्थ वा अन्नत्थ वा, कालोणं | जाव दशवरिसाइ (छ मासमांही वीस वीसनी एक ओळी करवी. ), भावओणं अहागहिय भंगेणं, (छट्ट, उपवास, आयविल निवि, एकासण यथाशक्ति तपथी करे ) अरिहंतसक्खियं,

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96