Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha Author(s): Labdhisuri Publisher: Jain Sangh Madras View full book textPage 7
________________ 米%术法米法米米米米米米米米米米 ॥ श्रीवीतरागाय नमः॥ श्री आत्म-कमल-लब्धिसूरीश्वरेभ्यो नमः॥ श्रीजैन व्रतविधि संग्रह ॥ अथ प्रव्रज्या ( दीक्षा ) विधि ॥ प्रथम दीक्षा मापवाना ठेकाणे (चैत्य, वड, आसोपालव, आंबा प्रमुख सारा स्थाने) आवी, श्रीफल हाथमा ग्रहण करी नांदने त्रण प्रदक्षिणा आपवी. पछी उचरासण करीने प्रथम इरियावहि पडिकमी, एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी पारी प्रगट लोगस्स कहेवो. पछी खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेडं. इच्छं, कही मुहपत्ति पडिलेहीने खमासमण दइ इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक प्रारोपा (१) जेमणे सम्यक्त्व पहेला उच्चर्यु होय तेमने माटे ए पाठ न बोलवो. 平米米米米米米米%术%术%米米米Page Navigation
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