Book Title: Jain Vrat Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhisuri
Publisher: Jain Sangh Madras

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Page 13
________________ 中华法朵法朵弟杀出杀%术弟宋弟术%术弟杀出水 ते पछी एक नवकार गर्णाने बेसीने नमुत्थुणं, जावंति चेइमाई, जावंत केवि साहू भने नमोऽहत् कही नीचे मुजब पंचपरमेष्ठी स्तव कहे. ॥ अथ पंचपरमेष्ठी स्तवः ॥ ओमिति नमो भगवओ,अरिहंतसिद्धायरियउवज्झाय। वरसव्वसाहुमुणिसंघधम्म-तित्थप्पवयणस्सा१॥ सप्पणवं नमो तह भगवई-सुअदेवयाइ सुहयाए । सिवसंति देवयाए सिवपवयण देवयाणं च ॥२॥ इंदागणिजमनेरईय वरुण वाऊ कुबेर ईसाणा। बंभोनागुत्तिदसहमविय सुदिसाणपालाणं ॥३॥ सोमयमवरुणवेसमणवासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं सुराइ गहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्यं गच्छउ, जिणाइ नवकारओधणियं ॥५॥ पछी जय वीयराय संपूर्ण कहेवा. ॥ इति देववंदन विधि ॥ त्यारपछी प्रतिमाजीने पडदो करावी खुल्ला स्थापनाजी सामे वांदणा वे देवा. पछी खमा० दइ शिष्य कहे इच्छकारी भगवन् ! तुम्हे अम्हं सम्यक्त्रसामायिक, श्रुतसामायिक, सर्वविरतिसामायिक, भारोवावणी, नंदिकडावणी, नंदिसूत्रसंभ

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