Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ - - - - मार्गशीर्षशुक्ल वीर सं २४३९ । पौषकृष्ण वीर सं. २४३९ । ति, वार ता. विशेष विवरण ति. दार सा. विशप वियन्न - - - - - ५/ मान-मालनायका मोम) जन्मतप-पुष्पदत 1१. मगल[१० दिसवर वुध ११ २ शुक्र शनि रवि माम बुध १० - - मगल:१ वृध ! जनवरी १९१३ प्रा गरु असलबन्मतप-चद्रप्रम वा पार्श्वनाथ ৭ হজ •• অন-লাও रविरोहिणीनत । १० शनि [नान नामनाथ" सोम जान-शीतलजिनका। १३. रवि ३० मगल जन्मतप-अरनाथ 10 मगला तप-मभवनायका - जिनशतक। यह प्रथ वि स १२५ को सालम विद्यमान आचार्यवर्य श्रीमत्समतलभद्र स्वामीकृत चित्र काव्यका है इसमें ११६ लोक हैं सबके सब लोकाके मुरज आदि चित्र बन जाते हैं चित्र भी अतमें दिये गये हैं। विना टीकाके इनका अर्थ कोई लगा नहि सकता इसकारण साथमें मरमिहभटकृत संस्कृत टीका और श्रीयुत प लालारामजीकृत भापाटाका भी छपाई है। ११६ श्लोकोंमें चौवीस तीर्थकर भगवानकी स्तुति है। निनके पदपदसे भक्ति टपकती है | पृष्ठ १२८ न्योछावर ) है। मिलनेफा पता-श्रीलालजैन - . . मैनेजर-जनपुस्तकालय बनारसं सिटी।

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