Book Title: Jain Tithi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ पहिले इसे पढ़िये। १। हमारे यहासे-व के निर्णयमागरप्रेस, श्रीवेक्टेश्वरप्रस, लक्ष्मीवेक्टे. श्वरप्रेस, ज्ञानसागरप्रेस, हरिप्रसादमगीरथजीपुस्तकालय, तथा कलकत्तेके जीवानन्द विद्यामागर, इलाहावादके इडियनप्रेस, लखनऊके नवलकिशोरप्रेस और काशीकी नागरीप्रचारिणीसभा, स्याद्वादग्न्नाकर कार्यालय चौखंभापुस्तकालय, लाजरसप्रेस, उपन्यासकार्यालय, उपन्यासतरग, भार्गवपुस्तकालय आदि समस्त छापखानों और पुस्तकालयोंक छपहुये समस्तप्रकार के हिंदी सस्कृत प्रय ठोक • भावसे मिलत हैं अर्थात् वपईकी पुस्तके बबईके मात्र कलकतंकी पुस्तकें ककत्तेके भावसे मिलती हैं । जिनको जिसप्रकारको पुस्तके चाहिये हमारे यहास मंगा लिया करै । २। हमारे यहास किमीको भी कमीशनहिं दिया जाता किंतु खासको। छपी तथा स्याद्वादग्नाकर कार्यालयकी पुस्तके एक प्रकारकी पाच लेने पर | एक विना मूल्य भेजी जायगी। ३। मगाई हुई पुस्तके वापिस नहि ली जायगी। ४ । वी पी. माठ आनेसे कमका नहिं भेजा जाता | आठ भानेसे | कम लेनेवालोंको डाक खर्च सहित टिकट भेजना चाहिय । ५। जो महाशय वी.पी. वापिस कर देंगे उनको फिर कभी वी पी नहि भेना नायगा हिमाव में भूल हो तो डाक खानमें अजा देकर २१ 1 दिन तक वी पी को रुकवा सकते हैं । फिर चिट्ठा देकर हमसे भूल सुघरवालें।। फरमायसमेंमे जितनी पुस्तकें तैयार होंगी-बाजार में मिलेंगी उतनी | ही भेनदी जायगी। दो एक पुस्तकालये वी पी रोका नहिं जायगा। । पत्र-नाम, ग्राम पोष्ट जिरा नहित साफ हिंदीमें भेजेंगे तो उस की तामील म घ्र ही होगी अगरेजी उटू वगेरहकी, चिड़ियोंकी तामील हाने में प्रमाद होगा । उत्तर च हना हा तो जत्रा क ह वा टिकट भजा। आपका कृपाकांक्षी श्रीलालजैन, अनजा-जैनपुस्तकालय पो. बनारम सिटी।

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