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सशोधित और परिवर्धित रूप मे यह पुस्तक प्रकाशित हो रही है, फिर भी इसमे किसी प्रकार त्रुटि रह गई हो या आगम का विपर्यास हो गया हो तो पाठको के सुझाव पर मै ठीक करने के लिये सदा तैयार रहूँगा।
___ अन्त मे इतना और कहना चाहता हूँ कि इस पुस्तक के प्रागरूप लेखमाला को तब प्रारम्भ किया था जब पूज्यपाद प्रात. स्मरणीय श्री १०५ क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी, जो अन्त मे श्री १०८ गणेश कीर्ति महाराज के नाम से सबोधित हुए थे-हमारे मध्य विराजमान थे। उनका इसके प्रति आकर्पण था जो मेरे लिये गौरव की बात थी, परन्तु दु ख है कि मेरी लेखमाला प्रारम्भ होने से थोडे समय पश्चात् हो वे स्वर्गस्थ हो गये थे। मैं तो यही समझता हूँ कि उनके आशीर्वाद का ही फल यह पुस्तक है और अब यदि इस पुस्तक से पाठको को लाभ हुआ तो मुझे प्रसन्नता होगी।
दिनांक २४।१०।७२
स्थान-बीना
निवेदकबशीधर शास्त्री (व्याकरणाचार्य)