Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa Author(s): Bansidhar Pandit Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj View full book textPage 9
________________ vii का प्रकाशन करके समस्त जैन समाज मे भर देना चाहता है। जैन समाज की तो यहाँ तक दशा हो रही है कि जो व्यक्ति सोनगढ विचारधारा के विरोधी भी हैं तो वे भी सस्ता होने की वजह से सोनगढ से प्रकाशित साहित्य ही खरीदना चाहते है और खरीद करते हैं जिसका प्रभाव मनोवैज्ञानिक ढग से समाज पर बहुत ही बुरा पड़ रहा है। माना कि कानजी स्वामी के चरणो मे समाज की ओर से हजारो और लाखो की सख्या मे रुपया बहता चला आ रहा है परन्तु इसका आशय यह नही कि सोनगढ से सिद्धान्त सरक्षण के लिये पैसे की कमी समाज में हो गई है। बात केवल यह है कि धनिक वर्ग की रुचि जो अनावश्यक कार्यों की ओर हो रही है उसकी अपेक्षा अन्य आवश्यक कार्यो की ओर हो जावे। भगवान महावीर के पश्चात् जैन समाज का जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दो वर्गों मे और फिर उपवर्गो मे विभाजन अब तक होता आया हैउनमे से किसी भी वर्ग या उपवर्ग ने जैन सस्कृति की सैद्धातिक मान्यता पर इस तरह का कुठाराघात नही किया है जैसा कि सोनगढ की ओर से किया जा रहा है। इसलिये इस सम्बन्ध मे समाज जितना और जितने शीघ्र सचेत हो जावे • उतना ही उत्तम होग गरे र ... ' ____अस्तु । 'जनतत्त्वमीमासा की मीमासा' का अभी तक एक भाग ही प्रकाशित हो रहा है, लेकिन इसे दश वर्ष पूर्व ही प्रकाशित हो जाना चाहिये था। वास्तव मे यदि यह दश वर्ष पूर्व प्रकाशित हो जाता तो अब तक और भी साहित्य निर्मित होकर प्रकाशित हो सकता था। अब भी यदि अनुकूलता रहीPage Navigation
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