Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Mimansa
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Digambar Jain Sanskruti Sevak Samaj

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Page 8
________________ vi यद्यपि इस सम्बन्ध मे विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता है, परन्तु यदि कभी जयपुर (खानिया) तत्त्व चर्चा की समीक्षा लिखी गई और उसके प्रकाशन की व्यवस्था हुई तो उसके सम्बन्ध मे प्रकाश अवश्य डाला जायगा । यह अवसर उसके सम्वन्ध मे प्रकाश डालने का नही है । यहाँ पर तो तत्त्व किया है लेने के चर्चा के सम्वन्ध मे जो उल्लेख वह इस प्रसग मे किया है कि तत्त्व चर्चा मे भाग लिये प० राजेन्द्र कुमार जी और मैं भी पहुँचे थे और वहाँ पर हम लोगो ने ऐसा विचार विनमय किया था कि सोनगढ से जैन संस्कृति का सरक्षण करने के लिये एक सुदृढ संगठन वनाया जाव । आगे चलकर प० राजेन्द्र कुमार जी ने जो "सस्कृति सेवक समाज" की स्थापना की उसका आधार हम दोनो का वह विचार - विनमय ही था । प० राजेन्द्र कुमार जी की तीव्र अभिलाषा थी कि 'जैनतत्त्वमीमासा की मीमासा' पुस्तक रूप मे जैन सस्कृति सेवक समाज की ओर से प्रकाशित हो, परन्तु आर्थिक कठिनाइयो के कारण यह कार्य अभी तक सम्पन्न नही हो सका । वास्तव मे यह बात तथ्य पूर्ण है कि दि० जैन समाज मे मोनगढ से जो विचारधारा प्रवाहित हुई है उसके प्रति एक ओर तो बहुत सा विद्वद्वर्ग और धनिक वर्ग झुक गया है ओर दूसरी ओर जिनका लगाव उसके प्रति नही है वे विद्वान और धनिक भी उदासीन बने हुए हैं, यही कारण है कि न तो विद्वान सोनगढ विचार के विरुद्ध ठोस साहित्य तैयार कर रहे हैं, और न घनिक भी आवश्यक साहित्य के प्रकाशन की ओर ध्यान दे रहे हैं जबकि सोनगढ का लक्ष्य अपनी ओर से साहित्य

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