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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
mmmmmmm on (१२) कोई स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न में अनेक तरङ्गों से व्याप्त एक बड़े समुद्र को देखे और तैर कर उस के पार पहुँच जाय तो समझना चाहिए कि वह उसी भव में मोक्षजायगा।
(१३) कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न में श्रेष्ठ रत्नों से बने हुए भवन को देखे और उसमें प्रवेश करे तो जानना चाहिए कि वह व्यक्ति उसी भव में मोल जायगी।
(१४) कोई स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न में श्रेष्ठ रत्नों से बने हुए विमान को देखे और उसके ऊपर चढ़ जाय तो समझनाचाहिए कि वह व्यक्ति उसी भव में मोक्ष जायगा।
__ (भगवती शतक १६ उद्देशा ६ ) ८३०- महास्वप्न चौदह
प्राणियों की तीन अवस्थाएं होती हैं-(१) सुप्त (२) जागृत (३) सुप्तजागृत। तीसरी अवस्था में अर्थात् सुप्तजागृत अवस्था में किसी पदार्थ को देखनास्वप्न कहलाता है। इसके सामान्य पाँच भेद हैं(१)याथातथ्य स्वप्न दर्शन (२) प्रतानस्वप्नदर्शन (३) चिन्ता स्वप्न दर्शन (४) विपरीत स्वप्न दर्शन (५) अव्यक्त स्वप्न दर्शन। इनका विस्तृत विवेचन इसके प्रथम भाग के वोल नम्बर ४२१ में दे दिया गया है।
स्वप्नों की संख्या बहत्तर वतलाई गई है। इनमें से तीस महास्वप्न कहे गये हैं। तीर्थङ्कर या चक्रवर्ती जब गर्भ में आते हैं उस समय उनकी माता इन तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देख कर जागृत होती है। उनके नाम इस प्रकार है__ (१) गज (हाथी) (२) वृषभ (वैल) (३)सिंह (४) अभिषेक (लक्ष्मी) (५) पुष्पमाला (६) चन्द्र (७) मूर्य (८)ध्वजा (6) कुम्भ (कलश)(१०) पद्म सरोवर (११) सागर (१२) विमान या भवन (१३) रत्नराशि (ग्नोंका समूह) (१४) निर्धम अग्नि ।।