Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 500
________________ 462 श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला www.mwww normwarwwwrammwwwwwwwwwwwwnar awmarrrrrran, (14) तेतली पुत्र की कथा चौदहवां तेतली ज्ञात' अध्ययन- धर्म की अनुकूल सामग्री मिलने से ही धर्म की प्राप्ति होती है। इस बात को बतलाने के लिए इस अध्ययन में तेतली पुत्र नाम के मन्त्री का दृष्टान्त दिया गया है। तेतलीपुर नगर में कनकरथ राजा राज्य करताथा। उसकी रानी का नाम पद्मावतीथा। तेतली पुत्र नाम का मन्त्री था। वह राजनीति में अति निपुण था। उसकी स्त्री का नाम पोहिला था / कनकरय राजा राज्य में अत्यन्त मासक्त एवं गृद्ध होने के कारण अपने उत्पन्न होने वाले सव पुत्रों के मङ्गों को विकृत करके उनको राज्य पद के भयोग्य बना देता था। इस पात से रानी भति दुःखित थी। एक समय उसने अपने मन्त्री से सलाह की और उत्पन्न हुए एफ पुत्र को गुप्त रूप से तत्काल मन्त्री के घर पहुंचा दिया / मन्त्री के घर वह श्रानन्द पूर्वक बढ़ने लगा। उसका नाम कनकध्वज रखा गया।वा फलामों में निपुण होकर यौवन अवस्था को प्राप्त हुभा। तेतली पुत्र मन्त्री अपनी पोट्टिला भार्या के साथ मानन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करता था किन्तु किसी कारण से कुछ समय के पश्चात् वह पोट्टिला तेतलीपुत्र को अप्रिय और अनिष्टकारी होगई। वह उसका नाम सुनने से भी घृणा करने लगा। यह देख पोट्टिला अति दुःखित होकर पार्तध्यान करने लगी। तब तेतलीपुत्र ने उस से कहा कि तू वार्तध्यान मत कर। मेरी दानशाला में चली जा / वहॉ श्रमण माहणों को विपुल भशन पान आदि देती हुई आनन्द पूर्वक रह / पोट्टिला वैसा ही करने लगी। एक समय सुत्रता नाम की आर्या अपनी शिष्य मण्डली सहित वहाँआई। भिक्षा के लिए आती हुई दो पार्याओं को देख पोहिला ने अपने आसन से उट कर उन्हें वन्दना नमस्कार किया और

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