Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 512
________________ 474 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला , mar on n nirmwarrrrrrrrrrrrrrrrr ~ rrrrrrmmmmmmmm के लिये गये। भिक्षा में पाये हुए अन्तमान्त एवं रुक्ष अशनादि , का आहार करने से उनके शरीर में दाहज्वर की बीमारी होगई। अर्धरात्रि के समय शरीर में तीव्र वेदना उत्पन्न हुई। मालोचना एवं प्रतिक्रमण करके संलेखना संथारा किया। शुभ ध्यान पूर्वक .,मरण प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए। वहॉ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धपद को प्राप्त करेंगे। उधर राजगद्दी पर बैठ कर कुण्डरीफ कामभोगों में आसक्त होकर बहुत पुष्टिकारक और कामोत्तेजक पदार्थों का अतिमात्रा में सेवन करने लगा। वह आहार उसे पचा नहीं, जिससे अर्धरात्रि के समय उसके शरीर में अत्यन्त तीव्र वेदना उत्पन्न हुई / आत्ते, रौद्रध्यानध्याता हुश्रा कुण्डरीक मर कर सातवीं नरक में गया। इस दृष्टान्त से शास्त्रकारों ने यह उपदेश दिया कि जो साधु, साध्वी चारित्र ग्रहण करके शुद्ध आचरण करते हैं वे थोड़े समय , में ही आत्मा का कल्याण कर जाते हैं जैसा कि पुण्डरीक मुनि स्वल्प काल में ही शुद्ध आचरण द्वारा मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। जो साधु,साध्वी संयम लेकर पड़िवाई होजाते हैं अर्थात् संयम से पतित होजाते हैं भौर कामभोगों में भासक्त हो जाते हैं वे कुण्डरीक की तरह दुःख पाते हैं और मर कर दुर्गति में जाते हैं / अतः लिये हुए व्रत, प्रत्याख्यानों का भली प्रहार पालन करना चाहिए। संख्याकेशवनारदेन्दु गणिते वर्षे शुभे वैक्रमे // मासे श्रावणके शनैश्वरदिने शुक्ले तृतीया तिथौ / आशीभिःव्रतिनां सतांच सुधियां मोक्षकनिष्ठावताम् / भागः पञ्चम एष योलजलधेः यातः समाप्तिं मुदा // // इति शुभम् / /

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