Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner
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________________ भी अन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 87 सन्निहिं च न कुन्विज्जा, लेवमायाय संजए / पक्रवी पत्तं समादाय, निरवेक्खो परिव्बए // 16 // एसणासमिओ लज्जू, गामे अनियो परे / अप्पमत्तो पमोहिं, पिंडवातं गवेसए // 17 // एवंसे उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी,अणुत्तरनाणदंसणधरे। अरहा णायपुत्ते भयवं वेसालीए वियाहिए // 18 / दशवैकालिक प्रथम चूलिका (बोल नम्वर 868) इह खलु भो ! पन्चइएणं सप्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइसमाबनचित्रेणं अोहागुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव इयरस्सिगयंकुसपोआपढागाभूआई इमाइंअहारस ठाणाइंसम्म संपढिलेहिप्रवाई भवंति तंजहा- हंभो ! (1) दुस्समाए दुप्पजीवी (2) लहुसगा इत्तरिआ गिहीणं कामभोगा(३) झुज्जो असाइबहुला मगुस्सा (4) इमे अमे दुक्खे न चिरकालोबहाई भविस्सई (5) ओमजणपुरस्कारे (6) वंतस्स य पडिआयणं (7) अहरगइवासोवसंपया (8) दुल्लहे खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहवासमझे वसंताणं (8) आयके से वहाय होइ (10) संकप्पे से वहाय होइ (11) सोवक्केसे गिहवासे निरुवक्केसे परिआए (12) बंधे गिहवासे मुक्खे परिआए (13) सावज्जे गिहवासे अणवज्जे परिआए (14) बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा (15) पत्तेयं पुण्णपावं (16) अणिच्चे खलु भो मणुप्राण जीविए कुसगाजलबिंदुचंचले (17) वहुं च खलु भो ! पावं कम पगडं (18) पावाणं च खलु भो कढाणं कम्मारणं पुब्बि दुचिनाणं दुप्पडि

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