Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 510
________________ श्री सेठिया जैन प्रन्पमाला ~ mmmmmmmmmwwww ww ww wwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwww~ एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में पधारे। धर्मोपदेश सुन कर उसे वैराग्य रत्पन्न होगया। भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। कई वर्षों तक संयम का पालन कर सौधमे देवलोक में उत्पन्न हुमा। वहाँ से चक्कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धिपद को प्राप्त करेगा। जिस प्रकार धन्ना सार्थवाह ने वर्ण गन्ध रस रूप मादि के लिए नहीं किन्तु केवल भपने शरीर निर्वाह के लिए भौर राजगृह नगरी में पहुँचने के लिए ही मुंमुमा बालिका के मांस और रुधिर का सेवन किया था। इसी प्रकार साधु साध्वियों को भी इस अशुचिरूप मौदारिक शरीर की पुष्टि एवं रूप आदि के लिए नहीं किन्तु केवल सिद्धगति को माप्त करने के लिए ही आहार प्रादि करना चाहिए। ऐसे आत्मार्थी साधु साध्वी एवं श्रावक श्राविका इस लोक में भी पूज्य होते हैं और क्रमशः मोक्ष मुख को प्राप्त करते हैं। (19) पुण्डरीक और कुण्डरीक की कथा ___ उन्नीसवां पुण्डरीक ज्ञात'अध्ययन-जो बहुत समय तक संयम का पालन कर पीछे संयम को छोड़ दे और सांसारिक पदार्थों में विशेष मासक्त हो जाय तो उसे अनर्थ की प्राप्ति होती है। यदि उत्कृष्ट भाव से शुद्ध संयम का पालन थोड़े समय तक भी किया जाय तो भात्मा का कल्याण हो सकता है। इस बात को बताने के लिएइस अध्ययन में पुंडरीक और कुंडरीक का दृष्टान्त दिया गया है। पूर्व महाविदेह के पुष्कलावती विनय में पुण्डरीकिणी नाम की नगरी थी / उसमें महापद्म नाम का राजा राज्य परता था। उसके पुण्डरीक और कुण्डरीक दो पुत्र थे। कुछ समय पश्चात् राजा महापद्म ने अपने ज्येष्ठपुत्र पुण्डरीकको राजगद्दी पर विठा कर तथा

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