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श्रीजैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पांचवां भाग २०१
mmmmmmmmmmmm ~~ करने में समर्थ है। उसे विवाह की कोई आवश्यकता नहीं है। माता पिता और धर्म की सेवा करके मैं ऊपर लिखे तीनोंऋणों से मुक्त होना चाहती है। __वसुमती की ये बातें सखियों को विचित्र सी मालूम पड़ी। उन्होंने सोचा ये कोरी उपदेश की बातें हैं। दिल की बातें कुछ और हैं। उनके फिर पूछने पर वसुमती ने स्वप्न का सारा हाल' सुना दिया। सखियाँ स्वम का वृत्तान्त महारानी को सुनाने चली गई। वसुमती फिर विचार में पड़ गई। मन में कहने लगी- इस स्वम ने मेरे द्वारा एक महान कार्य के होने की सूचना दी है। मुझे अभी से उसके लिए तैयार रहना चाहिए। उसके लिए शक्ति का संचय करना चाहिए। , ) .
सखियों ने स्वम का हाल धारिणी को सुनाया। उसने कहाअगर मेरी पुत्री ऐसे महान् कार्य को सम्पन्न कर सके तो मेरे लिए इससे बढ़ कर क्या सौभाग्य की बात होगी। वसुमती के इस स्वम के कारण उसके विवाह की बात अनिश्चित काल के लिए टाल दी गई । वसुमती जैसा चाहती थी वही हो गया।
के राज्य की सीमा पर कौशाम्बी नाम का दूसरा . राज्य था। कौशाम्बी भी धन धान्य से- समृद्ध तथा व्यापार के ? लिए प्रसिद्ध नगरी थी। वहाँ शतानीक नाम का राजा राज्य करता । था। दधिवाहन की रानी पद्मावती और शतानीक की रानी मृगावती दोनों सगी बहनें थीं। इस लिए वेदोनों राजा आपस में साद थे।
सम्बन्धी होने पर भी दोनों राजाओं के स्वभाव में महान् अन्तर था। दधिवाहन सन्तोषी,, शान्तिप्रिय और धार्मिक था, उसमें। राज्यलिप्सा.न थी। दूसरे को कष्ट में डाल कर ऐश्वर्य बढ़ाना उसकी दृष्टि में घोर पाप था। ऐश्वर्य पाकर धनसत्ता द्वारा दूसरों पर आतङ्क जमाना उसे पसन्द न था। सभी को मुख पहुँचा कर