Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 482
________________ 444 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ormurr wrmr rrrrr ~~ ~ ~~~~~ (8) भगवान् मल्लिनाथ की कथा आटवॉ 'मल्लि ज्ञात अध्ययन-पाँच महाव्रतों को लेकर यदि उन्हें किञ्चित् भी माया कपटाई से दूषित कर दिया जाय तो उनका यथार्थ फल नहीं होता है / इस बात को पुष्ट करने के लिए आठवें अध्ययन में भगवान् मल्लिनाथ का दृष्टान्त दिया गया है। भगवान् मल्लिनाथ पूर्वभत्र में महाबल नाम के राजाथे। उनके अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण और अभिचन्द्र नाम के छः बालमित्र थे। उन सातों मित्रों ने एक ही साथ दीक्षा ग्रहण की और यह निश्चय किया कि सब ही मित्र एक साथ एक सरीखी तपस्या करेंगे। इसके पश्चात् वे वेला तेला आदि तपस्या करते हुए विचरने लगे। आगामी भव में इन छः मित्रों से बड़ा पद पाने की इच्छा से महाबल मुनि कपट से अधिक तपस्या करने लगे। व वेले के दिन तेला और तेले के दिन चोला कर लिया करते थे। उन सातो मनियों ने बारह भिक्खु पडिमा अङ्गीकार की। इसके बाढ लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप किया जिसकी एक परिपाटी में छः महीने और सात दिन लगे अर्थात् 154 तपस्या के दिन और 33 पारणे के दिन होते है। इसके पश्चात् महासिंह निष्क्रीड़ित तए अङ्गीकार किया जिसकी एक परिपाटी में एक वर्ष छः महीने और अठारह दिन लगे अर्थात् 467 दिन उपवास के और 61 पारणे के दिन होते हैं। कुल 558 दिन होते हैं। इस प्रकार उग्र तपस्या करके और बीस बोलों में से कई बोलोंकी उत्कृष्ट आराधना करके महावल मुनि ने तीर्थङ्कर नामझर्य का उपार्जन किया। तीर्थङ्कर नाम कर्म उपार्जन करने के वीस बोल ये हैं(१) अरिहन्त (2) सिद्ध (3) प्रवचन-श्रुतज्ञान (4) गुरु, धर्मोपदेशक (5) स्थविर (6) बहुश्रुत (7) तपस्वी। इन सात की वत्स

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