Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 492
________________ 454 भी मेठिया जैन प्रन्यमाला -rrrrrrrrrrrrrrrrrmmarrr.mawwamrermmmmmmmware rrrrrrrrrrrrrrrrr लवण समुद्र में बारहवीं वक्त यात्रा करने के लिए रवाना हुए। जब जहाज समुद्र के बीच में पहुँचा तो तूफान से नष्ट हो गया। जहाज का टूटा हुआ एक पाटिया उन दोनों भाइयों के हाथ लग गया। जिस पर बैठ कर तैरते हुए वे दोनों रत्नद्वीप में जा पहुँचे। उस द्वीप की स्वामिनी रयणा देवी ने उन्हें देखा / वह उनसे कहने लगी कि तुम दोनों मेरे साथ कामभोग भोगते हुए यहीं रहो अन्यथा मैं तुम्हें मार दूंगी / इस प्रकार उस देवी के भयप्रद वचनों को सुन कर उन्होंने उसकी बात स्वीकार कर ली और उसके साथ कामभोग भोगते हुए रहने लगे। ___ एक समय लवण समुद्र के अधिष्ठायक सुस्थित देव ने रयणा देवी को लवण समुद्र की इक्कीस वार परिक्रमा करके तृण, पर्ण, काष्ठ,कचरा,अशुचि मादि को साफ करने की आज्ञा दी। तव उस देवी ने उन दोनों भाइयों को कहा-देवानुप्रियो! मैं वापिस लौट कर पाऊँ तब तक तुम यहीं पर भानन्द पूर्वक रहो / यदि इच्छा हो तो पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा के वनखण्ड में जाना किन्तु दक्षिण दिशा के वन खण्ड (वगीचे) में मत जाना। वहाँ पर एक भयंकर विषधारी सर्प रहता है वह तुम्हारा विनाश कर दालेगा। ऐसा कह कर देवी चली गई। वे दोनों भाई पूर्व,पधिम और उत्तर दिशा के वनखण्ड में जाने के वाद दक्षिण दिशा के वनखण्ड में भी गये। उसमें अत्यन्त दुर्गन्ध भा रही थी। उसके अन्दर जाकर देखा कि सैकड़ों मनुष्यों की हड्डियों का ढेर लगा हुआ है और एक पुरुप शूली पर लटक रहा है। यह हाल देख कर वे दोनों भाई वहुत घबराये भौर शूली पर लटकते हुए उस पुरुप से उसका वृत्तान्त पूछा / उसने कहा कि मैं भी तुम्हारी तरह जहाज के टूट जाने से यहॉ आ पहुंचाया। मैं काकन्दी नगरीका रहने वाला घोड़ों का व्यापारी हूँ। पहले यह देवी मेरे साथ काम भोग भोगती रही

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