Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 485
________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाचवा भाग 447 v vuuuuuy www. इसके बाद मन्त्री द्वारा की गई मल्लिकवरी के रूप लावण्य की प्रशंसा को सुन फर प्रतिवद्धि राजा ने एक दूत राजा कुम्भ के पास भेजा भोर मल्लिकुंचरी की मांगणी (याचमा) की। दूत शीघ्र ही मिथिला के लिये रवाना हो गया। अगदेश में चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ के राजा का नाम चन्द्रछाय था। उस नगरी में भरणक मादिबहुत से श्रावक रहते थे। वे नौका द्वारा अपना व्यापार परदेश में करते थे। एक समय अरणक श्रावक ने दूसरे बहुत से व्यापारियों के साथ लवण समुद्र में यात्रा की / जब जहान समुद्र के बीच में पहुंच गया तोअकाल ही में मेघ की गर्जना होने लगी और भयंकर विजलियाँ चमकने लगीं। इसके पश्चात हाथ में तलवार लिए एफ भयंकर रूप वाला पिशाच उनके सन्मुख भाया और अरणक आबकसे कहने लगा कि हे अरणफ ! तुझे अपने धर्म से विचलित होना इष्ट नहीं परन्तु मैं तुझे तेरे धर्म से विचलित करूँगा / तू अपने धर्म को छोड़ दे अन्यथा मैं तेरे जहाज को आकाश में उठा कर फिर समुद्र में पटक दूंगा जिससे तू मर कर आते और रौद्रध्यान करता हुआ दुर्गति को प्राप्त होगा। पिशाच के उपरोक्त वचनों को सुन कर जहाज में वैठे हुए दूसरे लोग बहुत घबराये और इन्द्र, वैश्रमण, दुर्गा आदि देवों की अनेक प्रकार की मान्यताएं करने लगे किन्तु अरणकश्रावक किञ्चिन्मात्र भी घबराया नहीं और न विचलित ही हुआ / प्रत्युत अपने वस्त्र से भूमि का प्रमार्जन करके सागारी संथारा करके धर्म ध्यान करता हुआ शान्तचित्त से वैठ गया / इस प्रकार निश्चल बैठे हुए श्ररणक श्रावक को देख कर वह पिशाच अनेक प्रकार के भयोत्पादक वचन कहने लगा | अरणक को विचलित न होते देख पिशाच उस जहाज को दो अंगुलियों से उठा कर आकाश

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