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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला -~mmmmmm मैं तो तुम्हें अपना भाई ही समझंगी। मैं क्षत्राणी हूँ, अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकती। __ यह कह कर धारिणी ने रथी के सब प्रलोभन ठुकरा दिए। रथी का मस्तक एक बार तो लज्जासे झुक गया किन्तु उसे काम ने अन्धा बना रक्खा था। धर्म अधर्म, पाप पुण्य यान्याय अन्याय की वातों का उस पर कोई असर न पड़ा।
स्थीने दधिवाहन को कायर, डरपोक और भगेडू बता कर रानी पर अपनी वीरता का सिक्का जमाने की चेष्टा की किन्तु वह भी वेकार गई। इन सब उपायों के व्यर्थ हो जाने पर उसने बलप्रयोग करने का निश्चय किया।धारिणी रथी के भावों को समझ गई। रथी बलपूर्वक अपनी वासना पूर्ण करने के लिए उठा ही था कि धारिणी ने अपनी जीभ पकड़ कर बाहर खींच ली । उसके मुँह से खून की धारा बहने लगी। प्राणपखेरू उड़ गए। निर्जीव शरीर पृथ्वी पर गिर पड़ा । अपने वलिदान द्वारा धारिणी में वसुमती तथा समस्त महिलाजगत् के सामने तो महान् आदर्श रक्खा ही, साथ में सारथी के जीवन को भी एकदम पलट दिया । कामान्ध होने के कारण जिस पर उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसे आत्मोत्सर्ग द्वारा सत्य का मार्ग सुझा दिया। क्रूरता और कामलिप्सा को छोड़ कर वह दयालु और सदाचारी बन गया।महान् अात्माएं जिम कार्य को अपने जीवित काल में पूरा नहीं कर सकतीं उसे आत्मबलिदान द्वारा पूरा करती हैं।
धारिणी के प्राणत्यागको देख कर रथी भौंचक्का सा रह गया। वह कर्तव्यमूढ़ हो गया। उसे यह आशा न थी कि धारिणी इस तरह प्राण त्याग देगी। वह अपने को एक महासती का हत्यारा समझने लगा। पश्चात्ताप के कारण उसका हृदय भर आया। अपने को महापापी समझ कर शोक करता हुआ वह वहीं बैठ गया।