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भीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
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एक दिन मृगावती अपनी गुरुआनी सती चन्दनवाला की आज्ञा लेकर भगवान के दर्शनार्थ गई। वापिस लौटते समय रास्ते में भीड़ होने के कारण उसे बहुत देर खड़ी रहना पड़ा। इतने में रात हो गई। मृगावती अँधेरा होजाने पर उपाश्रय में पहुँची । वहाँ आकर उसने चन्दनवाला को वन्दना की । प्रवर्तिनी होने के कारण उसे उपालम्भ देते हुए चन्दनबाला ने कहा-साध्वियों को सूर्यास्त के बाद उपाश्रय के बाहर न रहना चाहिए।
मृगावती अपनादोष स्वीकार करके उसके लिए पश्चात्ताप करने लगी। समय होने पर चन्दनवाला तथा दूसरी साध्वियों अपने अपने स्थान पर सो गई, किन्तु मृगावती बैठी हुई पश्चात्ताप करती रही। धीरे धीरे उसके घाती कर्म नष्ट हो गए। उसे केवलज्ञान होगया। __ अँधेरी रात थी। सब सतियाँ सोई हुई थीं। उसी समय मृगावती ने अपने ज्ञान द्वारा एक काला सांप देखा। चन्दनवाला का हाथ सांप के मार्ग में था। मृगावती ने उसे अलग कर दिया। हाथ के छूए जाने से चन्दनबाला की नींद खुल गई। पूछने पर मृगावती ने सांपकी बात कह दी और निद्रा भंग करने के लिए क्षमा मांगी।
चन्दनबालाने पूछा-अंधेरे में आपनेसाँप को कैसे देख लिया?
मृगावती ने उत्तर दिया- आपकी कृपा से मेरे दोष नष्ट हो गए हैं, इस लिए ज्ञान की ज्योति प्रकट हुई है।
चन्दनबाला-पूणे या अपूर्ण ? मृगावती-आपकी कृपा होने पर अपूर्णता कैसे रह सकती है?
चन्दनवाला-तब तो आपको केवलज्ञान प्राप्त हो गया है। विना जानेमुझसे आपकी पाशातना हुई है। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।
चन्दनवाला ने मृगावती को वन्दना की। केवली की आशातना के लिए वह पश्चात्ताप करने लगी। उसी समय उसके घाती कम नष्ट हो गए। वह भी केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त कर सर्वज्ञ