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जो न सिगनत बोल संग्रा, पासवां भाग
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ने उत्तर दिया- तुम्हाग राजा-महामूर्ख है जो लोकविरुद्ध मांगनी फरता है। हमेशा कन्या की मांगनी होती है विवाहितास्त्री नहीं मांगी जानी, इम लिए तुम्हारे राजा को जाकर कहना- तुम्हारे सरीखे पैर के समान नीच राजा के घर मुकुट जैसी मृगावती नहीं शोषती। वह तो हमारे सरीखे सिर के समान उत्तम राजाओं के अन्तःपुर में ही शोभती है। अगर तुम्हें अपने जीवन, धन और राज्य को सुरक्षित रखना हो तो मृगावती को प्राप्त करने का प्रयत्न मत करना। दत का वध करना नीति विरुद्ध समझ कर शतानीक ने उसे अप. मानित करके नगरी से बाहर निकलवा दिया।
दूत ने अवन्ती में पहुँच कर सारी बात कही। चण्डप्रद्योतन ने कुपित होकर बड़े बड़े चोदह राजाओं की सेना के साथ कौशाम्बी पर चढ़ाई कर दी। सेना ने शीघ्रता से कौशाम्र्व पहुँच कर नगरी के चारों तरफ घेरा डाल दिया। राजाशतानीकभाशत्र को अपने राज्य पर चदाई करते देख कर तैयार होने लगा। उसने नगरी के द्वार बन्द कर दिए और भीतर रह कर लड़ना शुरू किया। शतानीक बहुत देर तक लड़ता रहा परन्तु चण्डप्रद्योतन की सेना बहुत बड़ी थी। सागर के समान उसकी विशाल सेना को देख कर शतानीक हिम्मत हार गया । डर के कारण उसे भयातिसार हो गया और अन्त में उसी रोग से उसकी मृत्यु हो गई।
अकस्मात् अपने पति का मरण जान कर मृगावती को बहुत दुःख हुआ। अपने शील की रक्षा के लिए उचित भवसर जान कर उस ने शोक को हृदय में दबा लिया और एक चाल चली। उसने चण्डपद्योतन को कालाया- मेरे पति का आप के भय से देहान्त हो गया है । इस लिए लौकिक रीति के अनुसार मैं अभी शोक में हूँ। मेरा पुत्र उदयन कुमार अभी छोटा है। वह राज्य को नहीं सम्भाल सफता । इस लिए कुछ समय बाद जब उदयन