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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग ३५७
mmmwwwvm wwwwwwwwmmm है। फल खाने की इच्छा से वह उस पर चढ़ी। उसी समय एक मदोन्मत्त हाथी आया और उसने माम्ररक्ष को उखाड़ कर फेंक दिया। वह भूमि पर गिर पड़ी। हाथी उसकी ओर लपका और उसे अपनी सॅड में उठा कर भूमि पर पटका । इस भयंकर स्वम को देख कर वह चौंक पड़ी। उठ कर उसने देखा तो राजा नल वहॉपर नहीं था। वह उसे ढूँढने के लिए इधर उधर जंगल में घूमने लगी किन्तु कहीं पता नहीं लगा। इतने में उसकी दृष्टि अपनी साड़ी के कोने पर पड़ी। राजा नल के लिखे हुए अक्षरों को देख फर वह पूछित होकर धड़ाम से धरती पर गिर पड़ी। कितनी ही देर तक वह इसी अवस्था में पड़ी रही। वन काशीतल पवन लगने पर उसकी मूर्छा दूर हुई। अपने भाग्य को वारपार कोसती हुई वह अपने देखे हुए स्वप्त पर विचार करने लगी- भाम्रक्ष के समान मेरे पति देव हैं। आम्रफल के समान राज्यलक्ष्मी है। मदोन्मत्त हाथी के समान कुबेर है। मुझे भूमि पर पछाड़ने का मतलब मेरे लिये पतिवियोग है।
बहस देर तक विचार करने के पश्चात दमयन्ती ने यही निश्चय किया फि अब सुके पति द्वारा निर्दिष्ट मार्गही स्वीकार करना चाहिये। ऐसा सोच कर उसने कुण्सिनपुर की ओरप्रयाण किया। मार्गबहस विफट था। भयंकर जंगली जानवरों का सामना करती हुई दमयन्ती आगे बढ़ने लगी।
उन दिनों यशोभद्र मुनिग्रामानुग्राम विचर फर धर्मोपदेश द्वारा जनता का कल्याण कर रहे थे। एक समय वे अयोध्या में पधारे। राजा कुबेर अपने पुत्रसहित धर्मोपदेश सुनने के लिये भाया । धर्मोपदेश सुन कर कुवेर के पुत्र राजकुमार सिंहकेसरी को वैराग्य उत्पन्न होगया। पिता की आज्ञा लेकर उसने यशोभद्र मुनि के पास दीक्षा अङ्गीकार कर ली। कर्मों का क्षय करने के लिये वे