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श्री जैन सिद्धान्त वोल समह, पाचवा भाग
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तो टालमटोल की किन्तु आग्रह पूर्वक पूछने पर उसने संकुचाते हुए अपने दोहद की बात कह दी ।
गर्भ में रहे हुए बालक की इच्छा ही गर्भिणी की इच्छा हुआ करती है । उसी से बालक की रुचि भौर भविष्य का पता लगाया जा सकता है | पद्मावती के मन में राजा बनने की इच्छा हुई थी । 1 यह जान कर दहिवाहन को बहुत प्रसन्नता हुई । उसे विश्वास हो गया कि पद्मावती के गर्भ से उत्पन्न होने वाला बालक बहुत तेजस्वी और प्रभावशाली होगा ।
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रानी का दोहद पूरा करने के लिए उसी प्रकार सवारी निकली। रानी राजा के वेश में हाथी के सिंहासन पर बैठी थी । राजा ने उस पर छत्र धारण कर रक्खा था। नगरी की सारी जनता यह दृश्य देखने के लिए उमड़ रही थी । उसे इस बात का हर्ष था कि उनका भावी राजा बड़ा प्रतापी होने वाला है ।
सवारी का हाथी धीरे धीरे नगरी को पार करके वन में आ पहुँचा। उन दिनों वसन्त ऋतु थी । लताएं और वृक्ष फूल, फल तथा कोमल पत्तों से लदे थे । पक्षी मधुर शब्द कर रहे थे। फूलों की मीठी मीठी सुगन्ध आ रही थी। यह दृश्य देख कर हाथी को अपना पुराना घर याद आगया । बन्धन में पड़े रहना उसे अखरने लगा । उसका मन अपने पुराने साथियों से मिलने के लिये व्याकुल हो उठा । अंकुश की उपेक्षा करके वह भागने लगा । महावत ने उसे रोकने का बहुत प्रयत्न किया किन्तु हाथी न माना । उसने महावत को नीचे गिरा दिया तथा पहले की अपेक्षा अधिक वेग से दौड़ना शुरू किया। राजा और रानी हाथी की पीठ पर रह गए।
स्वतन्त्रता सभी को प्रिय होती है। उसे प्राप्त करके हाथी प्रसन्न हो रहा था। साथ में उसे भय भी था कि कहीं दुवारा बन्धन में न पड़ जाऊँ इसलिये वह घोर वन की ओर सरपट दौड़ रहा था ।