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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला ,
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नक पीछे देखा । उसकी भाँखों से आँस्स टपक रहे थे। तेरहवीं बात भी पूरी होगई । उन्होंने चन्दनवाला के पास जाकर हाथ फैला दिए । सांसारिक वासनाओं से कलुषित हृदय वाली सारथी की स्त्री और मूला जिसे अनाथ, भवारागिर्द और भ्रष्ट समझती थीं, त्रिलोक पूजित भगवान् उसी के सामने मिनुक बन कर खड़े थे।
चन्दनवाला ने आनन्द से पुलकित होकर उड़द केवाकले बहरा दिए । उसी समय आकाश में दुन्दुभि बनने लगी । देवों ने जयनाद किया-सती चन्दनवाला की जय।धनावह के घर फूल और सोनयों की दृष्टि होने लगी। चन्दनवाला की हथकड़ी और वेड़ियाँ आभूषणों के रूप में बदल गई ।साराशरीर दिव्य वस्त्रों से मुशोभित होगया ओर सिर पर कोमल सन्दर ओरलम्ब कशागए। उसी समय वहॉ रत्ननटित दिव्य सिंहासन प्रगट हुआ ।इन्द्र आदि देवों ने चन्दनवाला को उस पर बैठाया और स्वयं स्तुति करने लगे। __ भगवान् महावीर के पारणे की वात विजली के समान सारे नगर में फैल गई। मृला को भी इस बात का पता चला। अपने घर पर सोनयों की दृष्टि हुई जान कर वह भागी हुई आई। घर पहुँचने पर सामने दिव्य वस्त्रालङ्कार पहिन कर सिंहासन पर बैठी हई चन्दनवाला को देख कर वह आश्चर्यचकित रह गई।
मृला को देखते ही चन्दनवाला उसके सामने गई। विनयपूर्वक प्रणाम करके अपने सुन्दर केशों से उसके पैर पोछती हुई कहने लगी- माताजी! यह सब आप के चरणों का प्रताप है। लज्जा के कारण मृला का मस्तक नीचे झुक गया। चन्दनवाला उसका हाथ पकड़कर अन्दरले गई और अपने साथ सिंहासन पर बिठा लिया।
चन्दनवाला की वेड़ियाँ खुलवाने के लिए सेठ लुहार के पास गया हुआ था। उसने भी सारी बातें सुनी, प्रसन्न होता हुआ अपने घर पाया । मूला को चन्दनवाला के साथ बैठी हुई देख कर सेट
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