________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग
८३
करने में समर्थ नहीं होता क्योंकि जो जीव सपक श्रेणी करता है वही भागे के गुणस्थानों में जा सकता है। ग्यारहवें गुणस्थान वाला जीव नियम से उपशम श्रेणी वाला ही होता है, अत एव वह ग्यारहवें गुणस्थान से गिर पड़ता है । ग्यारहवेंगुणस्थान का समय पूरा होने से पहले ही जो जीव आयु के क्षय होने से काल कर जाता है वह अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है। उस समय वह ग्यारहवें से गिर कर चौथे गुणस्थान को प्राप्त कर लेता है, क्योंकि अनुत्तर विमानवासी देवों में केवल चौथा गुणस्थान होता है। चौथे गुणस्थान को प्राप्त कर वह जीव उन सब कर्मप्रकृतियों का बन्ध, उदय और उदीरणा एक साथ शुरू कर देता है जिनका बन्ध और उदय आदि चौथे गणस्थान में सम्भव है।
जिस जीव के आयु शेष रहने पर भी गुणस्थान का समय पूरा हो जाता है वह आरोहक्रम से गिरता है अर्थात् ग्यारहवेंगुणस्थान तक चढ़ते समय उस जीव ने जिन जिन गुणस्थानों को जिस क्रम से प्राप्त कियाथा या जिन कर्मप्रकृतियों का जिस क्रम से उपशम करके वह ऊपर चढ़ा था वे सब प्रकृतियों उसी क्रम से उदय में आती हैं। इस प्रकार गिरने वाला जीव कोई छठे गुणस्थान तक आता है, कोई पाँचवें, कोई चौथे और कोई दूसरे में होकर पहले तक आता है।
क्षपक श्रेणी के बिना कोई जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। ग्यारहवेंगुणस्थान में उपशम श्रेणी वाला ही जाता है इस लिए वह अवश्य गिरता है। एक जन्म में दो बार से अधिक उपशम श्रेणी नहीं की जा सकती। क्षपक श्रेणी तो एक ही बार होती है। जिस ने एक बार उपशम श्रेणी की है वह उसी जन्म में क्षपक श्रेणी द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकता है परन्तु जोदोवार उपशम श्रेणी कर चुका है वह फिर उसी जन्म में क्षपक श्रेणी नहीं कर सकता यह बात करेंग्रन्थ के अनुसार लिखी गई है। सिद्धान्त के अनुसार जीव एक