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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला rrrrrrrrrrrmmmmmm ~~ rrrrr rrm or u
कर वे उसे कर्तव्य-भार मानते थे। परस्पर सहयोग से प्रजा का पालन करते हुए दोनों अपने जीवन को सुखपूर्वक बिता रहे थे।
कुछ दिनों बाद धारिणीने एक महान् सुन्दरी कन्या को जन्म दिया। उज्ज्वल रूप तथा शुभ लक्षणों वाली उस पुत्री के जन्म से माता पिता को बड़ी प्रसन्नता हुई। बड़े समारोह के साथ उसका जन्मोत्सव मनाया । माता पिताने कन्या कानाम वसुमती रक्खा। ___ उसे देख कर धारिणी सोचा करती थी कि वसुमती को ऐसी शिक्षा दी जाय जिससे यह अपने कल्याण के साथ मानव समाज का भी हित कर सके। बचपन से ही उसे नम्रता, सरलता आदि गुणों की शिक्षा मिलने लगी। उसमें धर्म तथा न्याय के दृढ़संस्कार जमाए जाने लगे। जैसे जैसे बड़ी हुई उसे दूसरी बातें भी सिखाई जानेलगीं। संगीत,पढ़ना,लिखना,सीना,पिरोना,भोजन बनाना, घर संवारना आदि स्त्री की सभी कलाभों में वह प्रवीण हो गई। उसकी बोली, उसका स्वभाव और उसका रहन सहन सभी को प्रिय लगता था। उसे देख कर सभी प्रसन्न हो उठतेथे। सखियों उसे देवीमानतीथीं। धारिणी उसे देखकर फूलीन समाती थी।
धीरे धीरे वसुमती ने किशोरावस्था में प्रवेश किया। उसके शरीर पर यौवन के चिह्न प्रकट होने लगे। गुण और सौन्दर्य एक दूसरे की होड़ करने लगे। सखियों वसुमती के विवाह की बातें करने लगीं किन्तु उसके हृदय में अब भी वही कुमार-सुलभसरलता तथा पवित्रता थी। वासना उसे छई तक न थी।उसके मुख पर वही वचपन का भोलापन था। चेहरे पर निर्दोष हँसी थी। अपने गुणों से दूसरों कोमोहित कर लेने पर भी उसका मन अभिमान से सर्वथाशून्य था, जैसे अपने उन गुणों से वह स्वयंअपरिचित थी।।
राजा दधिवाहन को वसुमती के लिए योग्य वर खोजने की चिन्ता हुई किन्तु धारिणी वसुमती से जगत्कन्याण की भाशा