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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
प्रत्येक तरफ । चौड़ाई में खण्डरज्जु १० हैं । चार त्रसनाड़ी में और तीन तीन दोनों तरफ । कुल खण्डरज्जु ४० हैं।
(७) शर्करा प्रभा के ऊपर सातवें राजू में एक राजू की अवगाहना वाली रत्न प्रभा है। इस की चौड़ाई भी एक राज है । रत्न प्रभा त्रसनाड़ी से बाहर नहीं है। इस में तिरछे चार खण्ड रज्जु हैं। कुल सोलह खण्ड रज्जु हैं।
इन सातों पृथ्वियों में सात नरक हैं। इनका विस्तार इसके दूसरे भाग के बोल नं० ५६० में दिया गया है।
रत्नप्रभा के ऊपर नौ सौ योजन तक तथा भीतर नौ सौ योजन तक तिर्खा लोक है, इसमें मनुष्य और तिर्यश्च निवास करते हैं। जम्बूद्वीप, लवण समुद्र,धातकी खण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र, इस प्रकार असंख्यात द्वीप समुद्र है। सब के बीच में एक लाख योजन लम्बा और एक लाख योजन चौड़ा जम्बूद्वीप थाली के आकार वाला है। उसे घेरे हुए दो लाख योजन चौड़ा चूड़ी के आकार वाला लवण समुद्र है। इसी प्रकार दुगुने दुगुने परिमाण वाले एक दूसरे को घेरे हुए असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। सब के अन्त में स्वयम्भूरमण समुद्र है,जो असंख्यात हजार योजन विस्तारवाला है।
(८) रत्न प्रभा पृथ्वी के ऊपर नौ सौ योजन वाद ऊर्ध्वलोक शुरू हो जाता है। आठवेंराजू के पहले दो खण्ड राजुओं तक चौड़ाई एक राज है। उनमें सनाड़ी से बाहर कोई खप्डराजू नहीं है। ऊपर के दो खण्ड राजुओं में चौड़ाई डेढ़ राजू है अर्थात् आठवें राजू में लोक के नीचे का आधा भाग एक राजू चौड़ा है और ऊपर का डेढ राज चौड़ा है। आठवें राजू लोक में कुल २० खण्ड राजू हैं।
(8) नवें राज के पहले खण्ड में दो राजू चौड़ाई है । एक राजू सनाड़ी में और आधा आधा राजू दोनों तरफ। उसमें रखण्ड राजू