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श्री सेठिया जैन ग्रन्यमाला m उसे लोक कहाजाता है। लोक से बाहर आकाश के सिवाय कुछ नहीं है। सातवीं पृथ्वी के नीचे लोक के अन्तिम भाग से लेकर शिद्ध शिला के ऊपर एक योजन तक लोक का परिमाण चौदह राजू परिमाण है। ___ स्वयम्भूरमण समुद्र की पूर्ववेदिका से लेकर पश्चिम वेदिका पर्यन्त की दूरी को रज्जु कहते हैं। तत्त्वार्थाधिगम भाष्य की टिप्पणी में लिखा है- लोक की अवगाहना चौदह राजू परिमाण है। यहॉराजदोप्रकार का है-औपचारिक और पारमार्थिकासाधारण लोगों की बुद्धि स्थिर करने के लिए दृष्टान्त देना औपचारिक राजू है। जैसे
जोयणलक्खपमाणं, निमेसमत्तेण जाइ जो देवो। ता छम्मासे गमणं, एवं रज्जु जिणा यिंति॥ अर्थात-देवता एक निमेष (आँख की पलक गिरने में जितना समय लगता है, उसे निमेष कहते हैं) में एक लाख योजन जाता है। यदि वह छः मास तक लगातार इसी गति से चलता रहे तो एक राजू होता है। यह औपचारिक राजू का परिमाण है।
तिर्यग्लोक के असंख्यात द्वीप समुद्र परिमाण पारमार्थिक राजू होता है।
लोक के भेदचौदह राज परिमाण लोक तीन भागों में बँटा हुआ हैऊर्ध्व लोक, मध्यलोक (तिर्यग्लोक) और अधोलोक। तिर्यग्लोक की अवगाहना अठारह सौ योजन है। तिर्यग्लोक के बीचोबीच जम्बूद्वीप में रत्नप्रभा पृथ्वी के समतल भूभाग पर मेरु पर्वन के विल्कुल मध्य में पाठ रुचक प्रदेश हैं। वे गौस्तन के आकार वाले हैं। चार ऊपर की तरफ उठे हुए हैं और चार नीचे की तरफ । इन्हीं रुचक प्रदेशों की अपेक्षा से सभी दिशाओं तथा विदिशाओं