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भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला
एक ही भंग पाया जाता है । अवेदक मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग होते हैं।
(१३) शरीर द्वार-सशरीरी जीवों का कयन सामान्य जीवों की तरह जानना चाहिये । औदारिक और वैक्रिय शरीर वाले जीवों में एकेन्द्रियों को छोड़ कर तीन भंग, आहारक शरीर वाले मनुष्यों में छः भंग होते हैं। तैजस और कार्मण शरीर वाले जीवों में तीन भंग होते हैं। अशरीरी जीवों में तीन भंग होते हैं। .
(१४) पर्याप्ति द्वार-आहार पर्याप्ति,शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति और श्वासोच्छास पर्याप्ति वाले जीवों में एकेन्द्रियों को छोड़ कर तीन भंग पाये जाते हैं । भाषा पर्याप्ति और मनःपर्याप्ति वाले जीवों में संझी जीवों की तरह तीन भंग होते हैं। अपर्याप्त जीवों में अनाहारक की तरह एकेन्द्रिय को छोड़ कर छ: भांगे पाये जाते हैं। शरीर,इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास पर्याप्तियों से अपर्याप्त जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन भंग होते हैं। नैरयिक, देव
और मनुष्यों में छः भंग होते हैं। भाषा और मनःपर्याप्ति से अपर्याप्त जीवों में तीन और नैरयिक,देव और मनुष्यों में छ: भंग पाये जाते हैं।
(भगवती शतक ६ उद्देश ४) ८४२- पढमापढम के चौदह द्वार ___ जीव भादि चौदह द्वारों में प्रयम अप्रथम का कथन किया गया है। वे द्वार ये हैं__ (१) जीव (२) आहारक (३) भवसिद्धिक (४) संझी (५) लेश्या (६) दृष्टि (७) संयत (८) कषाय (8) ज्ञान (१०) योग (११) उपयोग (१२) वेद (१३) शरीर (१४) पर्याप्ति ।
(१) जीवद्वार- जीव जीवत्व की अपेक्षा प्रथम नहीं किन्तु अप्रथम है। इसी प्रकार नारकी से लेकर वैमानिक देवों पर्यन्त समझनाचाहिये। सिद्धजीव सिद्धत्व की अपेक्षामयम हैं,अप्रयम