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श्रीरका जैन ग्रन्थमाला
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पूर्वक कहना, समानाऔर उपदेश करना नहीं कल्पता।
(१४) साब. सामी कोही के घर के अन्दर पच्चीस भावनाओं सहित पाँच मात्रज का कयन करना यावत् उनका उन्ने देना नहीं कल्पता किन्तु अपवाद मार्ग में खड़े खड़े एक
र गाया और झोक का अर्थकहनाअथवा एक आपप्रश्न का उधर देना कल्पना है। यह कार्य भी खड़े खड़े ही करना चाहिए वैठ
(वृहत्कल्प उद्देशा ३ सूत्र २२-२४) ८३५- अविनीत के चौदह लक्षण
गुरु आदि बड़े पुरुषों की सेवाशुश्रुषा न करने वाला अविनीत कहलाता है। इसके चौदह लक्षण हैं
(१) सकारणया अकारण चार बार क्रोध करने वाला।
(२) विजया आदि में प्रवृत्ति करने वाला या दीर्घकाल तक मोध रखने वाला।
(३)मित्र की मित्रता का त्याग करने वाला अथवा कृतघ्न होफर किये हुए उपकार को न मानने वाला।
(४) शास्त्र पढ़ कर गर्व करने वाला।
(५)छोटेसे अपराध के कारण महान् पुरुषों का भी तिरस्कार करने वाला अथवा अपनादोष दसरों पर डालने वाला।
(६) मित्रों पर भी क्रोध करने वाला।
(७)अत्यन्त प्यारे मित्रों की भी पीठ पीछेनिन्दाऔर सामने प्रशंसा करने वाला।
(E) वस्तु तत्त्व के विचार में स्वेच्छानु ' भाषण करने वाला, या पात्र अपात्र का विचार न गृढ रहस्य को बताने वाला अथवा सर्वया बोलने वाला।