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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
____१६ रुचि रहती है। बहुत से शीलवत गुणव्रत विरमण व्रत प्रत्याख्यान और पौषधोपवास धारण किये जाते हैं किन्तु सामायिक व्रत और देशावकाशिक व्रत का सम्यक पालन नहीं होता। । पहली पडिमा का आराधक पुरुष शुद्ध सम्यक्त्व वाला होता है। दूसरी में वह चारित्रशुद्धि की ओर झुक कर कर्मक्षय का प्रयत्न करता है। वह पाँच अणुव्रत और तीनगुणवतों को धारण करता है। चार शिक्षा व्रतों को भी अङ्गीकार करता है किन्तु सामायिक और देशावकाशिक व्रतों का यथा समय सम्यग पालन नहीं कर सकता । इस पडिमा का समय दो मास है। । (३ सामाइयकडे-तीसरी पडिमा में सर्व धर्म विषयक रुचि रहती है। वह शीलवत, गुणव्रत, विरमण प्रत्याख्यान और पौषधो पवासवत धारण करता है। सामायिक और देशावकाशिक व्रतों की आराधना भी उचित रीति से करता है, किन्तु चतुदर्शी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा आदि पर्व दिनों में पौषधोपवास बत की. सम्यग आराधना नहीं कर सकता है। इस पडिमा के लिये तीन मांस का समय है। . . ॥४) पोसहोववासनिरए- चौथी पडिमा में उपरोक्त सब ब्रतों का पालन सम्यक् प्रकार से करता है। अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में प्रतिपूर्ण -पौपधवत का-पूर्णतया पालन किया जाता है किन्तु 'एक रात्रि की उपासक पडिमा का सम्यक् आराधना नहीं कर सकता। यह पडिमा चार मास की होती है। - .:.----- (५) दिवा बंभयारी रचिपरिमाण कड़े- पाँचवीं पडिमा वाले को सर्व धर्म विषयक रुचि होती है। उपरोक्त सब ब्रतों का सम्यः क्तया पालन करता है और 'एक रात्रि की उपासक पडिमा का भी भली प्रकार पालन करता है। इस पडिमा में पाँच पाते. विशेष रूप से धारण की जाती हैं-वह स्नान नहीं करता, रात्रि में चारों