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को जैन सिद्धान्त बोल संपह, चौथा भाग २६३ आदि सारी सेना सहित पत्तीस हजार राना उस जंजीर को खींचने लगें तो भी वे एक चक्रवर्ती को नहीं खींच सकते किन्तु उसी जंजीर को बाएं हाथ से पकड़ कर चक्रवर्ती अपनी तरफ उन सब को बड़ी आसानी से खींच सकता है।
चक्रवर्तियों का हार-प्रत्येक चक्रवर्ती के पास श्रेष्ठ मोती और मणियों अर्थात् चन्द्रकान्त आदि रनों से जड़ा हुआ चौंसठ लड़ियों वाला हार होता है।
(समवायाग ६४) चक्रवतियों के एकेन्द्रिय रन-प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात मात एकेन्द्रिय रल होते हैं। अपनी अपनी जाति में जो सर्वोत्कृष्ट होता है वह रन कहलाता है। ये हैं-(१) चकरन (२) छत्ररन (३) चर्मरल (४) दण्डरत्न (५) असिरल (६) मणिरत्न (७) काकिणीरत्न ।ये सातों पार्थिव अर्थात् पृथ्वी रूप होते हैं। __ चक्रवर्ती के पञ्चेन्द्रिय रल-प्रत्येक चक्रवर्ती के पास सात सात पञ्चेन्द्रिय रत्न होते हैं । (१) सेनापति (२) गृहपति (भंडारी) (३) बहई (8) शान्तिकर्म कराने वाला पुरोहित (५) स्त्रीरल (६) अश्वरत्न (७) हस्विरत्न । इन चौदह ही रत्नों की एक एक हजार यक्षदेव सेवा करते हैं
चक्रवर्तियों का वर्ण आदि-शुद्ध निर्मल सोने की प्रमाके समान उनके शरीर का वर्ण होता है।
चक्रवतियों की स्थिति और अवमाहना जानने के लिए नीचे . तालिका दी जाती है
नाम स्थिति अवगाहना (१) भरत ८४ लाख पूर्व ५०.धनुष (२) सगर ७२" " ४५० ॥ (३)मनवान् ५लाख वर्ष ४२॥ " (४)सनत्कुमार ३॥ " ४१॥ "